सम्पादकीयः– बहुत गर्व था जिसे अपने लंबाई पर, उसी सड़क को मजदूरों ने पैदल ही नाप दिया।
दो चार दिन ग़रीबी में बिता के देखिये,
रोटी की जगह सिर्फ फ़ांके खा के देखिए!!
– सुरेश गुप्त ‘‘ग्वालियरीʺ
(सोनप्रभात सम्पादक मण्डल सदस्य)
सो हुजूर माटी की पुकार कहें या इस वैश्विक संक्रमण की मार! चल दिए ये श्रम वीर अपने शहर की ओर, गाँव की ओर।
”हमको तो दो वक्त की रोटी की फिक्र है,
मिले मुझे शहर में या गांव में हुजूर!!ʺ
जिसको जो साधन उपलब्ध, सो चल दिया अपने ठीये की ओर ,कोई हवा में उड़कर कोई छुकछुक गाड़ी में तो कोई निजी वाहनों व अन्य साधन से सड़क मार्ग पर।
परन्तु हजारों लोगों ने अपने जज़्बे से पैदल ही सड़क को नाप दिया। आने वाली पीढ़िया इसे अविश्वसनीय ही मानेगी परन्तु है तो सच ही। हजारों किलोमीटर, सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा बच्चों, समान और भूखे पेट !! सचमुच अकल्पनीय!! है चारो तरफ इतना सन्नाटा राह में,तमाम सफ़र राहों मे बस राहों का डर है!!
अजीब जज्बा !! महाराष्ट्र से कोई 1200 किलोमीटर यात्रा साइकिल द्वारा रीवा मध्यप्रदेश तक तो कोई 9 माह की गर्भवती महिला बापूड़ी अहमदाबाद से 200 किमी0 पैदल चलने के बाद प्रशासनीय सहयोग से अपने गाँव पहुँची।
तो वही शंकुतला देवी अपने नौ माह के गर्भ के साथ अपने पति व परिजनों के साथ नासिक से पैदल ही लगभग एक हजार किलोमीटर दूर अपने गांव बेल हाई के लिए चार बच्चों के साथ निकल पड़ी। 70 किमी के कठिन पदयात्रा के बाद प्रसव वेदना शुरू हुई और सड़क किनारे साड़ियों की आड़ में प्रसव कराया फिर दो घण्टे वाद पुन 170 किलोमीटर की लम्बी यात्रा। ये मात्र कुछ उदाहरण है, जो इनके जज्बे और हौसलों को दिखाते है। इस संक्रमण काल को तो हम परास्त करेंगे ही परन्तु इन श्रम वीरों का यूँ पहाड़ों, आसमान नदियों व सड़क का नापना इतिहास मे दर्ज हो गया है। सलाम है इनके जज्बे कोǃ