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जाने कौन थीं सावित्रीबाई फुले जिनके कारण बालिकाओं/महिलाओं को मिला शिक्षा का अधिकार?

लेख:- आशीष गुप्ता / सोन प्रभात

आज का नारा “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के नारे हम सभी लोग जानते होगें। अब आइए हम सब थोडे समय के लिये समय के चक्र को 18वी सदी की तरफ घुमाया जाए। तो 18वी सदी मे लडकियो को पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं था। महिलाओं को पर्दे में रखा जाता था। ऐसे समय में इन सब कुरीतियों से लड़ते हुए सावित्रीबाई फुले ने कुछ ऐसा कर दिखाया जिसे लड़कियाँ आज भी याद रखती हैं।

सावित्रीबाई फुले संपूर्ण भारत की पहली महिला शिक्षक थी जिनका लक्ष्य लड़कियों को शिक्षित करना था। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र में हुआ था। उनका जन्म सतारा के एक छोटे गांव में हुआ था। सावित्रीबाई फुले की पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। दस साल की छोटी सी उम्र में उनकी शादी कर दी गई थी। सावित्रीबाई फुले के पति तब तीसरी कक्षा में थे जिनकी उम्र 13 साल थी। शादी के बाद सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा फुले की मदद से शिक्षा हासिल की थी उनके पति एक दलित चिंतक और समाज सुधारक थे।

सावित्रीबाई सपूर्ण भारत की पहली बालिका विद्यालय संस्थापक की पहली प्रिंसिपल और पहली किसान स्कूल की संस्थापक थी। 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर अलग अलग जातियों की कुल नौ लड़कियो/ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना पुणे मे किया। एक ही वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये बालिकाओं के लिये विद्यालय खोलने में सफल हुए। एक महिला प्रिंसिपल के लिए सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी हम नहीं कर सकते है।आज से 171 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था।

सावित्रीबाई फुले पूरे देश की बालिकाओं की एक महानायिका हैं। जब सावित्रीबाई फुले बालिकाओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में धर्म के नाम पर सवर्ण समाज के लोग उनके ऊपर गोबर,कीचड़ गोबर, विष्ठा, गंदगी तक लोग फेंकते थे। सावित्रीबाई के पास इसका भी तोड़ था, वे एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी साड़ी बदल लेती थीं और बालिकाओं को शिक्षा/पढ़ने के लिये प्रेरणा देती थी वे बालिकाओं को अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।

सावित्रीबाई का उद्देश्य था छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति, विधवा विवाह करवाना और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।

जब भारत मे प्लेग की महामारी फैली थी तब सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक बार प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया। इसी कारण से सावित्रीबाई फुले की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण उनका निधन हो गया।

Ashish Kumar Gupta

Ashish Kumar Gupta is an Indian news anchor and journalist, who is the managing director and editor-in-chief of Son Prabhat Web News Service Private Limited Sonbhadra India. In the field of journalism, this journalist, who constantly talks about social interest and public welfare with his pen, is establishing a new dimension in the journalism of the district. Email - Editor@sonprabhat.live

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