gtag('config', 'UA-178504858-1'); रामचरितमानस-: "सो पर नारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चन्द कि नाईं। " - मति अनुरुप- अंक 35. जयंत प्रसाद - सोन प्रभात लाइव
मुख्य समाचारसोन सभ्यता

रामचरितमानस-: “सो पर नारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चन्द कि नाईं। ” – मति अनुरुप- अंक 35. जयंत प्रसाद

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

–मति अनुरूप–

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

श्री रामचरितमानस में रावण के अनेक ऐसे भी मंत्री थे, जिन्होंने रावण का भय न करके उचित सलाह दी। उसमें विभीषण और माल्यवान प्रमुख थे।वस्तुतः ये केवल मंत्री ही नहीं थे, विभीषण रावण के भाई और माल्यवान जी नाना थे। अतः ये भय त्याग कर अपने कर्तव्य का पालन करते हुए उचित सलाह दी पर रावण उन्हें अपने दरबार से निकाल दिया।माल्यवान तो अपने घर चले गए।

विभीषण जी ने रावण को सलाह दी कि हे महाराजǃ यदि जो कोई अपना कल्याण चाहता है तो वह पराई स्त्री का मुंह चौथ की चांद की तरह ना देखे। किसी के लिए भी भूत द्रोह कल्याणकारी नहीं है और थोड़ा भी लोभ करने वाले को कोई अच्छा नहीं कहता–  “जौ आपन चाहै कल्याना।” 

सो पर नारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चन्द कि नाईं।
गुन सागर नागर नर जोउ। अलप लोभ भल कहइ न कोउ।

परनारि लिलार अर्थात् ‘काम’, भूत द्रोह अर्थात ‘क्रोध’ तथा अल्प लोभ अर्थात ‘थोड़ा भी लोभ’। यह तीनों ही नर्क के पंथ हैं–

काम क्रोध मद लोभ सब, नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुवीरहिं, भजहु भजहि जेहि संत।

और यही तीन प्रबल दुष्ट भी हैं जो सभी के मन में क्षोभ उत्पन्न कर देते हैं–

तात तीनि अति प्रबल खल, काम क्रोध अरू लोभ।
मुनि विग्यान धाम मन, करहिं निमिष महुँ क्षोभ।

‘जौ आपन चाहै कल्याना’ का तात्पर्य है कि रावण ही नहीं जो भी अपना कल्याण चाहता है, वह काम, क्रोध और लोभ का त्याग कर दें। यह बात रावण को सीधे संबोधित नहीं किया गया अन्यथा रावण को बुरा लगता। उपर्युक्त प्रथम दोहे में काम, क्रोध और लोभ को छोड़ना ही मात्र नहीं कहा गया वरन् साथ ही प्रभु भजन का भी संकेत किया गया है।

श्री विभीषण जी ने श्री राम को परमेश्वर बताते हुए रावण को सीता जी को लौटा कर राम के शरण में जाने की सलाह दी। जिसका अनुमोदन माल्यवान जी ने भी किया–

तात अनुज तव नीति विभूषण।
सो उर धरहु जो कहत विभीषन।

जिसपर रावण अत्यंत क्रोधित हो दोनों को दरबार से निकल जाने को कहा। इसपर माल्यवान तो अपने घर चला गया। परन्तु साधु वृत्ति विभीषण मानापमान को सम्मान समझ पुनः हाथ जोड़ निवेदन किया–

माल्यवान गृह गयउ बहोरी। कहइं विभीषण पुनि कर जोरी।
तात चरन गहि मांगउँ, राखहु मोर दुलार।
सीता देहु राम कहुँ, अहित न होइ तुम्हार।

अब माल्यवान के चले जाने के पश्चात सभा में कोई भी ऐसा नहीं था जो विभीषण जी के बातों का समर्थन करे, अतः ग्रंथकार ने विचार किया कि यदि इस अधर्म की सभा में कोई धर्म का समर्थन नहीं किया तो यह ठीक नहीं है, इसका समर्थन होना ही चाहिए अस्तु स्वयं ही उस बात का समर्थन बड़ी चतुराई से किया–

बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही विभीषन नीति बखानी।

जय जय श्री सीताराम

  -जयंत प्रसाद

 

  • प्रिय पाठक!  रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग से जुड़े लेख प्रत्येक शनिवार प्रकाशित होंगे। लेख से सम्बंधित आपके विचार व्हाट्सप न0 लेखक- 9936127657, प्रकाशक-  8953253637 पर आमंत्रित हैं।

 

Click Here to Download the sonprabhat mobile app from Google Play Store.

Ashish Kumar Gupta

Ashish Kumar Gupta is an Indian news anchor and journalist, who is the managing director and editor-in-chief of Son Prabhat Web News Service Private Limited Sonbhadra India. In the field of journalism, this journalist, who constantly talks about social interest and public welfare with his pen, is establishing a new dimension in the journalism of the district. Email - Editor@sonprabhat.live

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
.
Website Designed by- SonPrabhat Web Service PVT. LTD. +91 9935557537
.
Close