चंद पंक्तियां आपकी नजर :- ” हमारा सोनभद्र “
पंक्तियां – सुरेश गुप्त’ग्वालियरी’ (सोनप्रभात सम्पादक मण्डल सदस्य) हमारा सोनभद्र ! कल कल बहती थी नदी, जंगल था आबाद! पत्थर करते थे यहाँ, मौसम से संवाद!! हरियाली चारों तरफ, महुआ पीपल पेड़! करने बंजर आ गए, लिये मुखौटा भेड़!! कोई पत्थर खा गया, तरुवर कोई काट! बिजली पानी पी गयी, करके बन्दर बाँट!! सूखीं…