सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख)
– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )
–मति अनुरूप–
ॐ साम्ब शिवाय नम:
श्री हनुमते नमः
सचिव बैद गुरु तीनि जौ, प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर,होइ बेगिहीं नास।
मंत्री, वैद्य और गुरु यदि भय के कारण प्रिय बोलने लगें, तो राज्य,धर्म और शरीर तीनों का शीघ्र ही नाश हो जाता है। रावण की सभा में ऐसी ही स्थिति थी, जब रावण ने अपने मंत्रियों से उनकी राय पूछा तो वे रावण के भय के कारण रावण को प्रिय लगने वाला वचन बोलने लगे। यथा–
बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू।
जितेहु सुरासुर तव श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माहीं।
अर्थात बानर,भालू तो हमारे आहार हैं, इनकी क्या गिनती? जबकि उन्हें पता था कि क्या होने वाला है। जो रावण को बंदर भालुओं को आहार बता रहे थे, वे ही घर पर सोचते हैं कि अब राक्षस वंश का खैर नहीं है–
निज निज गृह सब करहिं विचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा।
वैद्य सुषेण जी के बारे में भी यही बात देखी जाती है। वह कुशल वैद्य हैं, जो लक्ष्मण का संजीवनी बूटी से उपचार कर सकता है, वह राक्षसों का उपचार क्यों नहीं कर सकता? पर मानस में सुषेण ने किसी राक्षस का उपचार का सेवा दिया हो या किसी ने उसकी सेवा लिया हो, ऐसा वर्णन नहीं आता। बल्कि राक्षस रात–दिन समाप्त होते रहे– “छीजहिं निसिचर दिन अरु राती।”
प्रतीत होता है कि पहले ही सुषेण वैद्य ने रावण की हां में हां करते हुए कह दिया था कि राक्षसों को मेरी आवश्यकता ही न पड़ेगी और युद्ध पूर्व उपचार सामग्री इकट्ठी ही नहीं की गई।
श्री शिव जी रावण के गुरु थे पर रावण को किसी भी अनर्थ के लिए कभी भी नहीं रोका। वे जानते थे कि रावण पर मेरे शिक्षा का अनुकूल प्रभाव होने वाला नहीं है–
करत राम विरोध सो, सपनेहु न हट क्यो ईश।
बल्कि शिवजी को तो उसका नाश ही देखना अच्छा लग रहा था, इसी कारण वे पार्वती जी से कहते हैं–
हमहू उमा रहे तेहि संगा। देखत राम चरित रन रंगा।
और इसी प्रकार के अन्य लोग भी रावण के सहायक बने–
सोइ रावन कहुँ बनी सहाई। स्तुति करहिं सुनाइ सुनाई।
इसी कारण रावण का सर्वनाश हो गया–
सचिव बैद गुरु तीनि जौ, प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर,होइ बेगिहीं नास।
जय जय श्री सीताराम
-जयंत प्रसाद
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