प्रकृति संरक्षण – सहोदय ट्रस्ट, के सात बच्चों की एक टीम वनवसीय सेवा आश्रम गोविन्दपुर में शैक्षणिक भ्रमण के लिए आई।
दुद्धी – सोनभद्र / जितेंद्र चंद्रवंशी – सोन प्रभात
- दिल्ली युनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा प्राप्त, अच्छी नौकरी छोड़कर यह बीड़ा उठाया है पति पत्नी रेखा-अनिल ने।
दुद्धी सोनभद्र तहसील अन्तर्गत वनवसीय सेवा आश्रम गोविन्दपुर में आज सहोदय ट्रस्ट ( गया ) के बच्चों की एक टीम आश्रम आई। बच्चों ने जैविक खेती, पढाई के तरीके, के साथ आश्रम भ्रमण कर सीखने का प्रयास किए। बच्चों व प्रकृति के लिए समर्पित शिक्षक अनिल-रेखा अपने अनुभव में बताया कि अभी हमलोग 32 महादलित के बच्चों, (जिसमे दस लड़कियाँ है) के साथ काम कर रहे है। शुरू में कम बच्चे थे।
पिछले दो साल में बच्चों की संख्या बढ़ी है | इसके साथ हम पालतू जानवरों, जंगल से कई जीव-जंतु, जैसे सांप, बिच्छू, गोही, खरगोश, हिरन, कई रंग-बिरंग के चिड़ियाँ, तितलियाँ, कीड़े, केचुए, और स्थानीय पौधे, पेड़ और घास की भी देखभाल करते हैं। इससे यहाँ सह-अस्तित्व का एक नैसर्गिक अनुभव बच्चे सीखते है।
उन्होने बताया हमलोग सम्बन्धों पर आधारित एक सामुदायिक जीवन जीते हुए, अनुभव, कर्म और यात्रा से सीखते हुए और जैविक या प्राकृतिक खेती करते हुए अपने पर्यावरण और समाज को समृद्ध करने और आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रहे है। आश्रम में बच्चे बच्चियां सब घर के अंदर-बाहर की सफाई मिलकर करते है, मिलकर खाना बनाते है, फिर मिलकर किताबी पढ़ाई करते है।
बच्चे ज्यादातर अपने समय, मन और गति के अनुसार कही भी खुले या पेड़ के नीचे या ठण्ड में घर के अंदर निचे ज़मीन पर बैठकर पढ़ते है। बच्चे ज्यादातर मिलकर एक-दूसरे से पूछकर पढ़ते है। बड़े बच्चों को अगर कुछ पूछना हो तो हमसे पूछते है। इस तरह के वातावरण और शिक्षण पद्धति का असर बहुत सकारात्मक अभीतक रहा है।
खेल में भी हम लोग ज्यादातर स्थानीय खेल खेलते है जैसे -झुड़, कबड्डी, गाना-गोटी, कित-कित, लुक्का-छिप्पी, और स्थानीय भाषा के खेल-गीत गाते है।
प्रकृति के सम्बन्ध का अनुभव के लिए ही, भूदान से मिली 7 एकड़ ज़मीन में से आधी ज़मीन पर कुछ नहीं उगाते है और लगे हुए जंगली पेड़-पौधे और जैव-विविधता को बचाते है।
बच्चों की शैक्षणिक भ्रमन कई जगहों खासकर गांवों का अनुभव करा चुके है। हमलोग ओडिशा, राजस्थान, उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छतीशगढ, झारखडं, आंध्र प्रदेश, पांडिचेरी राज्यों का भ्रमण कर चुके है।. बिहार में पटना, लखीसराय, जमुई, नवादा, और गया के कई जगहों पर बच्चे घूम चुके है। इस प्रकार के कार्य प्रयोजन से प्रकृति संरक्षण और भू दान में मिले जमीनों का वास्तविक उपयोग किया जा रहा है, जंगल के जीव- जंतु, पेड़ -पौधे, पशु – पक्षी, के बीच मानव के द्वारा संतुलन बनाकर ऐतिहासिक पहल संस्था से पधारे बच्चों के द्वारा किया जा रहा है, इस प्रकार के कार्य को अगर प्रदेश के कोने-कोने में निष्ठा और लगन से कार्य संपादित कराया जाए तो प्रकृति और मानव के बीच में जबरदस्त संतुलन स्थापित होगा।
मौके पर भूदान आन्दोलन के सक्रिय कार्यकर्ता, सर्वोदयी व आश्रम के पूर्व कार्यकर्ता उपेन्द्र भाई, शुभाबहन, विमल भाई, शिवशरण भाई, देवनाथभाई, नीरा बहन, जगत भाई, प्रदीप भाई आदि उपस्थित रहे।