सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख)
– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )
–मति अनुरूप–
ॐ साम्ब शिवाय नम:
श्री हनुमते नमः
” शिव सम को रघुपति ब्रतधारी। विनु अघ तजी सती अस नारी।
श्री रामचरितमानस की उक्त पंक्ति में दो बातें स्पष्ट हैं– प्रथम – शिवजी के समान कोई राम व्रतधारी नहीं और दूसरी – सती जैसी कोई नारी नहीं।
शिव जी एक महान राम भक्त हैं, उन्होंने बिना अघ एक छोटे से अपराध के लिए, जो राम के प्रति किया गया मानकर सती जैसी पत्नी का परित्याग करके अपनी राम भक्ति की पराकाष्ठा सिद्ध कर दी। अघ और अपराध में महान अंतर है, अघ ऐसा दुष्कर्म है, जिसे यह जानते हुए कि ये शास्त्रों के द्वारा निषिद्ध है, जानबूझकर वासना वश किया जाए। इस कारण अघ अक्षम्य है। जबकि अपराध चूक को कहते हैं, जो वासना वश नहीं की जाती और वह चूक क्षम्य है।
सती जी ने सीता जी का वेश धारण करने की चूक की जिसमें कोई वासना नहीं थी, मात्र यह जानने का प्रयास था कि ये भगवान है या साधारण राजपुत्र। नारी का त्याग अघ के कारण ही शास्त्रोचित है, परंतु शिवजी ने एक छोटे से अपराध के कारण सती का परित्याग कर दिया। यथा–
सिय वेषु सती जो कीन्ह तेहि अपराध संकर परिहरी।
परन्तु सती जी ने शिवजी से मिथ्या भाषण का अघ तो किया –
कछु न परीक्षा लीन्ह गोसाईं। कीन्ह प्रनामु तुम्हारेहिं नाईं।
हां, लेकिन शिव जी ने तो इस पर ध्यान ही नहीं दिया और इसमें सती काे दोषी नहीं माना, इसमें तो ईश्वर माया की प्रेरणा थी। यथा–
बहुरि राम मायहिं सिरु नावा। प्रेरि सतिहिं जेहिं झूठ कहावा।
सती का त्याग तो उसी अपराध के कारण किया–
सियवेषु सती जो कीन्ह तेहि अपराध संकर परिहरी।
सामान्यतः पाठकों को सती में कोई विशेष नारी महानता परिलक्षित नहीं होती, पर मानसकार ने “सती असि नारी” लिखकर सती की एक नारी के रूप में विशेष महत्ता सूचित किया है और यदि इस पर गहराई से विचार किया जाए तो सहज ही सती की महानता और आदर्श नारीत्व समझ में आ जाता है।
सती को एक छोटी सी चूक पर स्वामी द्वारा त्याग का दंड मिला पर सती ने कभी भी इस बात की शिकायत अपने हाव-भाव से भी प्रकट नहीं होने दी और ” पति परित्याग हृदय दुख भारी।” को भी सहन करके आदर्श नारी का परिचय दिया, क्योंकि–
” धीरज धरम मित्र अरु नारी। आपत काल परखिए चारी। “
अर्थात धैर्य, धर्म, मित्र और नारियों की परख आपदकाल में ही होती है, यहां तो सती एक ही साथ अपने धैर्य, धर्म, स्वामी भक्ति और अपने नारीत्व की परीक्षा और परिचय एक साथ दे रही है, वह सराहनीय है। दुःख और विपत्ति काल में धीरज छूट जाता है और विवेक शून्य होकर व्यक्ति असहज हो कार्य कर बैठता है पर सती जी ने विषम परिस्थिति में भी नारी धर्म की पराकाष्ठा अपने आचरण से सिद्ध कर दिया और ” सती असि नारी” को सार्थक कर दिया।
सती जी ने अपनी पतिनिष्ठा पर अटल रहते हुए अकारण त्यागे जाने पर भी इस प्रकार शर्त लगाकर यह सिद्ध कर दिया कि शिवजी के प्रति मेरे प्रेम में रत्ती भर भी अंतर नहीं पड़ा है–
जो मोरे सिव चरन सनेहू। मन क्रम वचन सत्य ब्रत एहू।
तौ सव दरसी सुनिय प्रभु, करउ सो वेगि उपाइ।
होइ मरन जेहि विनहि श्रय, दुसह विपत्ति विहाइ।
इसके पश्चात सती शिवजी की आज्ञा लेकर पिता दक्ष के यज्ञ में जाती है और पतिदेव की अपमान देख सुन शेष समस्त संबंधों को तृणवत् त्याग देती है। इतना ही नहीं अपमान करने वाले पिता के शुक्र से उत्पन्न शरीर का त्याग शिवजी को हृदय में धारण करके कर दिया। इस प्रकार पति के तुलना में शेष सम्बन्धों को तुच्छ सिद्ध करते हुए– ” नारि धरम पति देव न दूजा।” को चरितार्थ कर संसार की नारियों को अपने चरित्र से आदर्श सीख दी।
यद्यपि कि श्रीराम के विरुद्ध आचरण करने के कारण सती और कैकेयी दोनों को भला– बुरा कहा गया। यथा–
सती कीन्ह चह तहहु दुराउ। देखहु नारि सुभाव प्रभाउ।
और
वर मांगत मन भइ नहि पीरा। गरि न जीह मुह परेउ न कीरा।
परंतु अवसर पाकर गोस्वामी जी ने महर्षि याज्ञवल्क्य के मुख से “सती असि नारी” कहला कर और उन्हीं के शिष्य महर्षि भारद्वाज के मुख से –
” तात कैकेइहि दोसु नहि, गई गिरा मति धूति।”
कहला कर दोनों को निर्दोष सिद्ध कर दिया, और नारी चरित्र रूप में दोनों को स्थापित होने का संकेत दिया।
– सियावर रामचंद्र की जय–
– जयन्त प्रसाद
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Ashish Gupta is an Indian independent journalist. He has been continuously bringing issues of public interest to light with his writing skills and video news reporting. Hailing from Sonbhadra district, he is a famous name in journalism of Sonbhadra district.