उमेश कुमार -बभनी,सोनभद्र(सोनप्रभात)

सोनभद्र-परंपरागत वोटरों की नाराजगी के चलते जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव में अधिकांश सीटों पर शिकस्त खा चुकी भारतीय जनता पार्टी के सामने जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में गढ़ और साख दोनों बचाने की चुनौती है। एक तरफ जहां पार्टी जनों का अंतर्विरोध एक दूसरे को अंदर खाने शिकस्त देने की कोशिश में जुटा हुआ है। वहीं महज छह सीटों के सहारे 16 सीटों की गणित कैसे फिट बैठेगी? यह सवाल जिले से लेकर राजधानी तक बेचैनी का सबब बना हुआ है। वहीं दूसरी तरफ जादुई आंकड़े से महज पांच कदम दूर सपा इस बेहतर मौके को भुना पाएगी? इसको लेकर सवाल बना हुआ है।
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सोनभद्र में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। राबर्ट्सगंज, घोरावल और विधानसभा सीट जहां भाजपा के खाते में आई । वहीं दुद्धी सीट पर उसके गठबंधन साथी अपना दल के उम्मीदवार ने जीत हासिल की। पहली बार भाजपा को इतनी बड़ी जीत मिली देख जनता ने भी उम्मीद जताई थी कि काफी कुछ बेहतर होगा। वहीं चुनाव के समय भाजपा के जिले से लेकर प्रदेश स्तर तक के नेताओं ने भी बेहतरी के सपने दिखाए थे। सरकार बनने के बाद जैसे जैसे समय व्यतीत होता गया वैसे वैसे जनता की अधिकांश उम्मीदें धराशाई होती गईं। वहीं सत्ता पक्ष की तरफ सेजनता से किए गए कई वायदे भी एक-एक कर हवा होते गए। जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव में इसका असर भी देखने को मिला, जहां भाजपा ने एक-एक सीट जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। वहीं परंपरागत वोटरों की नाराजगी ने 31 सीटों वाले जिले के सदन में बहुमत की उम्मीद पाले भाजपा को महज छह सीटों पर सिमटा कर रख दिया। महत्वपूर्ण बात यह है कि महज छह सीटों वाली भाजपा 16 सीटों का जादुई आंकड़ा कैसे हासिल करेगी? राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अगर सत्ता की हनक का इस्तेमाल कर भाजपा सभी सात निर्दलियों को अपने साथ जोड़ ले तब भी यह आंकड़ा 13 पर रुक जाएगा। उसमें अपना दल एस की एक सीट जोड़ दें तो भी यह संख्या 14 तक ही पहुंच पाएगी। जीत के लिए महत्वपूर्ण 16 के आंकड़े की पूर्ति करने के लिए भाजपा को बसपा या निषाद पार्टी, अद कृष्णा गुट के विजयी उम्मीदवार को अपने पाले में करना पड़ेगा या फिर सपा खेमे के सदस्य बगावत कर दें। यह भी तभी संभव है जब धनबल के इस्तेमाल के साथ भाजपा के सभी लोग एकजुटता दिखाएं। अंतर्विरोध ना होने पाए और सरकारी तंत्र मन से साथ दे.अब बात करते हैं । सपा के आंकड़े की। सपा के पास 11 निर्वाचित जिला पंचायत सदस्य हैं। 16 का जादुई आंकड़ा हासिल करने के लिए उसे महज पांच सीटों की दरकार है जिसे वह निर्दलियोंया फिर बसपा, निषाद पार्टी, अपना दल के निर्वाचित जिला पंचायत सदस्यों को साथ लेकर पूरा कर सकती है।
…. लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में हमेशा से धन बल के साथ सत्ता के बल का इस्तेमाल होता आया है। ऐसे में सत्ता में वापसी के लिए छटपटा रही सपा इस जादुई आंकड़े को हासिल कर लेगी या फिर ऐन वक्त पर बाजी हाथ से निकल जाएगी? इस पर अभी कुछ कह पाना मुश्किल है।। उम्मीदवार चयन किसी चुनौती से कम नहीं: जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए ताल ठोंकने को तैयार भाजपा और सपा दोनों खेमों में प्रत्याशी का चयन करना किसी चुनौती से कम नहीं है। पहले से ही परंपरागत वोटरों के नाराजगी का सामना कर रही भाजपा जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार के नाम पर मुहर परंपरागत वोट वाले खेमे से लगाएगी या फिर किसी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार को चुनाव में उतारेगी? इसको लेकर अटकलें जारी हैं। वही सपा के सामने भी दूसरे रूप में यहीं सवाल खड़ा है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अगर सपा भाजपा के परंपरागत वोटों को साधने पर दृष्टि लगाती है तो वह सामान्य तबके से उम्मीदवार उतार सकती है। वहीं सपा के एक बड़े खेमे का मानना है की जिस तबके ने सपा का हमेशा साथ दिया है, उसी तबके के उम्मीदवार को जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में उतारना सही होगा।
परिणाम आने के साथ ही अध्यक्षी के लिए जोड़-तोड़, गुणा गणित और सेटिंग का काम शुरू हो गया है। ऐसे में उम्मीदवारी किस तबके के खेमे में आएगी और किस पार्टी का उम्मीदवार जिले का प्रथम नागरिक बनेगा? भविष्य के गर्भ में छिपे इस सवाल पर हर किसी की निगाहें टिक गई हैं। बता दें कि 2017 में प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपा ने जिला पंचायत की सत्ता पर कब्जा जमा लिया था। इसीलिए इस बार के अध्यक्षी को चुनाव को भाजपा के साख और उसके गढ़ दोनों से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं पूर्व में सत्ता पक्ष के उम्मीदवारों को जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में मिली कड़ी चुनौती को देखते हुए इस बार के अध्यक्षी के चुनाव को अभी से संघर्षपूर्ण माना जाने लगा है। बता दें कि जिले के सदन में भाजपा के छह, सपा के 11, बसपा के तीन, अपना दल एस के एक, अपना दल कृष्णा गुट के दो, निषाद पार्टी के एक सदस्य हैं। शेष सात निर्दलीय हैं।

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