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रामचरितमानस -: “हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहि कोउ राम चरन अनुरागी।”- मति अनुरुप- अंक 33. जयंत प्रसाद

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

–मति अनुरूप–

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहि कोउ राम चरन अनुरागी।

श्री रामचरितमानस के लंका कांड में लक्ष्मण द्वारा प्रभु को जो मृगछाला पर आसीन कराया, वह लक्ष्मण के इच्छानुरूप ही परिणाम दे रहा है।  प्रभु विश्रामावस्था में भी सीता हेतु विकल और क्रियाशील हैं। वे  मंत्रणा कर रहे हैं, दोनों हाथों से वाणों को सुधार रहे हैं और अंगद और हनुमान प्रभु के चरण सेवा में लगे हैं। यथा–

प्रभु कृत सीस कपीस उछंगा। बाम दहिन दिसि चाप निषंगा।
दुहु कर कमल सुधारत बाना। कह लंकेस मंत्र लगि काना।
बड़भागी अंगद हनुमाना।चरन कमल चापत विधि नाना।  

सुबेर शिखर पर प्रभु विश्रामावस्था में भी विकल हैं। यहां प्रभु सभी को यथोचित सम्मान की कृपा सुलभ करा रहे हैं, अर्थात सुग्रीव के गोद में अपना शिर रखकर अपनी मित्रता तथा उनके समीप अपना शिर रखकर उन्हें राजा होने का सम्मान दे रहे हैं। प्रभु के बाम भाग में धनुष और दाहिने भाग में तरकस है,  जिससे आसानी से आवश्यकता पड़ने पर बाएं हाथ से धनुष उठाकर दाहिने हाथ से बाण का संधान करने में सुभीता हो।  दोनों हाथों से वाणों का सुधारना सीता प्राप्ति हेतु निरंतर क्रियाशीलता और विरह प्रदर्शन की लीला है।  अपने समीप कान के पास दूसरा स्थान विभीषण को मिला है क्योंकि वे भी सखा है पर अभी पूर्णत: राजा नहीं हुए हैं। भाव यह भी है कि लंका में आगे की रणनीति की मंत्रणा का श्रेष्ठ भार विभीषण जी पर ही है।

अब तीसरा स्थान युवराज होने के कारण अंगद का है और सुग्रीव के मंत्री होने के कारण चौथा स्थान हनुमान जी को प्राप्त है और दोनों को प्रभु पाद सेवन का सुअवसर प्राप्त हो रही है। मानसकार ने उन्हें बड़भागी शब्द से सम्मानित किया है, मानस में चरण सेवकों को अनेक स्थान पर बड़भागी कहा गया है, अर्थात गोस्वामी जी के नजर में चरण सेवक ही बड़भागी है। यथा–

हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहि कोउ राम चरन अनुरागी
बड़भागी अंगद हनुमाना। चरनकमल चापत विधि नाना।
सोइ गुनग्य सोई बड़भागी। जो रघुवीर चरन अनुरागी
अहह धन्य लक्षिमन बड़भागी। राम पदारविन्द अनुरागी।

अब प्रभु की दृष्टि चंद्रमा पर पड़ी जो राम के विरह को बढ़ा रहा है और रावण की तरह अभिमानी और काला हृदय वाला अशंक प्रतीत हो रहा है। अतः प्रभु अपने निकट बैठे चारों से पूछ पडते हैं–

कह प्रभु ससिमहु मेचकताई। कहहु काह निज निज मति भाई।

अर्थात यह चंद्रमा में काला धब्बा कैसा है? स्वाभाविक है भूखे को चंद्र और सूर्य भी रोटी की तरह ही लगते हैं।  इसी बहाने प्रभु सबकी भावना की प्रधानता भी जानना चाहते हैं और इस प्रश्न के उत्तर में सभी ने अपनी प्रधान भावना अनजाने ही कह दिया।  उत्तर देने का क्रम भी वही है। पहले सुग्रीव जी बताते हैं कि चंद्रमा पर भूमि की छाया है–

कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। ससि महु प्रगट भूमि कै झाई।

राजा होने के कारण सुग्रीव जी के मन में पृथ्वी की सोच या लालसा की कामना ही बलवती है। अतः चंद्रमा की कालिमा उन्हें पृथ्वी की छाया प्रतीत हो रही है।

अब दूसरा स्थान विभीषण जी का है, वे बताते हैं कि राहु ने चंद्रमा को मारा है और उसी का दाग उसके हृदय में है–

मारेउ राहु ससिहिं कह कोई। उर यह परी स्यामता सोई।

अर्थात विभीषण जी को छाती पर रावण का पद प्रहार साल रहा है। इस कारण चंद्रमा का दाग उन्हें चोट का दाग प्रतीत हो रहा है।

अब तीसरा उत्तर अंगद का है, वे कहते हैं कि जब ब्रह्मा ने रति के सुंदर मुख का निर्माण किया तो चंद्र का सार भाग निकाल लिया और चांद में छ्द्रि हो गया।  जिससे होकर आसमान दिख रहा है–

कोउ कह जब विधि रति मुख कीन्हा। सार भाग ससिकर हर लीन्हा।
छ्द्रि सो प्रगट इन्दु उर माहीं। तेहि मग देखिअ नभ परिछाहीं। 

अर्थात बालि के पश्चात किष्किंधा का राज्य अंगद का था, आज उसे ही राजा होना चाहिए था पर विधिवश (दुर्भाग्य से) वह अभी युवराज ही है। राज्याधिकार का सार भाग उससे छीन लिया गया है और उसे रति मुख में प्रतिष्ठित करना उसके हृदय में छेद कर दिया है। अतः उन्हें चांद में छेद ही दीख रहा है।

इन तीनों का उत्तर प्रभु के भावना के अनुकूल नहीं है। यह तो प्रभु को पीडित कर रहा है इस कारण प्रभु कहते हैं कि मुझे तो लगता है कि चांद विष का भाई है। इस कारण  चांद ने विष को अपने हृदय में स्थान दे रखा है जिससे ही उसकी किरणें बिरही नर नारियों को जलाती है, वही स्यामता है। यहां प्रभु के हृदय में जलती भावना भी स्पष्ट प्रकट हो रहा है–

प्रभु कह गरल वंधु विष केरा। अतिप्रिय निज उर दीन्ह बसेरा।
विष संजुत कर निकर पसारी। जारत विरह वंत नर नारी। 

अब हनुमानजी की बारी है, हनुमान जी ने सोंचा प्रभु  व्याकुल प्रतीत हो रहे हैं, उनके हाथ में वाण भी है, जो उठा है, तो कहीं चलेगा ही, कहीं चंद्रमा पर ही ना चल जाए अतः अपनी भावना का परिचय देते हुए चांद का बचाव करते हुए कहा–

हे प्रभु चंद्रमा आपका दास है, उसके हृदय में आपकी श्यामल मूर्ति बसी है, वह छाया के रूप में दीख रही है–

कह हनुमंत सुनहु प्रभु, ससि तुम्हार प्रिय दास। 
तव मूरति विधु उर बसति, सोइ स्यामता अभास।

और तब प्रभु ने चंद्रमा के तरफ से अपना ध्यान हटाकर अपने उस वाण से अखाड़ा देखते हुए अशंक अभिमानी रावण को चुनौती देते हुए –

छत्र मुकुट  ताटंक सब हते एक ही बान।

जय जय श्री सीताराम

  -जयंत प्रसाद

 

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Ashish Kumar Gupta

Ashish Kumar Gupta is an Indian news anchor and journalist, who is the managing director and editor-in-chief of Son Prabhat Web News Service Private Limited Sonbhadra India. In the field of journalism, this journalist, who constantly talks about social interest and public welfare with his pen, is establishing a new dimension in the journalism of the district. Email - Editor@sonprabhat.live

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