स्थान : सोनभद्र बार एसोसिएशन सभागार, रॉबर्ट्सगंज
संयोजन : शहीद स्थल प्रबंधन ट्रस्ट करारी व सोनभद्र बार एसोसिएशन
Report – Rajesh Pathak / Ashish Gupta
सोनभद्र (सोनप्रभात)।
लोकमंगल के साधक गोस्वामी तुलसीदास और यथार्थ के अप्रतिम रचनाकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती की पूर्व संध्या पर बुधवार को सोनभद्र बार एसोसिएशन सभागार में एक भव्य कविगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम शहीद स्थल प्रबंधन ट्रस्ट करारी सोनभद्र एवं सोनभद्र बार एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ, जिसमें जिले के अनेक प्रतिष्ठित साहित्यकार, कवि, शायर, शिक्षक और अधिवक्ता उपस्थित रहे।
दीपदान व वाणी वंदना से हुआ कार्यक्रम का शुभारंभ
कविगोष्ठी का विधिवत उद्घाटन वाग्देवी, तुलसीदास व प्रेमचंद के चित्र पर माल्यार्पण और दीपदान के साथ हुआ। उद्घाटन सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार, राष्ट्रपति पदक विजेता शिक्षक ओमप्रकाश त्रिपाठी ने अध्यक्षता की, जबकि उपन्यासकार, कथाकार व समीक्षक रामनाथ शिवेन्द्र मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन रहे।
कवि ईश्वर विरागी की वाणी वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ, जिसमें साहित्य की गरिमा और जीवन मूल्यों को स्वर मिला।

कविताओं में गूंजी सामाजिक चेतना, प्रेम, व्यंग्य और देशप्रेम की गूंज
कवयित्री कौशल्या कुमारी चौहान ने अपनी मार्मिक पंक्तियों — “आपस में नफरत, आपस में तकरार, मानव के जीवन की है सबसे बड़ी हार” से श्रोताओं के अंतर्मन को झकझोर दिया और खूब तालियां बटोरीं।
धर्मेश चौहान ने जीवन की बुनियाद को दर्शाते हुए पढ़ा — “नित नूतन निर्माण हो, जीवन नींव अटल आधार हो”,
जबकि प्रद्युम्न त्रिपाठी ने ओजस्वी स्वर में कहा — “पड़े जरूरत जब भी वतन को, कफन बांध हम आयेंगे; काश लहू का इक-इक कतरा, भारत माँ के काम आये”।
विकास वर्मा ने सामाजिक सौहार्द्र पर आधारित पंक्तियाँ — “मजहब को अपने घर में ही महदूद कीजिये” सुनाकर अमन का संदेश दिया।
दयानंद दयालू ने ग्रामीण दर्द को दर्शाते हुए कहा — “उजड़ल जाता बाग-बगैचा सगरो लागै सूना”।
दिलीप सिंह दीपक की पंक्तियाँ — “जला श्मशान में घंटों तलक, बस राख होने को” ने जीवन की नश्वरता पर ध्यान खींचा।
दिवाकर मेघ की हास्य रचना “बीए पढ़े लागल बा बेटौवा” पर सभागार ठहाकों से गूंज उठा।
व्यंग्य, दर्शन और ओज की त्रिवेणी
अशोक तिवारी ने संचालन करते हुए पढ़ा — “बेबसी अंधेरे की जब देखी नहीं गई, हमने घर जलाकर रौशनी की है”।
अजय चतुर्वेदी ‘कक्का’ ने तीक्ष्ण व्यंग्य “अक्ल बड़ी या भैंस” से श्रोताओं को गुदगुदाया और गहरी सोच के लिए प्रेरित किया।
राकेश शरण मिश्र ने भावुक स्वर में कहा — “सोनभद्र की पावन धरती, हम सबका अभिमान है”।
ओज कवि प्रभात सिंह चंदेल ने राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत स्वर में कहा — “फिर घना काला अंधेरा, मुल्क पर अब छा रहा है”।
सुधाकर ‘स्वदेश प्रेम’ ने कहा — “जनाजा जब मेरा निकले, वतन के वास्ते निकले”, जिससे माहौल देशभक्ति की भावना से भर गया।
शायर अब्दुल हई ने कटाक्षपूर्ण पंक्तियाँ — “सच बोल दिये तो कितनों के चेहरे उतर गये” सुनाकर खूब वाहवाही लूटी।
साहित्यिक विमर्श : तुलसी और प्रेमचंद की सामाजिक प्रासंगिकता
मुख्य अतिथि रामनाथ शिवेन्द्र ने गोस्वामी तुलसीदास को लोकमंगल के संवाहक और प्रेमचंद को मजलूमों के दर्द को स्वर देने वाला लेखक बताते हुए कहा कि प्रेमचंद, शेक्सपियर के समकक्ष खड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने समाज की विषमता और शोषण को अपनी रचनाओं में यथार्थ रूप में उकेरा।
कार्यक्रम अध्यक्ष ओमप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि तुलसीदास मानव कल्याण के लिए अवतरित एक साधक थे और प्रेमचंद समाज के भीतर छिपी बुराइयों पर प्रहार करने वाले यथार्थवादी चिंतक। दोनों महापुरुषों की रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।
गीत, ग़ज़ल और नवगीतों से सजी शाम
मदन चौबे, अमित सिंह, विवेक चतुर्वेदी ‘शाइर’ ने विविध रसों में गीत, ग़ज़ल, छंद, रुबाई और नवगीत प्रस्तुत किए और श्रोताओं की जमकर सराहना पाई।
दीपक केसरवानी ने अपने संक्षिप्त परंतु प्रभावशाली वक्तव्य से दोनों महापुरुषों को नमन किया।
सोन संगीत फाउंडेशन के सुशील मिश्रा ने अपनी मधुर स्वर लहरियों में गाया — “देशवा हमार, शहीद के सपनवां हो परनवां दिहले ना…”, जिससे माहौल भावुक हो उठा।
कवयित्री और शिक्षक दिव्या राय ने पावस ऋतु को समर्पित सुमधुर श्रृंगार गीत पढ़कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
सम्मान और सम्मानजनक उपसंहार
कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों को अंगवस्त्र, लेखनी और पुस्तकों के साथ सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर सोनभद्र बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अरुण मिश्र एडवोकेट, महामंत्री अखिलेश कुमार पांडेय, पूर्व अध्यक्ष नरेन्द्र कुमार पाठक एडवोकेट, चंद्रप्रकाश द्विवेदी एडवोकेट, जयशंकर त्रिपाठी एडवोकेट, राकेश दूबे एडवोकेट, देवानंद पांडेय एडवोकेट, आत्म प्रकाश तिवारी एडवोकेट, ठाकुर पुरुषोत्तम, ऋषभ त्रिपाठी सहित बड़ी संख्या में श्रोता कार्यक्रम की समाप्ति तक जमे रहे।
कार्यक्रम देर शाम तक चलता रहा और साहित्यिक सौंदर्य से ओतप्रोत इस कविगोष्ठी ने सभी को एक नई चेतना और सृजनशीलता से भर दिया।

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