August 4, 2025 6:57 PM

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्कूल विलय को बताया न्यायसंगत, शिक्षक नेता ने निर्णय का किया स्वागत।

  • – कहा प्राथमिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार की दिशा में योगी सरकार का ठोस कदम

रिपोर्ट: वेदव्यास सिंह मौर्य | सोनप्रभात | सोनभद्र

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के संविलयन (विलय) की नीति को इलाहाबाद हाईकोर्ट से वैधता मिलने के बाद शिक्षा जगत में इस निर्णय का स्वागत किया जा रहा है। हाईकोर्ट ने स्कूलों के विलय के खिलाफ़ दाखिल याचिका को खारिज करते हुए सरकार के इस निर्णय को न सिर्फ न्यायसंगत ठहराया, बल्कि इसे छात्रहित में भी बताया।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के पूर्व जिलाध्यक्ष विजय राम पांडेय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि,

“स्कूलों के विलय का निर्णय संख्या के बजाय शैक्षिक गुणवत्ता को केंद्र में रखकर लिया गया है। यह कदम दूरदर्शिता से परिपूर्ण है और छात्रों के हित में है।”

गुणवत्ता सुधार की ओर बढ़ता कदम

शिक्षक नेता पांडेय ने कहा कि बहुत से प्राथमिक विद्यालयों में छात्र संख्या अत्यंत कम है, जिससे न तो शिक्षकों का समुचित उपयोग हो पाता है और न ही शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आ पाता है। ऐसे में जब इन स्कूलों का विलय पास के अन्य विद्यालयों में किया जाएगा, तो प्रत्येक विद्यालय में छात्रों की संख्या संतुलित होगी।

उन्होंने आगे कहा –

“जब प्रत्येक कक्षा में कम से कम 20-25 छात्र होंगे और प्रत्येक विषय के लिए अलग शिक्षक उपलब्ध होंगे, तो कक्षा संचालन व्यवस्थित होगा। इससे पढ़ाई की गुणवत्ता में स्वतः सुधार होगा।”

सरकार का उद्देश्य – सबको शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

विजय राम पांडेय ने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान सरकार बच्चों को मुफ्त शिक्षा, किताबें, यूनिफॉर्म, मध्यान्ह भोजन जैसे सुविधाएं देकर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है ताकि कोई बच्चा आर्थिक कारणों से शिक्षा से वंचित न रह जाए।

“अब सरकार केवल पहुंच पर नहीं, बल्कि गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित कर रही है। स्कूलों का विलय इसी लक्ष्य की पूर्ति की दिशा में एक सशक्त कदम है,” उन्होंने कहा।

हाईकोर्ट का निर्णय – नीतिगत फैसले को मिली न्यायिक मान्यता

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा स्कूल विलय नीति को वैध ठहराने से यह स्पष्ट हो गया है कि यह निर्णय शिक्षानीति के अनुरूप है। कोर्ट ने कहा कि यह कदम न सिर्फ प्रशासनिक दृष्टि से उचित है, बल्कि बच्चों के शैक्षिक हितों के संरक्षण के लिए भी आवश्यक है।

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