सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख)
– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चन्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )
– मति अनुरूप –
ॐ साम्ब शिवाय नम:
श्री हनुमते नमः
वंदे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रूपिणम्।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चंद्र: सर्वत्र वन्द्यते।।
श्री रामचरितमानस में श्री गुरु की महत्ता आद्योपान्त प्रतिपादित है, पर आज कुछ मुख्य बिंदु पर ही विचार करते हैं। मानस के आरंभ में वन्दना के प्रसंग में मानसकार ने जिन नौ (वर्णानां अर्थ संघानां—————- रामाख्यमीशं हरिं –१- सरस्वती, २- गणेश, ३- पार्वती, ४- शिव, ५- गुरुदेव,६- बाल्मीकि,७- हनुमान,८- सीता,९- राम) की वन्दना की उसमें गुरु को पांचवें स्थान अर्थात् मध्य में रखा। शेष चार ऊपर और चार नीचे हैं। ऐहिक और पारलौकिक जीवन में भी गुरु ही केंद्र बिंदु है, अर्थात् हमारे जीवन मंगल का केंद्र या आधार गुरु ही हैं। इस प्रकार मध्य में स्थित गुरु देहरी दीप की तरह समान रूप से हमारे अंत:,बाह्य को चतुर्दिक प्रकाशित करता रहता है, कर रहा है, जिससे कवि में सर्वदर्शन की ऊर्जा का स्फुरण हो रहा है, जिसके प्रताप से–
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक।।
अर्थात गुरु कृपा से ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं और रामचरित्र रुपी मणि और माणिक्य गुप्त ओर प्रकट जहाँ जो जिस खान में है, वह सब दिखाई पड़ने लगता है।
गुरु की महत्ता को सूचित करने हेतु गोस्वामी जी की अभिव्यक्ति कौशल ध्यान देने योग्य है। यथा पहले तो उन्होंने गुरु के सर्वांग की वन्दना की– ” वंदे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रूपिणम्,” फिर उनके चरणों की वंदना की– ” वंदउँ गुरूपद कंज,कृपासिन्धु नररूप हरि,” और फिर गुरु के चरण रज की वन्दना की– “बंदउ गुरु पद पदुम परागा।” अर्थात् सर्वप्रथम उन्होंने गुरू की वंदना की जिनका आश्रय उन्हें अपेक्षित है, पर आज रामचरित की रचना हेतु तो उनकी चरणों की कृपा ही पर्याप्त है, पर गुरु की महत्ता तो और भी अधिक है और इस रचना के लिए तो गुरु के चरण रज की कृपा ही पर्याप्त है।
इस प्रकार गोस्वामी जी ने गुरु के चरण नख की ज्योति में बैठकर मानस की रचना संपन्न की। यथा–
श्री गुरु पद नख मनिगन जोती। सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती।।
गुरु की महत्ता असीम है, पर कितना? क्या परमेश्वर से भी अधिक? यह प्रश्न सर्वत्र व्याप्त है और इसके उत्तर में लोग अनेक राय या तर्क देते हैं, कुछ लोग गुरु को ईश्वर से भी बड़ा बताते हैं, निसंदेह गुरु की कृपा से ही हमें ईश्वर का बोध होता है और गुरु ने ही हमें ज्ञान प्राप्त कराया तथा ईश्वर और शेष सर्वस्य के प्रति हमें कर्तव्य बोध कराया। इस कारण इस संदर्भ में हम उन्हें (गुरु को) ईश्वर से भी उच्च स्थान देते हैं। अब माता-पिता को ही देख लें,यदि उनके द्वारा हमें जन्म जीवन नहीं मिलता तो गुरु क्या कर पाते? इस आधार पर ही हम माता-पिता को गुरु से भी ऊंचा स्थान देते हैं।
यथार्थतः इस सृष्टि में कोई बड़ा– छोटा नहीं है, न ही किसी का महत्व कम या अधिक है। सभी को ईश्वर ने ऐसे स्थान पर बुद्धिमतापूर्ण स्थापित किया है कि सभी अपने- अपने स्थान पर अधिक महत्वपूर्ण है, यथा-
” सुधा सराहिय अमरता, गरल सरहिय मीचु।”
इस प्रकार ” को बड़ छोट कहत अपराधू।”
पर यह बात स्पष्ट है कि गुरु, शिष्य और समस्त जीवो का परम् लक्ष्य की एकमात्र ईश्वर ही है। (भक्ति, मोक्ष आदि के रूप में) गुरु इस परम् लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक, प्रेरक या पथ प्रदर्शक है या यूं कहें कि गुरु तो उस परम लक्ष्य की प्राप्ति का साधन उपलब्ध कराता है या साधन है पर साध्य तो ईश्वर ही है।
शबरी ने भी अपने गुरु मतंग ऋषि के कृपा से ही राम को प्राप्त किया –
सबरी देखि राम गृह आय। मुनि के वचन समुझि जिय भाए।
गुरु बशिष्ठ ने भी ईश्वर की प्रतीक्षा में मंद उपरोहित्य कर्म स्वीकार किया। यथा–
उपरोहित्य कर्म अतिमंदा। बेद पुरान सुमृति कर निन्दा।।
जब न लेउँ मैं तब विधि मोहीं। कहा लाभ आगे सुत तोंहीं।।
परमातमा ब्रह्म नर रूपा। होइहिं रघुकुल भूषन भूपा।।
तब मैं हृदय विचारा, जोग जग्य ब्रतदान।
जा कहुं करिय सो पैहउँ, धर्म न एहि सम आन।
परंतु यह ध्रुव सत्य है कि बिना गुरु के चरणों की कृपा के अपने चरम लक्ष्य पर पहुंचना असंभव सा है–
गुरु बिनु भवनिधि तरइ कि कोई। जो विरंचि संकर सम होई।।
अर्थात गुरु के कृपा के अभाव में ब्रह्मा और शिव के समान व्यक्ति भी संसार सागर से पार नहीं उतर सकता।
जय श्री सीताराम
–जयन्त प्रसाद
- प्रिय पाठक! रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग से जुड़े लेख प्रत्येक शनिवार प्रकाशित होंगे। लेख से सम्बंधित आपके विचार व्हाट्सप न0 लेखक- 9936127657, प्रकाशक- 8953253637 पर आमंत्रित हैं।
Click Here to Download the sonprabhat mobile app from Google Play Store.
Son Prabhat Live News is the leading Hindi news website dedicated to delivering reliable, timely, and comprehensive news coverage from Sonbhadra, Uttar Pradesh, and beyond. Established with a commitment to truthful journalism, we aim to keep our readers informed about regional, national, and global events.
The specified slider is trashed.