संपादकीय- सुरेश गुप्त ‘ग्वलियरी’
सिंगरौली- सोनप्रभात
यह एक ऐसी बीमारी है जिसका ताल्लुक न उम्र से है न आर्थिक स्थिति से।ताजा उदाहरण सुशाँत सिंह राजपूत हैं जिन्होने अवसाद ग्रस्त होकर अपना जीवन खत्म कर लिया।क्या नही था उनके पास?
उच्च शिक्षा,सुविधा सम्पन्न व प्रतिभावान अभिनेता मगर एक दोहरी जिन्दगी। डिप्रेसन का शिकार एक अरबपति भी हो सकता है तो एक दिहाड़ी मजदूर भी। एक ताजे रिपोर्ट के अनुसार हमारे आदिवासी जनपद सिंगरौली के ग्रामीण अंचलो मे भी अवसाद ग्रस्त लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है।दिनो दिन यह प्रवत्ति बढ़ती ही जा रही है तीन सौ दिनों में 250 आत्म ह्त्या का आँकड़ा बताता है कि यह मनो विकार बढ़ता ही जा रहा है।सरकार को अन्य बीमारियों की तरह इस बीमारी को गम्भीरता से लेना होगा।

बेरोजगारी, अशिक्षा,असफलता तो कारण है ही लेकिन साथ हीी मनोचिकित्स्को की कमी,मोबाईल के माध्यम से नव युवकों को रंगीन दुनिया के सपने भी एक तनाव का कारण है।अत्याधिक नशा भी दिमाग को अ-समान्य स्थिति में पहुँचा देता है।एक विशेषज्ञ के अनुसार जब आप लगातार अच्छा महसूस न कर रहे हों,माहौल बदलने,मन पसंद काम करने के बावजूद भी अच्छा प्रतीत न हो,नींद न आये, लगे कि सब कुछ तबाह हो गया तो समझो आप तनाव ग्रस्त है।
अविलम्ब विशेषज्ञ की राय की जरूरत है। बच्चों पर अतिरिक्त बोझ न डालें और उन्हें एक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करें।इसकी गम्भीरता को समझे एवं जागरूकता कार्यक्रम चलाएं।
इसके अलावा अवसाद ग्रस्त रोगी का काउंसलिंग व उपचार अवश्य कराएं।

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