- प्राइवेट मे जाकर करना पड़ता है गर्भवती महिलाओ को अल्ट्रासाउंड।
- अल्ट्रासाउंड मशीन न चलने से ज्यादा परेशानी गर्भवती महिलाओं को होता हैं।
सोनभद्र / अनिल कुमार अग्रहरि / सोन प्रभात
सोनभद्र : सरकार जहा एक तरफ बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर तमाम दावे कर रही हैं वही दूसरी तरफ आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र विकास खण्ड चोपन अंतर्गत सैकड़ो गांव को कवर करने वाला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चोपन में करीब 4 वर्ष से आधुनिक अल्ट्रासाउंड मशीन धूल फांक रही है, लेकिन विभाग का इस ओर ध्यान नहीं है।लाखों की अल्ट्रासाउंड मशीन लगी तो पूरे क्षेत्र के लोगों में खुशी थी कि जरूरत पर अल्ट्रासाउंड के लिए रोगियों को दूर नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन वर्षों बाद भी अल्ट्रासोनोलाजिस्ट की तैनाती न होने से मशीन जस की तस पड़ी हुई है।स्वास्थ्य विभाग द्वारा व्यवस्था बनाने के लिए बड़े-बड़े दावे तो किए जाते हैं लेकिन जमीनी हकीकत बहुत दूर है।अस्पताल में एक्स-रे मशीन व टेक्नीशियन हैं, लेकिन अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं है। मशीन होते हुए भी रोगियों को अल्ट्रासाउंड के लिए आस-पास के निजी अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर जाना पड़ता है।
जहां अल्ट्रासाउंड के 800 से 1000 रुपये लिए जाते हैं। अल्ट्रासाउंड व्यवस्था ध्वस्त होने से सबसे अधिक परेशानी गर्भवती महिलाओं को होती है। गर्भ में पल रहे बच्चे की अवस्था की निगरानी के अल्ट्रासाउंड की जरूरत पड़ती है। प्रसव के लिए आई महिलाओं को दिक्कत होने व अल्ट्रासाउंड व्यवस्था न होने पर महिला रोग विशेषज्ञ चिकित्सक को मजबूरी में रेफर कागज बनाने पड़ते हैं। अस्पताल के आंकड़ों की माने तो करीब 50 से 60 प्रतिशत मामले तत्काल अल्ट्रासाउंड व्यवस्था न होने के कारण रेफर करने पड़ते हैं। अस्पताल की दूसरी प्रमुख समस्या सफाई अस्पताल मे सफाई न होने से परिसर व अस्पताल के कई हिस्सों में गंदगी का अंबार है। अस्पताल क्षेत्र मे कबाड़ भी फेंके गए हैं। राकेश केशरी समाजिक कार्यकर्ता ने शासन को पत्र लिख कर सीएचसी चोपन में जल्द से जल्द अल्ट्रासोनोलाजिस्ट की तैनाती कर अल्ट्रासाउंड की सुविधा शुरू कराने की मांग है।