संपादकीय
सुरेश गुप्त ‘ग्वलियरी’-बैढ़न(सोनप्रभात)
मित्रों बहुत असमंजस मे था कि ये अनपढ़ नेता या असामाजिक नेता जब उच्च पद पर आसीन हो जाते है तब इनके पास वाक् क्षमता ,निर्णय क्षमता ,भाषण कला कहाँ से आ जाती है ?
क्या वास्तव में ये खादी वस्त्र ही विचार हैं? इसे धारण करते ही अनपढ़ भी विकास दर,मुद्रा स्फीति तथा विदेश नीति ही नहीं,सभी समस्याओं के आंकड़े जेब मे रख कर घूमने लगते है।
जिस मंच पर शोभायमान,उसी को महिमा मण्डित करना, उनके हित के लिए संकल्प लेना।
यदि नारे लगते हैं देश विघटन के तो पीठ ठोककर आ जाते है।जहां की नमकीन खाओ या नमक खाओ,बजाना पड़ता है ,बच्चे हैं नादानियां कर ही देते हैं उन्हें माफ़ कर देना चाहिए।
बिगड़े हुए युवकों को आशिर्वाद दिया जाता है। अभी अभी एक आदरणीय ने भी मंच का आदर करते हुए संबोधित किया पत्थर बाज है तो क्या हुआ? भटके हुए नौजवान है उन्हें क्षमा मिलनी ही चाहिए।
मुझे याद है एक महिला दस्यु सुंदरी को सांसद तक बना दिया।
गज़ब तर्क… बेचारी पुरुष उत्पीड़न की शिकार हुई है।
जब बार बाला के मंच पर सुशोभित होते है तब उनकी बेरोजगारी का समर्थन और जब अश्लीलता पर चर्चा होती है तो विरोध मे भाषण देते है।
आठवीं पास नौवीं फेल नेता का कहना है -अरे भाई देश चलाना है इसके लिए पढ़ाई और डिग्री की क्या जरूरत? इसके लिए हैं ना हमारे पास प्रशासनिक अधिकारी!
अशिक्षा ,ज्यादा बच्चे, राष्ट्रगान का याद न होने से शासन चलाने का क्या संबंध ?
पूर्व में भी आठवीं पास देवेगौड़ा जी कर्नाटक में उच्च शिक्षा मंत्री पद सुशोभित कर चुके हैं।
सो भैये इह सब बात तो करो न ये जो खादी हैं न !! और काठ की कुर्सी !! केवल वस्त्र नहीं है विचार भी देते है, और यह कुर्सी केवल लकड़ी नहीं है, इस पर बैठने वाला चारो पाये की तरह देश के चारो स्तंभों के ऊपर ही बैठता है।
मित्रों अब पूर्ण विश्वास हो गया है , कोई भी उच्च पदों पर सत्तासीन हो सकता है ,चाहे वह प्रधान सेवक का ही पद क्यों न हो?
कुर्सी व खादी मे अपने कुछ खास गुण है जो आपको विचार वान और आलौकिक शक्ति प्रदान करता है।
आप निश्चिंत रहिये तेज, तेजस्वी, अखिलेश, माया, राहुल किसी के भी हाथ मे बागडोर रहे देश सुरक्षित रहेगा!!!! ये कुर्सी काठ की नही होती जनाब , इसमें से ऊर्जा प्रवाहित होती है, जो इस पर आसीन होने बाले को सर्व श्रेष्ठ बना देती है।
सुरेश गुप्त’ग्वालियरी’
विंध्य नगर, बैढ़न