नव रात्रि (द्वितीय दिवस) -नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
लेख – सुरेश गुप्त “ग्वालियरी” – सोन प्रभात
सत,चित,आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति कराना ही ब्रह्म चारिणी का स्वभाव है!! मां का यह स्वरूप सच्चरित्र की प्रेरणा देता है।
मां के ब्रह्म चारिणी स्वरूप की पूजा नव रात्रि के दूसरे दिन की जाती है!! मां का यह स्वरूप हमें सच्चरित्र की प्रेरणा देता है, चरित्र वान व्यक्ति कभी भी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता है!! ब्रह्म चारिणी अर्थात जो ब्रह्म में स्थित होकर आचरण करती है!!
मां के इस रूप में भक्त ध्यान मग्न होकर परम सत्ता की दिव्य अनुभूति करते हैं!! मां के इस स्वरूप की आराधना करने से शक्तियां असीमित हो जाती हैं!!इनके एक हाथ में कमंडल और दूसरे में जप की माला रहती है!! अपने भक्तो को मां प्रत्येक कार्य में सफलता देती है!!
नव रात्रि का महत्व _ स्वास्थ्य की दृष्टि से हर प्रकार के रोगों, कीटाणुओं, और।विषाणुओं से शरीर की रक्षा के लिए अनादिकाल से नव रात्रि व्रत एवम पूजन का विधान है!! इस समय मौसम परिवर्तन के कारण वैदिक परंपरा में देवी भगवती के समक्ष हवन पूजन करने से हवन से उठने वाला धुआं सांसों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है जिससे कीटाणुओं का नाश होता है!! लकड़ी,देशी घी, लौंग,जायफल,गुग्गुल की आहुति से घर का वातावरण शुद्ध होता है!!