February 6, 2025 7:33 AM

Menu

जन्मदिन विशेष:- जानें उस महिला को, जिन्होंने देश में सबसे पहले लड़कियों के लिए खोला था स्कूल।

लेख- एस0के0गुप्त “प्रखर” – सोनप्रभात

आज के दिन 3 जनवरी को सावित्री बाई फुले अर्थात देश की पहली महिला शिक्षिका का जन्म हुआ था। ये आज भी एक मिसाल बनकर हमारे दिल में जिंदा हैं। इनका नाम सामने आते ही सिर फक्र से ऊंचा उठ जाता है। शिक्षा में अतुलनीय योगदान के लिए देश और समाज सावित्री बाई फुले का सदैव ऋणी रहेगा।

जिस समय फुले ने शिक्षा की ज्योति जलाई, उस समय लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था, इसके बावजूद भी उन्होंने नारी शिक्षा का बिड़ा उठाया और उसे अंजाम तक पहुंचाया। जिसके बाद समाज से कुंठित वर्ग की महिलाएं भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आगे आने लगीं। इन्होंने देश का पहले गर्ल्स स्कूल की शुरुआत की। बात 19वीं सदी की है, जब स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों पर किसी भी महिला की आवाज नहीं उठती थी। पर सावित्री बाई फुले ने उस वक्त अपनी आवाज उठाई और नामुमकिन को मुमकिन करके दिखाया।

सावित्रीबाई फुले, अपने पति, ज्योतिराव फुले के साथ ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में महिलाओं के अधिकारों में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा उन्होंने सन् 1848 में भिड़े वाडा में लड़कियों के लिए देश का पहला गर्ल्स स्कूल शुरू किया।

  • आगे पढ़ते हैं कि कौन थी सावित्री बाई और कैसे बनीं ये महिलाओं की आवाज…

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था। सावित्रीबाई भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थी। महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है।

उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जिया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थी उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता है।

सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका के रुप में उभरी। हर धर्म के लिए उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थी तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थी और स्कूल पहुंच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थी।

1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की 9 छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले 5 नए विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिए सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती।

10 मार्च, 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीजों की सेवा करती थी। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया और इसी कारण से सावित्रीबाई फुले की मौत हो गई थी।

Ad- Shivam Medical

The specified slider is trashed.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

For More Updates Follow Us On

For More Updates Follow Us On