gtag('config', 'UA-178504858-1'); रामचरितमानस -: "इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा।"- मति अनुरुप- अंक 30. जयंत प्रसाद - सोन प्रभात लाइव
मुख्य समाचारसोन सभ्यता

रामचरितमानस -: “इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा।”- मति अनुरुप- अंक 30. जयंत प्रसाद

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

–मति अनुरूप–

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

 

इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा।

प्रभु श्री राम ने लंका में प्रवेश कर सुबेल पर्वत पर अपनी सेना सहित डेरा डाला।सुबेल शैल शिखर के बारे में यह कहा जाता है कि वहां काल का पहरा रहता था, इस कारण सामान्यतः वहां कोई नहीं जा सकता था।  यह वही पर्वत शिखर था, जिस पर हनुमान जी निर्भय चढ़ गए थे और वहां से लंका का अवलोकन किया था–

सैल बिसाल देखि एक आगे। तापर धाइ चढ़ेउ भय त्यागे।

उमा न कहु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहिं खाई। 

गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी।

 

हनुमान जी में प्रभु के प्रताप का बल था, अतः उन्होंने उस काल को परास्त कर यमपुरी वापस भेज दिया था।  इसी बात का संकेत मंदोदरी और प्रहस्त ने रावण को समझाते हुए किया, कि जो सुबेल पर्वत शिखर पर डेरा जमाने का सामर्थ्य रखते हैं वे कोई साधारण मानव नहीं हो सकते, जिसे हम अपना ग्रास बना लें।  अतः राम से रार ठीक नहीं है, प्रहस्त कहता है–

जेहि बारीस बंधायउ हेला। उतरेउ सेन समेत सुबेला।

अर्थात जहां जाने का सामर्थ्य लंका के वीर राक्षसों में नहीं है, वहां डेरा जमाने का साहस करने वाला व्यक्ति साधारण मानव नहीं हो सकता।  मंदोदरी ने भी रावण को यही समझाया–

जेहि जलनाथ बंधायउ हेला। उतरे प्रभु दल सहित सुबेला।

सुबेल पर्वत शिखर त्रिकूट (तीनों शिखरों) में से एक था, दूसरे कूट पर रावण का महल और तीसरे पर अशोक उद्यान था। हनुमान जी ने पहले से ही विचार कर रखा था, कि लंका में यहीं प्रभु का टिकना ठीक रहेगा जहां से लंका ठीक सामने अधिक स्पष्ट दिखती है और यह शिखर लंका नगरी की ऊंचाई पर भी है। अतः प्रभु ने वहीं डेरा डाला।

“उतरे सेन सहित अति भीरा” अर्थात् चुपके से नहीं प्रभु ने निर्भयता पूर्वक धूमधाम के साथ वहां डेरा डाला। “इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। “ किसी कथा का वर्णन करने के बीच दूसरे जगह की कथा हेतु इहां और उहां शब्द मानस में अनेक स्थानों पर प्रयुक्त हुआ है। श्री गोस्वामी जी ने प्रभु श्री राम के कथा के प्रसंग में ‘इहां’ शब्द का प्रयोग किया है। यथा–

इहां प्रात जागे रघुराई। 

या

इहां राम अंगदहिं बोलावा।

इहां शब्द राम कथा के संदर्भ में प्रयोग करके श्री गोस्वामी जी अपनी निकटता प्रभु के साथ सूचित कर रहे हैं। इसी प्रकार लंका के कथा प्रसंग में गोस्वामी जी ने “उहाँ” शब्द का प्रयोग कर यह सूचित कर रहे हैं कि वहां हमसे दूर रावण की, लंका की, या परपक्ष की कथा इस प्रकार है। यथा–

“उहां निसाचर रहहिं ससंका।   

या

उहाँ अर्धनिसि रावन जागा।”  इत्यादि।

श्री राम सुबेल शिखर जो सबसे ऊंचा, समतल सुंदर और सुविधा पूर्ण था उसी पर सेना सहित टिके। वहीं पर लखन लाल जी ने वृक्षों के कोमल पत्तों का आसन बनाया, उस पर फूलों को सजाया तथा सबसे ऊपर मृगछाला बिछाकर प्रभु को आसीन कराया–

सिखर एक उतंग अति देखी। परम रम्य सम सुभ्र विसेषी।
तह तरु किसलय सुमन सुहाए। लक्षिमन रचि निज हाथ डसाए।

तापर रुचिर मृदुल मृग छाला। तेहिं आसन आसीन कृपाला।

(मृग छाल की चर्चा हम अपने अगले अंक में करेंगे।)

इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा।

जय जय श्री राम 

– जयंत प्रसाद

  • प्रिय पाठक!  रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग से जुड़े लेख प्रत्येक शनिवार प्रकाशित होंगे। लेख से सम्बंधित आपके विचार व्हाट्सप न0 लेखक- 9936127657, प्रकाशक-  8953253637 पर आमंत्रित हैं।

Click Here to Download the sonprabhat mobile app from Google Play Store.

 

रामचरितमानस –ः “कुलिसहु चाहि कठोर अति, कोमल कुसुमहु चाहि।” –मति अनुरूप– जयंत प्रसाद

पूर्व प्रकाशित रामचरितमानस अंक – मति अनुरूप– 

 

Ashish Kumar Gupta

Ashish Kumar Gupta is an Indian news anchor and journalist, who is the managing director and editor-in-chief of Son Prabhat Web News Service Private Limited Sonbhadra India. In the field of journalism, this journalist, who constantly talks about social interest and public welfare with his pen, is establishing a new dimension in the journalism of the district. Email - Editor@sonprabhat.live

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
.
Website Designed by- SonPrabhat Web Service PVT. LTD. +91 9935557537
.
Close