लेख – एस0के0 गुप्त “प्रखर”- सोनप्रभात
हर वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर सिख धर्म के पहले गुरु नानक देव की जयंती मनाई जाती है। गुरु नानक देव की जयंती को गुरु पर्व और प्रकाश पर्व के रूप में पूरे देश मे मनाई जाती है। गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को पाकिस्तान में स्थित श्री ननकाना साहिब में हुआ था। गुरु पर्व पर सभी गुरुद्वारों में भजन, कीर्तिन, अरदास और लंगर लगता है। प्रकाश पर्व पूरे नगर में प्रभात फेरियां निकालकर गुरु नानक देव जी के अनमोल वचनों को गाया औऱ लोगों को बताया जाता है। गुरु नानक देव जी ने अपना पहला संदेश 5 साल की उम्र में दिया था। गुरुनानक देव जी ने समाज को एकता में बांधने के लिए कई संदेश दिए।

एक औऱ कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु के जागने पर देवी तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के साथ हुआ था। भगवान विष्णु के बैकुंठधाम में आगमन और तुलसी संग विवाह के बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुण्य लाभ प्राप्त करने के लिए इस तिथि का विशेष महत्व होता है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व महाभारत कथा से भी जुड़ा हुआ है। जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तब पांडव इस बात को लेकर बहुत ही परेशान और दुखी हुए कि युद्ध में उनके काफी सगे- सहोदरों की मृत्यु हो गई थी। इस असमय मृत्यु के कारण वे सोचने लगे कि इनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी, तब भगवान कृष्ण ने पांडवों की इस चिंता को दूर करने के लिए कार्तिक पर्णिमा पर दीपदान करने के लिये कहा।
एक दूसरे पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस औऱ उसके तीन पुत्र थे – तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शंकर के बड़े पुत्र कार्तिक भगवान ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुनकर तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए, तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्मा जी तीनों की तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो, तीनों ने ब्रह्मा जी से अपने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।
तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके।एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाय औऱ एक ही बाण से तीनों को नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए, ब्रह्माजी के कहने पर उनके लिए तीन नगरों का निर्माण करवाया गया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से बहुत भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा। त्रिपुरासुर और उसके तीनो पुत्रों के वध होने की खुशी में सभी देवतागण स्वर्गलोक से उतरकर काशी में दीपो की दीपावली मनाते हैं।

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