मनुस्मृति (1) अध्याय-1 ( श्लोक 1से 63तक) – –
लेख – डॉ0 लखन राम’जंगली’
सोनप्रभात – अंक- 1
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मनुस्मृति अध्याय 1के श्लोक 1 से 63 के मध्य सृष्टि क्रम का विवेचन है जो इस प्रकार है—
- अचिंत्य परमात्मा।
- जल।
- अचिंत्य परमात्मा द्वारा जल में बीज
की स्थापना। - बीज का स्वर्णमयी अंड में परिवर्तन।
और अंड में लोक के पितामह ब्रह्मा
की उत्पत्ति। - ब्रह्मा का स्वर्णमयी अंड में 1ब्रह्मवर्ष
ध्यान के बाद अंड को दो भागों में
विभक्त करना। - अंड के उक्त दो भागों से द्युलोक व
भूलोक का निर्माण तथा इन दो लोकों
के मध्य आकाश आठ दिशाएं व
जल का नित्य आश्रय समुद्र मन बुद्धि
आदि स्थूल शरीर के लिए आवश्यक
सूक्ष्म तत्वों का निर्माण किया। - इन्हीं ब्रह्मां ने लोगों की अभिवृद्धि के
लिए अपने मुख बाहु पूर्व और पैर से
क्रमशः ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शुद्र
की सृष्टि की।
लोकानाम तु विवृद् ध्यर्थम मुखबाहूरुपादतः।
ब्राह्मणं क्षत्रियं वैश्यं शूद्रं निरवर्तयत् ।।31।।
इस 31 वें श्लोक की विशेष बात यह है कि ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र अखंड ब्रह्मा के अंतिम सूक्ष्म
सृष्टि है। इसके पश्चात स्थूल सृष्टि के लिए ब्रह्मा
अपने आप को दो भाग नारी और पुरुष में विभक्त
कर लेते हैं।
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- अखंड ब्रह्मा का नारी व पुरुष के रूप में
विभाजन।
- अखंड ब्रह्मा का नारी व पुरुष के रूप में
द्विधा कृत्वाssत्मनो देहमर्धेन पुरुषोभवत्।
अर्धेन नारी तस्याम स विराजमसृजत् प्रभु:।।32।।
अर्थात् ब्रह्मा अपने शरीर को दो भागों में विभक्त
करके आधे से पुरुष हो गए तथा आधे से स्त्री हो
गये और सृष्टि समर्थ ब्रह्मा जी ने उसी स्त्री में
विराट् नाम के पुरुष की सृष्टि की।
- स्त्री में विराट् नामक पुरुष की सृष्टि।
- मनु (जगत स्रष्टा)।
- 10 प्रजापति( मरीचि अत्रि अंगिरा
पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वशिष्ठ, भृगु व नारद) - इन्हीं मरीचि आदि ऋषियो ने बहुत तेज युक्त सात मनू( स्वारोचिष,उत्तम, तामस, रैवत, चाछुष, वैवस्वत व स्वायंभूव) अन्य देव, देवों के निवास और अपरिमित शक्ति से युक्त अन्य महर्षियो को भी जन्म दिया।
उक्त सभी ने मिलकर जरायुज, अंडजस्वेदज और उद्भिज समस्त जगत की सृष्टि की।
- विशेष-: ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अखंड ब्रह्मा की सूक्ष्म सृष्टि है। जबकि हम सब स्थूल सृष्टिवाले ब्रह्मा के विभक्त स्वरूप स्त्री और पुरुष की सृष्टि है।
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-डॉ0 लखन राम ‘जंगली’
लिलासी कलॉ – सोनभद्र (उत्तर प्रदेश)
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