श्रवण सिंह गोंड को प्रत्याशी न बनाया जाना बना चर्चा का विषय।

- इकलौते और संघ के पहले आदिवासी प्रचारक होने के रूप में है पहचान।
लिलासी/ सोनभद्र – रविकांत गुप्ता / आशीष गुप्ता – सोनप्रभात
सोनभद्र – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व जिला प्रचारक श्रवण कुमार गौड़ को भाजपा से ओबरा या दुद्धी से टिकट न दिया जाना चर्चा का विषय बना हुआ है।इसे लेकर तमाम तरह की चर्चा हो रही है।

भारतीय जनता पार्टी के सारे पदाधिकारी वर्ष 2017 में श्रवण को प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर अड़े हुए थे, लेकिन तत्कालीन प्रांत प्रचारक द्वारा उन्हें न छोड़े जाने की वजह से संजीव गौड़ को प्रत्याशी बनाया गया।उसके बाद श्रवण कुमार ने भाजपा ज्वाइन कर राजनीति को ही अपना लक्ष्य बनाया।इसके बाद वह कोरोना काल में लगातार लोगों की सेवा करते रहे।इन सब चीजों को नजरअंदाज कर पार्टी ने ओबरा से आवेदन करने के बावजूद श्रवण कुमार को टिकट नही दिया और राज्य मंत्री के विवादों के बावजूद उन्हें दोबारा प्रत्याशी बना दिया गया, यही नहीं मूल रूप से धुमा गांव के रहने वाले श्रवण जो दुद्धी के पास है, को दुद्धी से भी प्रत्याशी नही बनाया गया है।ऐसे में यह बात भाजपा व स्वयंसेवकों में चर्चा का विषय बनी हुई है।सूत्रों की माने तो इसे लेकर अंदर ही अंदर आक्रोश पनप रहा है।सोनभद्र में श्रवण सिंह गौड़ जिस आदिवासी समुदाय से हैं उससे पहले प्रचारक के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में होने की पहचान हुई।

इतना ही नहीं उन्होंने अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया और अभी भी बिना विवाह के ही सामाजिक कार्यों में लगे हुए हैं।इनकी छवि सर्व समाज में हितैशी के रूप है।इस बार विधानसभा चुनाव में इन्हें टिकट मिलने की पूरी संभावना थी।कार्यकर्ताओं में भी अलग उत्साह था, लेकिन टिकट की घोषणा के बाद सभी की आशा पर पानी फिर गया।इसे लेकर लोग तमाम तरह की चर्चा कर रहे हैं।कई लोगों का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में होने के नाते प्रचारक के रूप में उन्हें सबने स्वीकार किया, लेकिन राजनीति में आते ही वह अपनों के ही दुश्मन बन गए।
वह पार्टी के जिम्मेदार सिपाही हैं और पार्टी जो निर्णय लेगी उनके पक्ष में होगा।यही नहीं टिकट मिलने का उन्हें कोई मलाल नहीं है।पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी उसका उनके द्वारा बखूबी निर्वहन किया जाएगा।