- – रिहंद कॉलोनी के भूखंड विवाद पर तहसील दिवस में उठा मामला, चर्चा का विषय बना पूरा प्रकरण।
सोनप्रभात डिजिटल डेस्क | सोनभद्र
देश की रक्षा में प्राण गंवाने वाले सैनिकों के परिवारों को जहां सरकार की ओर से सम्मान और संरक्षण मिलना चाहिए, वहीं सोनभद्र जिले के म्योरपुर ब्लॉक अंतर्गत एक ग्राम पंचायत निवासी द्वितीय विश्व युद्ध के दिवंगत सैनिक स्वर्गीय केदारनाथ दुबे के परिवार को वर्षों से भूमि विवाद में मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। इस गंभीर प्रकरण को लेकर उनके पुत्र जनार्दन केशव दुबे ने तहसील दिवस में जिलाधिकारी सोनभद्र को एक प्रार्थना पत्र सौंपा और अपनी पीड़ा साझा की।

क्या है पूरा मामला?
जनार्दन दुबे ने बताया कि पिपरी स्थित उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम लिमिटेड (UPJVNL) रिहंद कॉलोनी के सिविल अनुरक्षण खंड द्वारा उनकी मां सावित्री देवी के नाम वर्ष 1969 में आवंटित प्लॉट को अतिक्रमण करार देते हुए 24 फरवरी 2021 को उन्हें 10,49,400 रुपये की पेनल रेंट और कब्जा हटाने का नोटिस भेजा गया।
वह बताते हैं कि उनकी मां सावित्री देवी आज 96 वर्ष की उम्र में जीवित हैं और उस समय नोटिस पाकर उनकी तबीयत बिगड़ गई थी, जिससे वे महीनों अस्वस्थ रहीं। जनार्दन के मुताबिक उन्होंने वर्ष 2021 में SDM कोर्ट में रिस्टोरेशन दाखिल किया था, जिसे 10 दिसंबर 2021 को तत्कालीन SDM दुद्धी श्री रमेश कुमार ने खारिज कर दिया।
जनार्दन दुबे का पक्ष
जनार्दन दुबे ने बताया कि वर्ष 1984 से 2019 तक वे जीविकोपार्जन के लिए सोनभद्र जिले से बाहर रहे और उनके पास इसके प्रमाण भी हैं। बावजूद इसके उन्हें वर्ष 1999 से 2021 तक अवैध अतिक्रमण का दोषी ठहराया गया।
वे कहते हैं कि वर्ष 2009 तक उन्होंने 16,835 रुपये किराये के रूप में विभाग को जमा किए हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि वे किरायेदार नहीं, विधिवत भूखंडधारी थे।
पीड़ित का यह भी आरोप है कि उन्हें साजिश और रंजिशवश निशाना बनाया जा रहा है, जबकि पिपरी और तुर्रा जैसे इलाकों में हजारों लोग बिना आवंटन के आलीशान बहुमंजिला मकान बनाकर रह रहे हैं।
सेना में योगदान की गौरवगाथा
जनार्दन दुबे ने बताया कि उनके पिता स्वर्गीय केदारनाथ दुबे ने वर्ष 1942 में डोगरा रेजीमेंट में भर्ती होकर भारत, बर्मा और दक्षिण अफ्रीका के विभिन्न मोर्चों पर देश की सेवा की। वर्ष 1945 में युद्ध के दौरान उन्हें गोली लग गई थी, जिसके कारण 1946 में उन्हें मेडिकल अनफिट कर दिया गया।
क्या बोले जिलाधिकारी?
पूरा मामला सुनने के बाद जिलाधिकारी सोनभद्र ने जनार्दन दुबे को न्यायालय की शरण लेने की सलाह दी।
प्रश्न खड़े करता है यह मामला
- जब वर्ष 1969 में भूखंड आवंटित हुआ और किराया भी जमा हुआ, तो अब 30 वर्ष बाद अवैध अतिक्रमण की बात क्यों उठी?
- पिपरी और तुर्रा क्षेत्र में बिना आवंटन वाले लोगों पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
- क्या ऐसे ही सैनिकों के परिवार को अपने हक के लिए दर-दर की ठोकरें खानी होंगी?
जनता के बीच बना चर्चा का विषय
पूरे तुर्रा, पिपरी और म्योरपुर क्षेत्र में यह मामला जनचर्चा का विषय बन गया है। एक ओर सरकार अवैध कब्जेदारों पर बुलडोज़र चलाकर सुर्खियां बटोर रही है, वहीं दूसरी ओर एक सैनिक परिवार न्याय के लिए तहसील से लेकर कोर्ट तक चक्कर काट रहा है।अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या जनार्दन दुबे को न्याय मिलेगा या फिर यह मामला भी फाइलों की धूल में दब जाएगा।

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