gtag('config', 'UA-178504858-1'); आदिवासियों ने बैरखड़ गांव में पांच दिन पहले ही मनाई होली का त्यौहार। - सोन प्रभात लाइव
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आदिवासियों ने बैरखड़ गांव में पांच दिन पहले ही मनाई होली का त्यौहार।

  • सोनभद्र जनपद के कई गांव में जिंदा होली (होली की तिथि से पहले) मनाने की है परम्परा।

विंढमगंज – सोनभद्र -: पप्पू यादव / सोनप्रभात

विंढमगंज।।भारत ही एक देश है जहां अनेक सभ्यता एवं संस्कृति के लोग रहते हैं सबकी शादी विवाह एवं त्यौहारों को मनाने का अलग – अलग अंदाज है ।संस्कृतियों का समुच्चय है भारत देश। इसमें विविधताओं के असंख्य स्वरूप हैं। उसके अपने मायने हैं। अपनी विशेषता है और खूबसूरती है। इसीलिए तो जनपद के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र दुद्धी तहसील के कई ऐसे गांव है जहां पर होली मनाने की अलग और अति प्राचीन परंपरा है।

इसके वर्तमान स्वरूप में अत्यंत प्राचीन काल की संस्कृति की झलक दिखाई पड़ रही है।इसी क्रम में दुद्धी ब्लॉक क्षेत्र के बैरखड़ गांव में आज बुधवार को आदिवासियों ने रंगों का त्यौहार होली परम्परा गत तरीके से मनाई और दिन भर रंगों से सराबोर होकर झूमते रहे।

ऐसी मान्यता है कि बैरखड़ गांव के आदिवासी 5 दिन पहले होली का त्योहार आदिवासी परम्परा के अनुसार मनाते हैं।एडवांस होली मनाने की परम्परा को लेकर निर्वतमान ग्राम प्रधान अमर सिंह गौड़ कहते हैं कि गांव में जिन्दा होली मनाने की परम्परा काफी पुरानी है ।गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि बहुत पहले एक बार गांव में भारी धन जन की क्षति हुई थी और गांव महामारी जैसी स्थिति हो गई थी।गांव के लोग काफी परेशान थे तब उसका निदान ढूंढने के लिए आदिवासियों ने काफी पहल किया।उस समय आदिवासी समुदाय के बुजुर्ग लोगो एवं धर्माचार्यों ने चार – पांच दिन पहले होली मनाने का सुझाव दिया था तभी से बैरखड़ गांव में जिंदा होली मनाने की परंपरा चल पड़ी जिसे आदिवासी समाज आज भी संजोए हुए हैं।गांव के लोग बताते हैं कि गांव में सुख समृद्धि बनी रहती हैं।उसी तरह नगवां तथा मधुबन सहित अन्य स्थानों पर भी जिन्दा होली मनाने की परम्परा है।

  • मानर की धुन पर झूमती हैं पुरूष और महिलाएं-

ब्लॉक क्षेत्र के बैरखड़ में बुधवार को आदिवासियों द्वारा परम्परा के साथ जिंदा होली मनाई गई ।वहां मानर की थाप पर होली खेलने की परम्परा आज भी कायम है।बैरखड़ गांव आदिवासी जनजाति बाहुल्य गांव हैं ।यहां के निवासी हर त्योहार अपने परम्परा एवं रीति रिवाज के अनुसार मनाते हैं।वैसे भी इस जनजाति का इतिहास प्राचीन काल तक जाता है। ये लोग समूह में इकट्ठा होकर एक-दूसरे को अबीर लगाते है और मानर नामक वाद्ययंत्र की धुन पर नृत्य करते हैं। इस नृत्य में महिलाएं भी शामिल रहती हैं। दिनभर चलने वाले इस कार्यक्रम में पुरुष वर्ग महुए से बनी कच्ची शराब का सेवन भी करते हैं।

  • नियत तिथि पर नहीं मनाते होली-

बैरखड़ के निवर्तमान ग्राम प्रधान अमर सिंह गौड़ ,छोटेलाल सिंह ,रामकिशुन सिंह बताते है कि किसी समय होली के दिन सभी आदिवासी लोग नशे में आनंदित थे। सभी लोग नाच-गा रहे थे, तभी किसी अनहोनी घटना में कई लोग एक साथ मर गए थे तब आदिवासी धर्माचार्यों ने होली मनाने की परंपरा नियत तिथि से पूर्व मनाने की सलाह दी।उसके बाद से गांव में 4 -5 दिन पहले होली मनाई जाने लगी और गांव सुख शांति और अमन चैन कायम हो गई तब से ही गांव में जिंदा होली मनाने की परंपरा हो चली जो अब तक जारी है।उन्होंने बताया कि होलिका दहन वैगा या अपनी ही बिरादरी के मनोनीत वैगा या पंडित लोगों से कराने की प्रथा है। इस स्थल को संवत डाड़ कहा जाता है।जहां होलिका दहन के अगले दिन होलिका दहन के अवशेष को उड़ाते हुए दिनभर होली खेलते हुए अपने ईष्ट देव की आराधना एवं पूजा पाठ करते हैं।

Ashish Kumar Gupta

Ashish Kumar Gupta is an Indian news anchor and journalist, who is the managing director and editor-in-chief of Son Prabhat Web News Service Private Limited Sonbhadra India. In the field of journalism, this journalist, who constantly talks about social interest and public welfare with his pen, is establishing a new dimension in the journalism of the district. Email - Editor@sonprabhat.live

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