November 23, 2024 5:16 AM

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31मई : जाने कौन थी अहिल्याबाई होल्कर, स्त्री शिक्षा से लेकर कुशल शासक तक, किसी योद्धा से कम नहीं थीं।

सम्पादकीय लेख:- यू.गुप्ता / सोन प्रभात

नारी शक्ति कितनी महान होती है, और वह अपने जीवन में क्या कर सकती है इसका उदाहरण अहिल्या बाई होल्कर जी की जीवनी पढने के बाद आपको मिल जायेगा। जीवन में परेशानियाँ कितनी भी हो, उनसे कैसे निपटना है यह हमें अहिल्याबाई के जीवन से सीखना चाहिये, अपने जीवन काल में अहिल्या बाई होल्कर ने बहुत सारी कठिनाइयों का सामना किया है लेकिन कभी हार नहीं मानी। भारत सरकार ने भी उनको सम्मानित करते हुए उनके नाम का एक डाक टिकट और अहिल्या बाई के नाम से अवार्ड भी लोगो को दिया जाता है।

देश के महान राजाओं की गाथा तो हर किसी की जुबान पर रहती हैं, लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी भारतीय रानी के बारे में जिसने न सिर्फ समाज सुधार बल्कि राजनिति और रणभूमि में भी गौरव हासिल किया। यह कहानी है मालवा की रानी अहिल्याबाई होल्कर की, जिन्हें आज भी मराठा लोग राजमाता या मातोश्री कहते हैं।

आज हम अपने इस लेख में अहिल्या बाई होल्कर की जीवनी एवं उनके इतिहास के बारे में बता रहे हैं, उनके जीवन का निचोड़ हम अपने इस लेख में बताने की एक मात्र कोशिश कर रहे हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि नारी शक्ति का पता आपको इस लेख से जरुर चल जाएगा।

महारानी अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई, 1725 को महाराष्ट्र के चांडी (अहमदनगर) गांव में हुआ था। आज महारानी अहिल्याबाई होल्कर की जयंती पूरे देश मे बडे ही उत्साह से मनाया जा रहा है, अहिल्याबाई होल्कर को भारतीय इतिहास की सबसे बेहतरीन महिला शासकों में से एक माना जाता है। वह अपने ज्ञान और प्रशासनिक कौशल के लिए आज भी जानी जाती है।

हर साल उनकी जयंती 31 मई को मनाई जाती है। मालवा साम्राज्य के एक प्रमुख शासक के रूप में अहिल्याबाई होल्कर ने शान्ति का संदेश फैलाया, पूरे भारत में कई हिंदू मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया है।

महारानी अहिल्याबाई होल्कर के पिता मनकोजी सिंधिया धनगर परिवार के एक वंशज गांव के पाटिल थे। उस समय में जब महिलाओं को स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी, अहिल्याबाई होल्कर के पिता ने उन्हें घर पर ही पढ़ना-लिखना सिखाया।

अहिल्याबाई बचपन में बहुत चंचल प्रवृत्ति की थी, ऐसे में उनकी शादी बचपन में ही खण्डेराव होलकर के साथ करवा दी गई। उनका विवाह उनकी चंचलता और उनके दया भाव के कारण ही खण्डेराव होलकर के साथ हुई थी। लोग कहते है कि एक बार राजा मल्हार राव होल्कर पुणे जा रहे थे और उन्होंने चौंढी गाँव में विश्राम किया, उस समय अहिल्याबाई भूखे, गरीबों और नि:सहायो की मदद कर रही थी। उनका प्रेम और दयाभाव देखकर मल्हार राव होल्कर ने उनके पिता मान्कोजी से अपने बेटे खण्डेराव होलकर के लिए अहिल्याबाई का हाथ मांग लिया था।

अहिल्याबाई की शादी के 10 साल बाद उन्होंने मालेराव के रूप में एक पुत्र रत्न को जन्म दिया। पुत्र के जन्म के तीन साल बाद उन्होंने मुक्ताबाई नाम की पुत्री को जन्म दिया। अहिल्याबाई हमेशा अपने पति को राज कार्य में साथ दिया करती थी।

अहिल्याबाई महलो की रानी थीं। वह बहुत कुछ करना चाहती थीं जिससे उनकी प्रजा को कोई कष्ट न हो, अपने ससुर मलहार राव की मदद से उन्होंने राजकाज भी सीखे, लेकिन बार-बार उनका शिक्षित न हो पांना परेशानी का सबब बन जाता था। इस पर उन्होंने पढ़ने की इच्छा व्यक्त किया, जब कि उस समय स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार नहीं था, लेकिन अहिल्याबाई का कहना था कि जब शिक्षा की देवी एक स्त्री है तो स्त्रियों को शिक्षा क्यों नहीं मिल सकती है। इस बार भी उनके ससुर मलहार राव ने उनका साथ दिया और अहिल्याबाई के लिए महल में ही पढ़ने की व्यवस्था कर दी गयी थी।

अहिल्याबाई होल्कर का जीवन काफी सुखमय व्यतीत हो रहा था, लेकिन 1754 में उनके पति खण्डेराव होलकर का देहांत होने कारण वो पूरी तरह से टूट गई थी। उनके गुजर जाने के बाद अहिल्या बाई ने संत बनने का मन बना लिया, जैसे ही उनके सन्त बनने के फैसले का पता उनके ससुर को चला तो उन्होंने अहिल्याबाई को अपना फैसला बदलने और अपने राज्य की दुहाई देकर उन्हें संत बनने से रोक लिया। अपने ससुर की बात मानकर अहिल्याबाई ने फिर से अपने राज्य के प्रति सोचते हुए आगे बढ़ी, लेकिन उनकी परेशानियाँ और उनके दुःख कम होने वाले नहीं थे। 1766 में उनके ससुर और 1767 में उनके बेटे मालेराव की मृत्यु हो गई। अपने पति,बेटे और ससुर को खोने के बाद अब अहिल्याबाई अकेली रह गई थी और राज्य का कार्यभार अब उनके उपर था। राज्य को एक विकसित राज्य बनाने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किया।

अहिल्याबाई होल्कर को भारतीय इतिहास की सबसे बेहतरीन महिला शासकों में से एक माना जाता है। अहिल्याबाई ने न सिर्फ समाज सुधार बल्कि राजनिति और रणभूमि में भी गौरव हासिल किया था।
अहिल्याबाई ने लगभग तीन दशकों तक शासन किया और एक ब्रिटिश इतिहासकार जानकीस ने उन्हें “द फिलॉसॉफर क्वीन” की उपाधि दी थी। 13 अगस्त 1795 को 70 वर्ष की आयु में रामेश्वरम में अहिल्याबाई होलकर का निधन हो गया।

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