सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख)
– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )
–मति अनुरूप–
ॐ साम्ब शिवाय नम:
श्री हनुमते नमः
बंदउं अवध भुवाल, सत्य प्रेम जेहि राम पद।
श्री रामचरितमानस में अनेक प्रेमियों का वर्णन है और उनके प्रेम के लिए अमित, अनन्य, अगाध आदि अनेक विशेषणों का प्रयोग किया गया है। परंतु राम के चरणों में सत्य प्रेम का विशेषण केवल एक मात्र श्री दशरथ जी के लिए ही प्रयोग किया गया है। श्री दशरथ जी के प्रेम को ऐसा सौभाग्य ही मिला था, जिया तो राम के लिए और मरा तो राम के लिए–
जियत राम बिधु बदन निहारा। राम विरह करि मरनु सँवारा।
वस्तुतः मनु के रूप में नैमिषारण्य में तेइस हजार वर्ष की लंबी तपस्या कर यही तो वरदान मांगा था–
मनि विनु फनि जिमि जल विनु मीना। मम जीवन तिमि तुम्हहिं अधीना।
जल विनु मीना अर्थात सत्य प्रेम क्योंकि दोहावली में मानस कार ने मछली का जल से सच्चा प्रेम का उल्लेख किया है–
मगर उरग दादुर कमठ, जल जीवन जल गेह।
तुलसी एकहिं मीन को, है साँचिलो सनेह।
मनि बिनु फनि और जल बिनु मीना।
श्री दशरथ जी के जीवन में राम का वियोग दो बार हुआ। प्रथम जब विश्वामित्र जी राम को मांग ले गये, तब मणि विहीन मणिधर के तरह दशरथ जी तड़पते रहे और दूसरी बार वन गमन के समय जल विनु मीना अर्थात जल के बिना मछली की तरह तड़प–तड़प कर प्राण त्याग दिए।–
राम राम कहि राम कहि, राम राम कहि राम।
तनु परिहरि रघुबर विरह, राउ गयउ सुरधाम।
किसी संत के द्वारा प्रेम की तीन श्रेणियां बताई गई हैं– गौण, मुख्य और अनन्य प्रेम। उदाहरणार्थ– “एक नई ब्यायी गाय का गौण प्रेम घास चरने में है और मुख्य प्रेम बछड़े पर है। बछडे को देखते ही गाय घास चरना छोड़कर बछड़े की ओर दौड़ पड़ती है, पर जब चरवाहा लाठी लेकर उसके मार्ग में खड़ा हो जाता है तो वह अपने अनन्य प्रेम प्राण पर होने के कारण प्राण के भय से लौट जाती है।” वही प्राण जो सबसे प्रिय होता है, दशरथ जी ने राम पर निछावर कर दिया। प्राण सबसे अधिक प्रिय होता है, इसी कारण विश्वामित्र जी द्वारा राम लक्ष्मण को मांगने पर दशरथ जी ने यही कहा–
देह प्राण ते प्रिय कछु नाहिं,सो मुनि देउँ निमिष एक माहीं।
पर राम को नहीं, राम तो उससे भी प्रिय हैं–
सब सुत मोहिं प्रान की नाई। राय देत नहीं बनई गोसाई।
अर्थात सभी पुत्र तो प्राण के समान प्रिय हो पर राम तो उससे भी प्रिय। कैकेयी से भी दशरथ जी ने यही कहा–
माँगु माथ अवही देउँ तोहीं। राम विरह जनि मारसि मोहीं।
और दशरथ जी ने बिना कोई प्रयास किए (प्राण त्यागने के लिए विष ग्रहण आदि अनेक उपाय करने पड़ते हैं) राम का स्मरण करते हुए प्राण त्याग दिए। यही तो दशरथ जी का सत्य प्रेम था।
दशरथ जी के प्रभु प्रेम की एक और विशेषता है। प्रायः देखा जाता है, कि प्रेमान्ध होकर लोग कृत्य–अकृत्य, पाप– पुण्य विचार करना भूल जाते हैं– “जहां प्रेम तहँ नेम नाहिं।” परंतु दशरथ जी ने अंत तक कृत –अकृत्य का विचार नहीं छोड़ा, इस बात को राम भी मानस में प्रमाणित करते हैं–
राखेउ राउ सत्य नहिं त्यागी।तन परिहरेउ प्रेम पन लागी।
इस प्रकार श्री दशरथ जी को राम के वन जाने का जितना शोक था– “राम चले बन प्रान न जाहीं।” उतना ही अपने कर्तव्य का विचार था – “प्रान जाइ बरु वचन न जाई।” दशरथ जी के इस सत्य प्रेम को बारम्बार नमस्कार।
बंदउ अवध भुवाल, सत्य प्रेम जेहि राम पद।
विछुरत दीन दयाल, प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ।
-सियावर रामचंद्र की जय-
–जयंत प्रसाद
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Ashish Gupta is an Indian independent journalist. He has been continuously bringing issues of public interest to light with his writing skills and video news reporting. Hailing from Sonbhadra district, he is a famous name in journalism of Sonbhadra district.