December 28, 2024 12:50 PM

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रामचरितमानस–: ” आगे परा गीध पति देखा। सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा। ” – मति अनुरूप– अंक.29 – जयन्त प्रसाद

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

–मति अनुरूप–

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

 

आगे परा गीध पति देखा। सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा।

श्री रामचरितमानस की यह पंक्ति सीतान्वेषण में जाते समय राम को मिले रावण द्वारा पंख कटे महात्मा जटायु के संबंध में है, जो राम चरणों की रेखा का स्मरण कर रहे थे। भक्तों को प्रभु के भिन्न-भिन्न कृपा का आश्रय होता है।


महात्मा भरत को तो सदैव प्रभु के उपानहों (जूता) का ही आश्रय का भरोसा है। यथा- ‘मोरे सरन राम के पनहीं।’ और उन्होंने प्रभु पादुकाओं के ही आश्रय में अपना कठिन काल बिताया अन्यथा उनका जीवन धारण करना तो संभव ही नहीं था ।


वैसे तो मानस में प्रभु चरणाश्रित अनेक भक्तों का वर्णन मिलता है, परंतु राम चरणों की रेखा का स्मरण करने की बात मात्र महात्मा जटायु के लिए ही उल्लिखित है, आखिर राम चरणों की रेखा का महत्व महात्मा जटायु को कहां से प्राप्त हुआ?
उनका भेंट तो मात्र सीता जी से हुआ था। क्या उन्हीं का प्रभाव था?

श्री सीता जी को भी प्रभु चरणों का ही सहारा था।वन साथ जाते समय भी उनके मन में यही लालसा थी-

छिनु छिनु प्रभु पद कमल बिलोकी। रहिहउं मुदित दिवस जिमि कोकी।

मोहि मग चलत न होइहिं हारी। छिनु छिनु चरन सरोज निहारी।

यद्यपि कि प्रभु चरणों की रेखाओं (प्रभु चरणों की अड़तालीस चिन्हों)का स्मरण करना केवल महात्मा जटायु के संबंध में वर्णित है, पर श्री सीता जी भी उन्हीं चरणों का स्मरण करती थी, ऐसा संकेत जान पड़ता है। वन जाते समय भी श्री सीता जी के प्रभु चरणों को देख सुखी होना इन्हीं चरण चिन्हों को देख सुखी होने का संकेत है।


विचार किया जाय तो जब श्री राम मृग के पीछे दौड़े तो प्रभु का पृष्ठ भाग ही सीता जी की ओर रहा होगा और राम के दौडते समय राम की चरण चिन्ह सीता जी को अवश्य ही दीख पड़े होंगे। प्रभु के इसी छवि को सीता जी वियोगवस्था मेंं स्मरण कर सम्बल प्राप्त कर रही है-

जेहि विधि कपट कुरंग संग, धाइ चले श्री राम।
सो छवि सीता राखि उर, रटति रहति हरि नाम।

अशोक वाटिका में भी इसी बात का संकेत हो रहा है, हनुमान जी देखते हैं कि श्री सीता जी-

निज पद नयन दिए मन, राम पद कमल लीन।

स्पष्ट विदित है कि प्रभु श्री राम के चरणों में जो अड़तालीस चिन्ह है, श्री सीता जी के चरणों में भी वही चिन्ह है अर्थात प्रभु के दाहिने चरण के चौबीस चिन्ह सीता जी के बांए चरण में और प्रभु के बाएं चरण के चौबीस चिन्ह  सीता जी के दाहिने चरण में है।

अपने चरणों में उन्ही प्रभु चरण चिन्हों को देखते हुए प्रभु का स्मरण कर रही है। इस प्रकार अपने नयनों से निहारने से कायिक भक्ति(तन व कर्म सम्बन्धी), मन राम चरणों मे लीन है से मानसिक भक्ति और राम नाम रटने से वाचिक भक्ति (वचन सम्बन्धी) हो रही है।

इस प्रकार सीता जी मन, कर्म और वचन से प्रभु भक्ति में सदैव लीन है। श्री सीता जी हनुमान जी से स्वंय कहती है-

मन क्रम वचन चरण अनुरागी। केहि अपराध नाथ हौं त्यागी।

श्री सीता जी का परम सेवक जटायु जी भी उन्ही के समान प्रभु की सेवा में युद्ध करते हुए घायल पड़े हैं (कायिक भक्ति) , मन से प्रभु चरण की रेखा का स्मरण कर रहे हैं (मानसिक भक्ति), और वाणी से राम नाम जप रहे है (वाचिक भक्ति)। इस प्रकार महात्मा जटायु भी मन वचन और कर्म से प्रभु की भक्ति में सतत लगे हैं। ऐसा भक्त जटायु धन्य है उन्हें बारम्बार प्रणाम।

आगे परा गीध पति देखा। सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा।

-जय जय श्री सीताराम-

-जयंत प्रसाद

 

  • प्रिय पाठक!  रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग से जुड़े लेख प्रत्येक शनिवार प्रकाशित होंगे। लेख से सम्बंधित आपके विचार व्हाट्सप न0 लेखक- 9936127657, प्रकाशक-  8953253637 पर आमंत्रित हैं।

 

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