November 22, 2024 6:11 AM

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कविता– “दिवाली का मेला।” – सुरेश गुप्त “ग्वालियरी”

सह–सम्पादक (सुरेश गुप्त ग्वालियरी) ⁄ सोनप्रभात 

माटी के ये खेल खिलौने, ले लो मेरे भैया,
दस रुपए में हाथी ले लो ,पाँच रुपये में गैया!
आठ आने में दीपक ले लो ,बाती संग मे मुफ्त,
मेरे घर भी राह निहारे ,छुटकू बूढ़ी मैया!!

रँग बिरंगे दीपक मेरे , ज्यो चमके सूरज चँद,
नाजुक हाथों इसे बनाया, ज्योति पड़े न मन्द!
बूढ़ी का श्रम सीकर इसमें ,बच्चे का मनुहार ,
खुशबू इसमे है माटी की , फूलों सा मकरंद!!

सुरेश गुप्त,ग्वालियरी
विन्ध्यनगर,बैढन

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