August 17, 2025 7:31 PM

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‘पुष्पांजलि’ काव्य संग्रह पर समीक्षक प्रविन्दु दुबे ‘चंचल’ की दृष्टि।

सिंगरौली / सुरेश गुप्त “ग्वालियरी” / आशीष गुप्ता – सोन प्रभात

सिंगरौली। साहित्य जगत में कवि शंकर प्रसाद शुक्ल का पहला काव्य संग्रह ‘पुष्पांजलि’ हाल ही में प्रकाशित होकर पाठकों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के ग्राम चिनगी टोला, डाकघर हर्रैया निवासी वरिष्ठ कवि शंकर प्रसाद शुक्ल की इस रचना को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर स्थित प्रिंसेप्स प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।

समीक्षक प्रविन्दु दुबे ‘चंचल’

समीक्षक प्रविन्दु दुबे ‘चंचल’ ने इस काव्य संग्रह का गहन विश्लेषण करते हुए बताया कि ‘पुष्पांजलि’ मात्र 74 पृष्ठों की संक्षिप्त लेकिन समृद्ध कृति है, जिसमें कुल 59 कविताएँ संकलित की गई हैं। संग्रह का आवरण पृष्ठ आकर्षक और सुदृढ़ है, जो पहली ही नज़र में पाठकों को अपनी ओर खींच लेता है।

सप्त विधाओं का समावेश

कवि शंकर प्रसाद शुक्ल ने अपनी इस रचना में वंदना, आरती, दोहा, चौपाई, अध्यात्मपरक, देशभक्ति और व्यंग्यात्मक कविताओं को शामिल किया है। यह विविधता संग्रह को इंद्रधनुषी रंगों से सजाती है। संग्रह का शुभारंभ वंदना से होता है और समापन आरती पर, जिससे इसकी रचनात्मक यात्रा आध्यात्मिकता और श्रद्धा की ओर अग्रसर होती है।

कवि शंकर प्रसाद शुक्ल

भाव और संदेश

कविता संग्रह की अधिकांश रचनाएँ अध्यात्म पर आधारित हैं, जिनमें मानव जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का स्पष्ट संदेश है। कवि ने समाज की विद्रूपताओं को उजागर करते हुए व्यंग्य का सहारा लिया है।
कुछ पंक्तियाँ जैसे –

  • “काम उनका सफल हो रहा, जिनका खुला खजाना रहा। पास खर्चा नहीं है अगर, महज डिग्रियों को सजाना रहा।”
  • “पशुता चढ़ी आकाश में, मानवता हो गई पंगु।”
  • “खाने वाला भ्रष्टाचारी, खिलाने वाला प्यारा। सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा।”

इनमें सामाजिक विडंबनाओं पर करारी चोट के साथ-साथ व्यंग्यात्मक धार भी दिखाई देती है।

समाज और चेतना का संदेश

कवि ने “स्वारथ में सब लिप्त हो गए”, “घर घर फूट डाल रहा दुश्मन, संभल संभल कर चलना” जैसी पंक्तियों के माध्यम से समाज को जागरूक करने का प्रयास किया है। वहीं “आए थे हरि भजन को, करने लगे कुछ और” जैसी पंक्तियाँ मानव के विचलित मन को सही दिशा दिखाने की आकांक्षा व्यक्त करती हैं।

कलात्मक सौंदर्य और साहित्यिक महत्व

प्रविन्दु दुबे ‘चंचल’ के अनुसार ‘पुष्पांजलि’ भाव पक्ष में सहजता और कला पक्ष में सौंदर्य की उत्कृष्टता का परिचायक है। कविताओं में जहां समाज के लिए मार्गदर्शन है, वहीं अंत में “प्रभु जी! एक तुम्हीं आधार” जैसी पंक्ति इस काव्य संग्रह के गहन आध्यात्मिक स्वरूप को ऊँचाई प्रदान करती है।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर ‘पुष्पांजलि’ काव्य संग्रह साहित्य प्रेमियों के लिए पठनीय, संग्रहणीय और प्रेरणादायी कृति है। यह न केवल कवि की भावभूमि को दर्शाता है, बल्कि समाज के लिए एक दर्पण की भांति कार्य करता है।

समीक्षक प्रविन्दु दुबे ‘चंचल’ ने कवि शंकर प्रसाद शुक्ल को इस अद्वितीय काव्य संग्रह के लिए हृदय से बधाई देते हुए इसे साहित्य की दुनिया में सराहनीय योगदान बताया।

 

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