December 23, 2024 12:14 AM

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बड़ी खबर : सोनभद्र से सात करोड़ के गबन का आरोपी हुआ गिरफ्तार,भेजा गया न्यायिक अभिरक्षा में जेल।

सोनभद्र। वाराणसी की आर्थिक अपराध शाखा की टीम ने रविवार की शाम उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड वाराणसी से सेवानिवृत्त हुए लेखाकार श्रीप्रताप सिंह को गबन के आरोप मे आखिर गिरफ्तार ही कर लिया गया। आरोपी श्रीप्रताप पर करीब 10 वर्ष पूर्व गाजीपुर में पर्यटन विकास एवं सौंदर्यीकरण के लिए आवंटित सात करोड़ रुपये सरकारी धन के गबन और बन्दरबाँट का आरोप है।


पैतृक रूप से रामपुर बरकोनिया थाना क्षेत्र के छोढ़ा गांव निवासी श्रीप्रताप सिंह वर्तमान में राबर्ट्सगंज के विकास नगर कालोनी में रहता था।ई.ओ.डब्ल्यू. की टीम ने राबर्ट्सगंज कोतवाली पुलिस के साथ उसके घर पर छापामार कर गिरफ्तार किया।

ई.ओ.डब्ल्यू . लखनऊ और वाराणसी के पुलिस अधीक्षक लाल साहब यादव ने आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए टीम गठित किया गया।

इस टीम में निरीक्षक सुनील कुमार वर्मा, मुख्य आरक्षी रामाश्रय सिंह और रोहित सिंह आदि लोग थे। रविवार की शाम जनपद में आई टीम ने विकास नगर कालोनी स्थित आवास से आरोपी श्रीप्रताप सिंह को शासकीय धन का दुरुपयोग व गबन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। सोमवार को आरोपित को भ्रष्टाचार निवारण न्यायालय वाराणसी के समक्ष रिमांड के लिए प्रस्तुत किया, जहां से कोर्ट ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया।

आप को बताते चले कि जनपद गाजीपुर के ब्लाक भदौरा में पांच अलग-अलग स्थानों पर पर्यटन विकास और सौंदर्यीकरण का कार्य वर्ष 2012-13 के दौरान कराया जाना प्रस्तावित था।
सरकार ने कार्यदायी संस्था उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड भदोही (वाराणसी) को यह कार्य आवंटित किया था। इस कार्य के लिए शासन ने आठ करोड़ 17 लाख रुपये जारी किये गये थे। कराये गये कार्यों की जब जांच हुई तो पाया गया कि सिर्फ एक करोड़ 17 लाख रुपये का कार्य मानक के अनुरूप है और कार्य अपूर्ण हुआ है। करीब सात करोड़ रुपये के कार्य अधूरा और मानक के अनुरूप नहीं पाए गए।

तब इस मामले की शिकायत पर तत्कालीन संयुक्त निदेशक पर्यटन वाराणसी एवं विंध्याचल अविनाश चंद्र मिश्र ने जांच कर 12 सितंबर 2017 को गाजीपुर के थाना गहमर में मुकदमा दर्ज कराया गया था। शासन ने मामले की विवेचना आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन वाराणसी को सौंपी। जांचकर्ता निरीक्षक सुनील कुमार वर्मा ने शासकीय धन के बंदरबाट और गुणवत्ताहीन में तत्कालीन परियोजना निदेशक, उप अभियंता व लेखाकार के साथ ही ठेकेदारों को भी दोषी पाया गया।

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