- सोनभद्र सरकारी अस्पतालों की दुर्व्यवस्था, रेफर केंद्र बनकर रह गए।
सोनभद्र / संपादकीय – आशीष गुप्ता – सोन प्रभात
सोनभद्र जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की दुर्व्यवस्था सुर्खियां बटोरने का काम करती है। बात करें इस जिले की सभी सी एच सी (सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों) की तो उनके हालत तो जगजाहिर है, ये सभी रेफर के लिए जाने जाते हैं, कुछ जगहों पर ही सक्रियता मिलती है। समय पर इलाज न मिल पाना, अनियमित स्टॉफ के साथ साथ अनेकों खामियां समय समय पर उजागिर होती रहती है।
जिला अस्पताल से कितनी उम्मीद की जा सकती है?
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को तो छोड़िए जिला अस्पताल खुद बड़े दुर्व्यवस्था का पहचान स्थापित करने में कोई कोर कसर नही छोड़ रहा है, पता नही क्यों यह विभाग इतना पीछे कैसे है? जबकि सोनभद्र उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा जिला है, विकास का डोज भी बड़ा मिल रहा है। तो आम जनता की उम्मीदें भी बढ़ने के साथ साथ बड़ी होती है। जनसंख्या ज्यादा होगी तो बीमारियां और जरूरतें तो ज्यादा होंगी ही। पिछड़ने में शिक्षा के बाद स्वास्थ्य भी शामिल है, ये दोनो जब पिछड़ा रहेगा तो हम कौन से विकास की बात करेंगे।प्रदेश की कह लें या जिलों की ही बात कर लें तो राजनीति में बुलडोजर, डबल इंजन जैसे नाम प्रयुक्त होने आम के साथ साथ हर जगह हर समय सुनाई देने वाले शब्द हो गए हैं। टेक्निकली ये नाम तो भौकाल के लिए काफी अच्छे सुनाई देते हैं, कैसे खुश हो जाते हैं लोग बुलडोजर और डबल इंजन सुनकर। अब इसकी जमीनी सच्चाई जानने के लिए आपको सोनभद्र जिला अस्पताल लेकर चलते हैं।
कोटा निवासी 13 वर्षीय लड़की को सांप ने काटा था, नहीं हो सका जिला अस्पताल में इलाज
यहां सिर्फ एक उदाहरण प्रस्तुत है, शेष दुर्व्यवस्था की सही जानकारी वास्तविकता से सामना किए मरीज या फिर अस्पताल कर्मचारी को होती है। शिवकुमार यादव निवासी कोटा, चोपन सोनभद्र की 13 वर्षीय पुत्री ममता को 7 मार्च दोपहर 2 बजे अज्ञात सर्प ने डस लिया। ममता ने सर्प को देखा लेकिन सर्प की पहचान नही हो पाई। आनन – फानन में परिजनों ने चोपन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का रुख किया और वहां प्राथमिक उपचार देकर अच्छे इलाज हेतु जिला अस्पताल लोढ़ी रोबर्ट्सगंज भेजा गया। तकरीबन तीन बजे से लेकर दो से ढाई घंटे तक जिला अस्पताल में रखा गया लेकिन परिजनों ने बताया कि अस्पताल की सुस्त व्यवस्था और इस आपात स्थिति के बावजूद वहां की निष्क्रियता परिजनों की उम्मीदों को खो रही थी और अंततः लगभग 5 बजे तक जिला अस्पताल ने हांथ खड़े कर दिए और लड़की को बी एच यू वाराणसी रेफर की बात कही। सवाल तो बहुत सारे खड़े होते हैं, परंतु जो सबसे बड़ा प्रश्न है, कि अगर समय से सर्पदंश के मरीज को जिला अस्पताल लाया जाए फिर भी क्या जिला अस्पताल में इलाज संभव नही है? नहीं फिर ये सोनभद्र जैसे बड़े जिला का ही जिला अस्पताल हो सकता है।
एंबुलेंस चालक भी कहते हैं हमें रेफर मरीजों को ही ढोने से फुर्सत नहीं, सब जगह है यही हाल
रेफर शब्द सुनने के लिए मरीज को हमेशा तैयार रहना चाहिए अगर आप सोनभद्र के किसी सरकारी अस्पताल में हों तो, इस तरह की बातें जब एंबुलेंस चालकों से सुनने को मिल जाए तो व्यवस्था के क्या ही कहने।
सर्पदंश की पीड़ा झेल रही ममता समय से बी एच यू पहुंच जाती है, और भी समय से पहुंच जाती अगर चोपन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बाद वह सीधे बी एच यू वाराणसी के लिए निकलते। खबर लिखे जाने तक इलाज जारी था परिजनों के मुताबिक डॉक्टर्स ने उसे खतरे से बाहर बताया है। वहीं परिजनों ने यह जरूर कहा कि प्राथमिक उपचार के बाद जिला अस्पताल न जाकर हमें सीधे वाराणसी के लिए निकलना चाहिए था। बड़ी बात यहां यह भी आती है कि इस सर्पदंश मामले में मेयर, सी एम ओ, राजनैतिक पकड़ वाले लोगों से भी जिले में ही ससमय इलाज हेतु परिजनों ने गुहार लगाई लेकिन कहीं बात न बन सकी और जीवन का रिस्क लेकर पुनः 2 घंटे से ज्यादा का यात्रा करके मरीज को वाराणसी भेजा गया।
कैसे / कब सुधरेंगे हालात?
सरकार के योजनाओं और विकास की बातों के मुताबिक एक जिला अस्पताल में क्या क्या सुविधाएं होनी चाहिए इसकी सुनिश्चितता के साथ साथ स्टाफ, स्पेशल डॉक्टर्स की नियुक्ति समय को लेकर सी एम ओ को सख्त होना बहुत जरूरी है। बहरहाल यह खबर तो ट्वीट (X), व्हाट्सएप के माध्यम से कई जगह भेजी जाएगी, प्रणाली में क्या सुधार हो पायेगा आगे आने वाला समय गवाही देगा।
विशेष : सर्पदंश मामले में झाड़ फूंक, अंधविश्वास के चक्कर में न पड़े।
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