रिपोर्ट: जितेन्द्र कुमार चन्द्रवंशी, ब्यूरो चीफ Duddhi / Sonprabhat सोनभद्र
दुद्धी, सोनभद्र। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र दुद्धी में कार्यरत आशा बहूओं को अप्रैल से जून माह तक प्रोत्साहन राशि का भुगतान नहीं होने से वे बेहद व्यथित एवं नाराज हैं। मंगलवार को आशा बहूओं ने सीएचसी परिसर में प्रदर्शन कर अपनी पीड़ा व्यक्त की और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अधीक्षक को मुख्य चिकित्सा अधिकारी, सोनभद्र के नाम ज्ञापन सौंपा।

आशा बहूओं का कहना है कि उनपर काम का बेतहाशा बोझ है, मगर इसके बदले में उन्हें मिलने वाला रत्तीभर मानदेय और प्रोत्साहन राशि भी महीनों तक नहीं दी जाती। वे सवाल करती हैं — “इतने कम मानदेय में जीवन-यापन संभव है क्या? पांच हजार रुपये में आज के महंगाई के दौर में गुजारा किस प्रकार किया जाए?”
आशा बहूओं द्वारा किया जाने वाला कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण है, जिनमें शामिल है:
गांव का सर्वे कर परिवार नियोजन हेतु नसबंदी कराना
योग दम्पतियों का विवरण इकट्ठा करना
गर्भवती महिलाओं का प्रसव पूर्व जांच और 9 महीने तक टीकाकरण सुनिश्चित करना
सीएचसी में डिलीवरी कराना एवं डिलीवरी के 42 दिन तक बच्चों का वजन लेना
एचबीएनसी और एचबीवाईसी का कार्यक्रम पूरा करना
0 से 2 वर्ष तक बच्चों की देखभाल एवं 0 से 5 वर्ष तक बच्चों का टीकाकरण सुनिश्चित करना
बच्चों में कुपोषण का सर्वे एवं इलाज हेतु रेफरल
किशोरियों एवं गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण एवं बैठकों का आयोजन
आयरन, कृमिनाशक और फाइलेरिया दवाओं का वितरण
गांव में होने वाले सभी जन्म और मृत्यु का लेखा-जोखा रखना
संचारी एवं गैर-संचारी रोगों का सर्वे एवं रिपोर्टिंग
मोबाइल ऐप में मरीजों का रेफरल एवं डाटा एंट्री करना
गर्भवती महिलाओं का एलएमपी ट्रैकिंग एवं प्रत्येक माह ड्यू लिस्ट तैयार करना
इतने सारे कार्यों के बावजूद आशा बहूओं को तीन से पांच हजार रुपये प्रति माह मानदेय मिलता है, जो वर्तमान महंगाई में जीवन-यापन के लिए अपर्याप्त है। कई आशा बहू अब डिप्रेशन का शिकार होने लगी हैं और सवाल करती हैं कि “क्या यह न्याय है कि जो सरकारी कर्मचारी सबसे अधिक जमीनी स्तर का काम कर रहा है, उसकी मेहनत और समर्पण का उचित मूल्यांकन न किया जाए?”
आशा बहूओं का कहना है कि अगर सरकार 50,000 रुपये प्रति माह मानदेय भी दे तो यह उन कार्यों के लिए कम है जो वे निभा रही हैं। वर्तमान में जो भुगतान किया जाता है वह कभी 3,000, कभी 4,000 तो कभी मुश्किल से 5,000 रुपये तक सिमट जाता है, जो महंगाई के इस दौर में भूखमरी जैसे हालात पैदा कर रहा है।

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