
- 5 सितम्बर शिक्षक दिवस के अवसर पर जिला विद्यालय निरीक्षक सोनभद्र ने आयोजित किया शिक्षक सम्मान समारोह, मांगे थे जिला के उत्कृष्ट शिक्षको की सूची।
सोनभद्र – सोन प्रभात
आशीष कुमार गुप्ता “अर्ष”
शिक्षक अपने जीवन काल में अनगिनत बच्चों का भविष्य के निर्माण मुख्य भूमिका निभाता है, गुरु की तुलना ईश्वर से भी ऊपर किया जाता रहा है। कबीर दास ने भी कहा है –
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।।
अर्थात् – गुरू और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोविंद को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

शिक्षक को राष्ट्र निर्माता भी कहा गया है, बीते 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के अवसर पर जगह – जगह पर शिक्षको का सम्मान समारोह आयोजित किए गए थे।जिसके क्रम में म्योरपुर विकासखंड के लिलासी कला गांव में स्थित राजा चंडोल इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य (1992 से अब तक) जयंत प्रसाद को जिला सोनभद्र पर जिला विद्यालय निरीक्षक, जिलाधिकारी सोनभद्र की उपस्थिति में सदर विधायक रॉबर्ट्सगंज भूपेश चौबे, उत्तर प्रदेश राज्य सभा सांसद रामशकल द्वारा अंगवस्त्रम और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया, शिक्षको का सम्मान ही उनकी अर्जित की हुई संपति होती है।

सम्मान समारोह में राजकीय इंटर कॉलेज पिपरी के अंग्रेजी के शिक्षक अशोक कुमार “अवाक” के साथ ही जिले के अनेक शिक्षकों का सम्मान किया गया।शिक्षक दिवस पर आयोजित शिक्षक सम्मान समारोह की प्रबुद्धजनों ने भूरि – भूरि प्रशंसा की। शिक्षको के उत्साहवर्धन हेतु इस प्रकार के सम्मान समारोह का आयोजन समय – समय पर वास्तव में प्रशंसनीय है।
राजा चंडोल इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य जयंत प्रसाद ने कहा कि “हम शिक्षको के लिए सम्मान ही हमारी कमाई है। ” साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर नए प्रयास करने और बच्चों के भविष्य को संवारने हेतु हरसम्भव प्रयास करने की बात कही।
लेख के अंत में गुरु की महिमा को विस्तार देते हुए कबीरदास जी के दोहे का स्मरण कराना चाहूंगा –
गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।
अर्थात कबीर दास कहते हैं – हे ! सांसारिक प्राणियों,बिना गुरू के ज्ञान का मिलना असम्भव है। तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनों मे जकड़ा रहता है, जब तक कि गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती। मोक्ष रूपी मार्ग दिखलाने वाले गुरू हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? अतः गुरू की शरण में जाओ। गुरू ही सच्ची राह दिखाएंगे।