सम्पादकीय– कोरोना काल में दुर्व्यवस्थाओं से आहत व मार्मिक कुछ उदाहरण।
सम्पादकीय – सुरेश गुप्त “ग्वालियरी”
विन्ध्यनगर– सिंगरौली – सोनप्रभात
मत कहो कि आसमां में छाया कोहरा घना है,
यह किसी की व्यक्ति गत आलोचना है ǃǃ
उक्त पंक्तियाँ हमारे क्रांतिकारी कवि दुष्यंत कुमार की है। “जो कभी आपात काल मेँ चरितार्थ हो रही थी, आज फिर अव्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाने पर दोहरा रही है।” आज विसंगतियों के प्रति आक्रोश या आवाज उठाना , सच का आइना दिखाना अर्थात प्रशासन के विरुद्ध साजिश का हिस्सा मानने जैसा हो गया है। आप उत्पीडन व कार्यवाही झेलने को तैयार रहिये– तीन उदाहरण आपके सामने है :-
प्रथम झांसी जनपद मेँ एक कोरोना पीडित शिक्षक सँजय गेड़ा दुर्व्यवस्था के प्रति जीवन के अन्तिम क्षणों मेँ वीडियो द्वारा समस्या को उजागर करता है, परन्तु जिम्मेदारों पर कोई कारवाही नही होती और वह शिक्षक अस्पताल मेँ दम तोड देता है।
दुसरा – इसी तरह की दुर्व्यवस्था को सोनभद्र मेँ कोरोना से संक्रमित पुलिस जन व पत्रकार मनोज राणा एक वीडियो बनाकर प्रशासन का ध्यान आकर्षित करते हैं परन्तु वही यथा स्थिति। अन्तिम तीसरे उदाहरण की बात करें, कोरोना से पीडित मरीज शेखर सिंह की। दुर्व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाने पर एन सी एल अस्पताल सिंगरौली द्वारा मुकदमे लाद दिये जाते है।
युवा कांग्रेस नेता प्रवीण सिंह चौहान इसे प्रशासन व सत्ताधारीयों के साजिश का हिस्सा मानते है। इस समय कोरोना पीडित स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे है, आवश्यकता है इन्हे सहयोग व सम्मान की। कुछ लोगों के द्वारा किये जा रहे अमानवीय कृत्य हमारे कोरोना से संघर्षरत योद्धाओ के सुकार्यों पर पानी न फेर दे। हमारे स्वाथ्य विभाग ,सुरक्षा विभाग तथा प्रशाशनिक अमले ने इस महायुद्ध में महत्ती भूमिका अदा की है।