NagPanchami – कैसे हुई नागपंचमी की शुरुआत, जानिए इससे जुड़ी खास बातें।

सोन प्रभात – धर्म संस्कृति विशेष लेख – एस ०के० गुप्त “प्रखर”
NagPanchami नागपंचमी के दिन वासुकी नाग, तक्षक नाग, शेषनाग आदि की पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घर के द्वार पर नागों की आकृति भी बनाते हैं। इस बार नागपंचमी का त्योहार 13अगस्त 2021 शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा।
नाग पंचमी के दिन नाग का चित्र या मिट्टी की सर्प की मूर्ति, लकड़ी की चौकी, चीनी का पंचामृत, लड्डू और मालपुए, सूत्र, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बेलपत्र, आभूषण, पुष्प माला, धूप-दीप, ऋतु फल,जल, पुष्प, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, पान का पत्ता दूध, कुशा, गंध, धान, लावा, गाय का गोबर, घी, खीर और फल आदि।
सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोगो की मान्यता है कि इस दिन सर्पों की पूजा करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं। इसलिए इस खास तिथि पर सर्पों को दूध पिलाने की भी परंपरा है। नाग पंचमी के दिन वासुकी नाग, तक्षक नाग, शेषनाग आदि की पूजा की जाती है।
- क्यों मनाते है नागपंचमी का त्योहार:—
जब देवताओं और असुरो ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया गया तो नाग ने अपनी माता की आज्ञा नहीं मानी जिसके कारण उसे श्राप मिला कि राजा जनमेजय के यज्ञ में जलकर भस्म हो जाए। श्राप के डर से नाग घबरा गए और ब्रह्माजी की शरण में गए। ब्रह्माजी ने नागों के इस श्राप से बचने के लिए बताया कि जब नागवंश में महात्मा जरत्कारू के पुत्र आस्तिक उत्पन्न होगें। वही आप सभी की रक्षा करेंगे। ब्रह्माजी ने नागो को रक्षा के लिए यह उपाय पंचमी तिथि को बताया था। आस्तिक मुनि ने सावन की पंचमी वाले दिन ही नागों को यज्ञ में जलने से रक्षा की थी। और इनके जलते हुए शरीर पर दूध की धार डालकर इनको शीतलता प्रदान की थी। उसी समय नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी मेरी पूजा करेगा उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा। तभी से पंचमी तिथि के दिन नागों की पूजा की जाने लगी।
पुराणों के अनुसार नागों को पाताल लोक का स्वामी माना जाता है। सांपो को क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। सांप चूहों आदि से किसान के खेतों की रक्षा करते हैं। साथ ही नाग भूमि में बिल बना कर रहते हैं इसलिए नागपंचमी के दिन भूलकर भी भूमि की खुदाई नहीं की जाती है।
- नाग पंचमी के दिन पढ़ा जाने वाला मंत्र:—
सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिता:॥
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडगेषु तेषु सर्वेषु वै नम:॥
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शङ्ख पालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषत:।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥
सनातन परंपरा में नागों की पूजा का महत्व है। भगवान शिव का आभूषण माने जाने वाले नाग देवता की नागपंचमी के दिन विशेष पूजा की जाती है।