November 23, 2024 12:57 AM

Menu

रामचरित मानस :- “रामहि भजहिं ते चतुर नर” – मति अनुरूप – जयन्त प्रसाद 

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चन्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

 

– मति अनुरूप –

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

“रामहि भजहिं ते चतुर नर” –

रामचरित मानस के उत्तरकांड में वर्णित श्री काक भुशुण्डि जी का प्रसंग अवलोकनीय है। जब श्री राम जी ने मोह ग्रसित काक भुशुण्डि जी के शिर पर कृपा का हाथ रखा तो वे मोह और मोह जनित समस्त दु:खों से मुक्त हो गये। भुशुण्डि जी कहते हैं–

कर सरोज प्रभु मम सिर  धरेउ। दीनदयाल सकल दुख हरेउ।।

राम कीन्ह मोहिं विगत विमोहा। सेवक सुखद कृपा संदोहा।।

श्री राम जी ने कृपा कर महात्मा भुशुण्डि  को विगत मोह किया। भगवान की कृपा ‘सेवक सुखद’ अर्थात् सेवकों को सुख देने वाली है, इस प्रकार प्रभु के स्पर्श करते ही उनमें मोह के स्थान पर ज्ञान की प्रतिष्ठा हुई और विश्वास में दृढ़ता आयी। यथा–

जाने बिनु न होहिं परतीती। बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती।।

प्रीति बिना नहिं भगति दृढाई। जिमि खगपति जल कै चिकनाई।।

भगवान के चरणों में प्रीति के बिना भक्ति दृढ़ नहीं होती अस्तु केवल कृपा मात्र से भगवान या उनकी भक्ति पाना संभव नहीं है, अतः केवल कृपा होने के कारण– ‘सेवक सुखद’ अर्थात् भुशुण्डि जी को सभी सुख ही सुलभ हो सके–

काक भुसुण्डी मांगु बर, अति प्रसन्न मोहि जानि।

अनिमादिक सिधि अपर रिधि,मोच्छ सकल सुख खानि।

 इस प्रकार महात्मा भुशुण्डि को सब सुख तथा सभी सुखों का खजाना मोक्ष भी सुलभ हो गया। परंतु भगवान या उनकी भक्ति की प्राप्ति हेतु तो कुछ और ही अपेक्षित है, यथा–

“मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा।”

इस कारण भुशुण्डि जी को भगवान का कृपा स्पर्श प्राप्त करते ही वह विज्ञान प्राप्त हुआ जिससे उन्होंने भगवान से कृपा के साथ भगवान का नेह (अनुराग) भी मांग लिया।

जो प्रभु होइ प्रसन्न वर देहू। मो पर करहु कृपा अरु नेहू।।

तथा यह बात समझते देर नहीं लगी कि सभी सुखों और गुणों की पूर्णता भगवान की भक्ति (भजन) के अभाव में संभव ही नहीं है–

भगति हीन गुन सब सुख ऐसे। लवन बिना बहु विंजन जैसे।।

अर्थात् सभी गुणों और सुखों का सार तत्व भक्ति (भगवत् भजन) ही है। भक्ति अर्थात मन, वचन और कर्म, प्रभु को समर्पित कर देना।  इस प्रकार जीव को ईश्वर का ही मनन– चिंतन, गुणों, हरि– लीला का गायन तथा प्रभु की सेवा व प्रभु के अपेक्षानुकूल आचरण ही करना चाहिए – यही भक्ति या भजन है।  भक्ति अनमोल है – सुख तो भगवान की कृपा है, पर भक्ति भगवान की कृपा और स्नेह का अमृत फल।

भुशुण्डि जी के भक्ति मांग लेने के पश्चात श्री मुख का उद्गार हमें भक्ति की महत्ता को समझाता है–

सुनु बायस तैं सहज सयाना। काहे न मागसि अस  बरदाना।।

सब सुख खानिं भगति तै मांगी। नहिं जग कोउ तोहि सम बड़भागी।।

हेǃ काग शिरोमणि तुम बड़भागी हो जो भक्ति मांगी, जिसे करोड़ों जप, योग करने वाले मुनि भी प्राप्त नहीं कर पाते।  हे काग अब से (भक्ति प्राप्त हो जाने पर)  समस्त गुण तुममें वास करेंगे और–

भगति ग्यान विज्ञान विरागा। जोग चरित्र रहस्य विभागा।।

जानब तैं सबही कर भेदा। –––––

अर्थात् हे कागǃ अब से तुम भक्ति, ज्ञान, विज्ञान, बैराग्य, योग तथा संपूर्ण लीलाओं के रहस्य–  विभागादि समस्त साधन साध्य का भेद तूँ मेरे प्रसाद से साधन बिना ही जान जाएगा।हे काग ǃ  मुझे भक्त से अधिक कोई प्रिय नहीं–

पुनि –पुनि सत्य कहउं तोहिं पाहीं।  मोहिं सेवक सम प्रिय कोउ नाहीं।।

भगति हीन विरंचि किन होई। सब जीवहु सम प्रिय मोहिं  सोई।।

भगतिवंत अति नीचउ प्रानी। मोंहि प्रान प्रिय असि मम बानी।।

अर्थात् भक्ति हीन ब्रह्मा भी सामान्य प्रिय तथा भक्ति युक्त नीच से नीच जीव भी मुझे प्राण प्रिय हैं।

पुरुष नपुंसक नारि वा, जीव चराचर कोई।

सर्व भाव भज कपट तजि, मोहिं परमप्रिय सोई।।

सत्य कहउं खग तोहिं, सुचि सेवक मम प्रान प्रिय।

अस विचारि भजु मोहिं, परिहरि आस भरोष सब।

अतः हम संसारी जीव का एकमात्र कल्याण भजन अर्थात् भगवान की भक्ति से ही संभव है। मानस की यह डिम् डिम् घोष है कि–

वारि मथे घृत होइ बरू, सिकता ते बरू तेल।

विनु हरिभजन न भव तरिय, यह सिद्धांत अपेल।

अस्तु बिना भगवत् भक्ति (भजन) के संसार सागर से पार जाना संभव ही नहीं है और भक्ति हीन ज्ञानी की दशा भी– “ग्यानवंत अपि सो नर, पसु बिन पूंछ विषान।” की तरह है।

अतः हमें सब त्याग कर भजन में रंगना ही सर्व श्रेयस्कर है, यही सर्वमत है––

श्रुति सिद्धांत इहइ उरगारी।  राम भजिय सब काज विसारी।।

                                   व

कठिन काल मल कोष, जोग न जग्य न ग्यान तप।

परिहरि सकल भरोष, रामहिं भजहिं ते चतुर नर।

–जय श्री राम–

– जयंत प्रसाद

 

  • प्रिय पाठक!  रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग से जुड़े लेख प्रत्येक शनिवार प्रकाशित होंगे। लेख से सम्बंधित आपके विचार व्हाट्सप न0 लेखक- 9936127657, प्रकाशक-  8953253637 पर आमंत्रित हैं।

Click Here to Download the sonprabhat mobile app from Google Play Store.

For More Updates Follow Us On

For More Updates Follow Us On