गणेश चतुर्थी – विशेष ( लेख – एस ० के० गुप्त “प्रखर”)
गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र का बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। यह हिन्दू धर्म का एक बहुत प्रिय पर्व है। यह उत्सव अब पूरे भारत में बेहद भक्ति और खुशी से मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू धर्म का मुख्य और प्रसिद्ध पर्व है। इसे हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह भगवान गणेश के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है जो माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र है। ये बुद्धि और समृद्धि के भगवान है इसलिये इन दोनों को पाने के लिये लोग इनकी पूजा करते है।

एक दिन स्नान करने के लिए भगवान शंकर कैलाश पर्वत से भोगावती जगह पर गए। और कहा जाता है कि उनके जाने के बाद मां पार्वती ने घर में स्नान करते समय अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया था। उस पुतले को मां पार्वती ने प्राण देकर उसका नाम गणेश रखा और पार्वती जी ने गणेश को द्वार पर पहरा देने के लिए कहा, पार्वती जी ने कहा था कि जब तक मैं स्नान करके बाहर ना आ जाऊं किसी को भी भीतर मत आने देना।
भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव वापस घर आए तो वे घर के अंदर जाने लगे लेकिन बाल गणेश ने उन्हें रोक दिया क्योंकि गणपति माता पार्वती के के अलावा किसी को नहीं जानते थे, ऐसे में गणपति द्वारा अन्दर न जाने देना को शिवजी ने अपना अपमान समझा और भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर चले गए। शिव जी जब अंदर पहुंचे वे बहुत क्रोधित थे। माता पार्वती ने सोचा कि भोजन में विलम्ब के कारण महादेव क्रुद्ध हैं, इसलिए उन्होंने तुरंत 2 थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया और भोजन करने का आग्रह किया।
दूसरी थाली देखकर शिवजी ने पार्वती से पूछा, कि यह दूसरी थाली किसके लिए लगाई है? इस पर पार्वती कहती है कि यह थाली पुत्र गणेश के लिए, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। यह सुनकर भगवान शिव चौंक गए और उन्होने पार्वती जी को बताया कि जो बालक बाहर पहरा दे रहा था, मैने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है। यह सुनते ही माता पार्वती दुखी होकर विलाप करने लगीं। जिसके बाद उन्होंने भगवान शिव से पुत्र को दोबारा जीवित करने का आग्रह किया, तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर उस बालक के धड़ से जोड़ दिया। पुत्र गणेश को पुन: जीवित पाकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईं। यह पूरी घटना जिस दिन घटी उस दिन भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी थी। इसलिए हर साल भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।
गणेश चतुर्थी के दौरान सुबह और शाम गणेश जी की आरती की जाती है और लड्डू और मोदक का प्रसाद चढ़ाया जाता है। सबसे ज्यादा यह उत्सव महाराष्ट्र में पूरे धूम धाम से मनाया जाता है और वहाँ की गणेश चतुर्थी देखने के लिये लोग दूर-दूर से आते हैं।
भगवान गणेश को विघ्नों का हरण करने वाला माना जाता है, और हिंदू धर्म के अनुसार परिवार और समुदाय के भीतर सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रम गणेश जी का आशीर्वाद लेने के बाद शुरू होते हैं। कोई भी नई शुरुआत के देवता के रूप में भी जाना जाता है, गणेश चतुर्थी गणेश देवता को समर्पित सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।
त्योहार की तारीख हर साल बदलती रहती है क्योंकि इसकी गणना हिंदू कैलेंडर के अनुसार की जाती है। गणेश चतुर्थी शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मनाई जाती है, जो अमावस्या और भाद्रपद की पूर्णिमा के बीच पखवाड़े के चौथे दिन होती है। यह दिन आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में आता है।
- भगवान गणेश की पूजा में लाल चंदन, कपूर, नारियल, गुड़ और उनका प्रिय मोदक होता है।
- लोग रोजाना मंत्रों का उच्चारण करते हैं और गीत और आरती गाकर गणेश जी की पूजा करते हैं।
- पूरे 10 दिनों की पूजा के बाद 11वें दिन गणेश महाराज की प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है।
गणेश भगवान के 12 नाम
1-सुमुख
2-एकदंत
3’कपिल
4-गजकर्ण
5-लंबोदर
6-विकट
7-विघ्नविनाशक
8-विनायक
9-धूमकेतू
10-गणाध्यक्ष
11-भालचन्द्र
12-गजानन

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