कला एवं साहित्यमुख्य समाचारसम्पादकीय
सम्पादकीय –ः कविता (समीक्षा – महंगाई) – सुरेश गुप्त “ग्वालियरी”
सोनप्रभात– कला एवं साहित्य
सुरेश गुप्त “ग्वालियरी”– विन्ध्यनगर⁄सिंगरौली
समीक्षा- (महंगाई)
महँगा सब कुछ हो गया,
कटहल दस का पाव !
पर नेता के चरित्र का,
वही आज भी भाव !!बढा रेट पट्रोल का,
बेची अपनी कार !
लाया भैंस खरीद कर ,
शुरु किया व्यापार !!महँगा सब कुछ हो गया,
सस्ता अब भी खून !
दस हजार उसको मिला,
बहा सड़क पर खून !!महँगा अब लगने लगा,
इन अँखियन का वार !
लेकर गया बजार में,
डूबे पाँच हजार!!– सुरेश गुप्त,ग्वालियरी