संपादकीय – सुरेश गुप्त “ग्वालियरी”
श्राद्ध पक्ष चल रहा है,परंतु शहरों से कौवे नदारद हैं, हम भोजन लेकर खड़े है परंतु सड़क पर आवारा कुत्ते ही नजर आते है ,सो उसी को कौवे का प्रतिरूप मानकर खाना खिलाकर अपने कर्तव्य का इति श्री कर लेते है। हमारे घर में न आंगन है न मुड़ेर है न उनको वह सम्मान,कभी यह शगुन का प्रतीक था,अनेक कवियों ने कागा पर रचनाएं भी लिखी है ” मुड़ेरवा कागा काहे बोले।” हमने उन्हें हिमाकत से देखा ,पेड़ कटकर उनका निवास खत्म किया,प्रकृति से छेड़छाड़,धरती का दोहन कर बेजुबान जीवो का जीवन मुश्किल में डाल दिया,ऊपर से टावरों का रेडिएशन ने भी पक्षियों को बहुत नुकसान पहुंचाया है, सो भईए पुरखों तक भोजन पहुंचाना है तो इनका संरक्षण भी करो.. वरना हमारा श्राद्ध कर्म कैसे पूरा होगा।
हां एक बात और.. हम अपने कर्तव्य भूलते जा रहे है.. परंतु कौवों में आज भी कौवा पन जिंदा है,,श्राद्ध पक्ष में वाकायदा उनके नेता द्वारा दिशा निर्देश प्राप्त होता है!!
उस घर भोग न लीजिए,
वहां दीजिए श्राप!
जिस घर भूखे रह रहे,
बूढ़े मां औ बाप!!
Ashish Gupta is an Indian independent journalist. He has been continuously bringing issues of public interest to light with his writing skills and video news reporting. Hailing from Sonbhadra district, he is a famous name in journalism of Sonbhadra district.