लेख – एस0के0गुप्त “प्रखर” – सोनप्रभात
हिंदू पंचांग के मुताबिक कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हर साल करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है। इस बार सुहागिन महिलाओं का ये खास त्योहार 4 नवंबर को यानि कि आज मनाया जा रहा है। पति की लंबी उम्र की कामना के साथ शादीशुदा महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखती हैं। पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में इस व्रत को लेकर सुहागिनों में खासा उत्साह देखने को मिलता है। पर पिछले कुछ सालों में देश के लगभग हर हिस्से में लोग इस त्योहार को मनाते हैं। पूरे दिन बिना खाने-पीने के रहने के बाद शाम को चांद देखने व पूजा करने के बाद व्रती अपना व्रत खोलती हैं।

इस दिन व्रती किसी नई नवेली दुल्हन की तरह सजती हैं, साथ ही परिवार में किसी उत्सव के जैसा माहौल रहता है।कोरोना काल में करवा चौथ का पावन पर्व आज बुधवार को मनाया जाएगा। अखंड सुहाग के निमित्त महिलाएं निर्जला व्रत रखेंगी। चंद्रोदय के बाद विधि पूर्वक पूजन करके अर्घ्य देंगी। परंपरा के अनुसार पति को चलनी से निहारने के बाद व्रत का पारण करेंगी।
हर सुहागिन के लिए प्रेम का प्रतीक करवा चौथ खासा मायने रखता है। लेकिन इस बार कोरोना कालखंड ने पर्व के प्रति आस्था, उल्लास को सीमित कर दिया है। इस का प्रभाव पारंपरिक पूजन, श्रृंगार, आभूषमों और कपड़ों पर दिख रहा है। संक्रमण का भय, सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन और कोरोना के प्रसार ने पर्व की रौनक को थोड़ा कम कर दिया है। लेकिन महिलाएं परंपरा के अनुसार पूजन अर्चन करके कोरोना से अपने सुहाग की रक्षा की कामना करेंगी।
- करवा चौथ पूजा मुहूर्त-
- पूजा समय शाम – शाम 6:04 से रात 7:19
- उपवास समय सुबह – शाम 6:40 से रात 8:52
- चौथ तिथि – सुबह 3:24 से 5 नवंबर सुबह 5:14 तक
- चंद्रमा का उदय – 4 नवंबर रात 8.16 से 8:52 तक
इस व्रत में पूरे दिन निर्जला रहा जाता है। व्रत में पूरा श्रृंगार किया जाता है। महिलाएं दोपहर में या शाम को कथा सुनती हैं। कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें। थाली में रोली, गेंहू, चावल, मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान आदि रखते हैं। प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा से व्रत की शुरुआत की जाती है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए हर पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इस बात का ध्यान रखें कि सभी करवों में रौली से सतियां बना लें। अंदर पानी और ऊपर ढ़क्कन में चावल या गेहूं भरें। कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें। थाली में रोली, गेंहू, चावल, मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान आदि रखते हैं। प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा से व्रत की शुरुआत की जाती है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए हर पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इसके बाद शिव परिवार का पूजन कर कथा सुननी चाहिए। करवे बदलकर बायना सास के पैर छूकर दे दें। रात में चंद्रमा के दर्शन करें। चंद्रमा को छलनी से देखना चाहिए। इसके बाद पति को छलनी से देख पैर छूकर व्रत पानी पीना चाहिए।

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