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“नाम में क्या रखा है ? इंदिरा नेहरू गांधी” – अधिदर्शक चतुर्वेदी

लेख – अधिदर्शक चतुर्वेदी / विंध्याचल/ मिर्जापुर

कभी शेक्सपियर ने कहा था, ” व्हाट देयर लाइज इन ए नेम?”
गुलाब को किसी भी नाम से जानो उसकी खुशबू ,उसकी रंगत ,उसकी खूबसूरती यथावत रहेगी।
शायद अहमद नदीम क़ासमी ने कहा था कि, “कुछ लोग जान बूझ के नादान हो गए हैं / मेरा ख्याल है कि वो इंसान हो गए हैं”
शायद गलत नहीं कहा था ।
गालिब की बात है , “पूछते हैं लोग गालिब कौन है / कोई
बतलाए कि हम बतलायें क्या ? उन जैसे ही किसी दिल जले ने
नाम पूछते ही कहा कि , “हमारा नाम अगर ये नहीं तो वो होगा /
आपको नाम से क्या काम , मुद्दआ कहिए ?

एक बारगी देश के सामने
एक महत्व पूर्ण प्रश्न उठ खड़ा हुआ है ,गांधी परिवार अपने नाम के साथ नेहरू क्यों नहीं लिखता ?

 

तस्वीर : साभार आनंद भवन इलाहाबाद, प्रयागराज

हर कोई जानता है कि विवाह के बाद महिला एक कुल से दूसरे कुल में जाती है ।दूसरे कुल का नाम अंगीकार करने के बाद उसका विवाह के पूर्व का कुल अप्रासंगिक नहीं हो जाता ।संतान के विवाह के समय लोग पुत्र या वधू पक्ष के बुजुर्ग दोनों कुलों का संज्ञान
ले कर सब कुछ दुरुस्त होने पर ही रिश्ता करते है ।
गुजरे दौर में इंदिरा जी के विवाह में थोड़ी जिच आई थी।इंदिरा जी फिरोज से शादी करना चाहती थीं ,जो अग्निपूजकपारसी मूल के थे ।पंडित नेहरू कश्मीर मूल के कट्टर शैव ब्राह्मण रहे, उनकी शादी वैदिक रीति रिवाज से कश्मीरी ब्राह्मण कमला जी से हुई थी।
पंडित नेहरू तैयार नहीं हुए ,बात गांधी जी तक पहुंची उन्होंने इंदिरा जी से बात की और पंडित जी को तैयार किया कि अगर नेता ही पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं होंगे तो तमाम जातियों ,पंथों , क्षेत्रों में भावनात्मक एकता का क्या होगा ?छुआ छूत , ऊंच नीच
जैसे दुराग्रह कैसे दूर होंगे ? पंडित नेहरू पिघल गए और तैयार हो गए ।फिरोज को गांधी ने दत्तक पुत्र स्वीकार किया ,अपना नाम दिया और वैदिक रीति रिवाज से शादी हुई , फिरोज फिरोज गांधी हो गए । इंदिरा जी इंदिरा गांधी हो गईं ।नाम के साथ पितृ कुल का नाम भी जोड़ा क्यों की पंडित जी की अकेली वारिस भी थीं , सो इंदिरा नेहरू गांधी हुआ । पुत्र पिता और माता दोनों का ही स्वाभाविक वारिस होता है , सो राजीव गांधी /संजय गांधी अपने पिता की पहचान से जुड़े और नाम के साथ इनकी पत्नी
और पुत्र भी गांधी लिखते आ रहे हैं ।उस दौर में इस तरह के अनेक अंतर्जातीय/ अंतर प्रांतीय संबंध बने ,सबकी प्रेरणा के स्रोत गांधी जी रहे ।बंगाल की सरोजिनी (नायडू) ,सुचेता (कृपलानी? अरुणा
आसफ (अली )और खुद गांधी जी के पुत्र देवदास का विवाह राजा जी ( तमिल ब्राह्मण ) की पुत्री लक्ष्मी से हुआ था।

तस्वीर साभार : आनंद भवन इलाहाबाद प्रयागराज

 

एक और प्रकरण याद आ रहा है , किसी पुराण या फिर
अन्य धर्म ग्रंथ से संबंधित है। एक बालक शिक्षा प्राप्ति
के लिए गुरुकुल गया ।नाम दर्ज करते समय उससे पिता का नाम पूछा गया । उसने पूरी निश्छलता के साथ कहा कि ,उसकी मां अनेक तपस्वियों ,ऋषियों के यहां सेवा करती थी और पूछने पर उसने कहा कि वो बता नहीं सकता कि उसका पिता कौन है ?गोया हर युग में घरों में काम करने वाली महिलाएं लोगों की अंक शायिनी होने के लिए विवश थीं । उसकी सत्य निष्ठा से प्रभावित हो कर के जाबालि ऋषि ने उसको अपना नाम दिया और वह सत्य काम जाबाल नाम से जाना गया। नाम की महिमा से कौन नहीं अवगत है ?
राम के नाम का उच्चारण करके जाने कितने ऐसे वैसे
कैसे कैसे हो गए ? पराया माल अपना होने में कोई
बाधा नहीं खड़ी हुई ,संगठन से जुड़े तो दुनिया मुट्ठी में आ गई ? NAM के मंच से जुड़ कर जाने कितने देश
आजाद हो गए ।कुछ तो इतने आजाद हो गए कि
“साला मैं तो साहब बन गया” कहते हुए इस अदा के साथ पेश आए कि उन पर हंसी आने लगी ।सवाल का जवाब एक ईमानदार स्पष्टीकरण होता है , अटकाने, भटकाने, लटकाने से बात नहीं बनती ।
धन्यवाद हिडेनबर्ग ,आपने सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्तियों वाली फाइल पर सारी आपत्तियां एक झटके में खत्म कर दी।कभी कभी दर्शन देते रहा करें ,हमे नहीं, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
महोदय को, देश आपका आभार मानेगा । धन्यवाद!

 

लेखक – अधिदर्शक चतुर्वेदी / विंध्याचल/ मिर्जापुर

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