लेख – आशीष गुप्ता / सोन प्रभात
प्रत्येक साल दो जून के दिन एक मैसेज / मीम्स तेजी से वायरल होने लगता है। शायद कभी आप भी इस बात को सीरियस लेकर इस दिन जान बूझकर याद से रोटी खाते हैं और खुद को सोशल मीडिया के लायक (खुशनसीब) समझने लगते हैं, क्योंकि आपने दो जून की रोटी (2 June Roti) खा ली होती है।
क्या है 2 जून की रोटी के पीछे की सच्चाई?
आज के इस डिजिटल दौर में सोशल मीडिया हमें जितना त्वरित मुद्दों, खबरों से जोड़े रखता है उतना ही कन्फ्यूज या गुमराह भी करता है। एक गलत मैसेज से लाखों लोग गुमराह होकर तरह तरह के पोस्ट करने लगते हैं। हालांकि दो जून की रोटी मीम / मजाक तक ही सीमित है। यह सिर्फ शब्दो का खेल है जिसमे आप उलझ जाते हैं और इसे दो जून तारिक से जोड़कर देखने लगते है।
दो वक्त की रोटी नसीब वाले को मिलती है इसे समझें
कहावत रही है ” दो जून की रोटी” मतलब दो वक्त / पहर की रोटी दोनो पहर सुबह और शाम की रोटी/ भोजन नसीब से मिलता है। इस कहावत को दो जून से जोड़कर बहुत सारा कन्फ्यूजन पैदा कर दिया गया है। दो जून की रोटी का सीधा मतलब दो प्रहर या दोनो टाइम की रोटी या भोजन से है न कि तारिक वाली दो जून से।
हालांकि अब तक आप भी समझ गए होंगे। आखिर क्यों दो जून की रोटी नसीब वालों को मिलती है क्योंकि भारत में कई घर ऐसे हैं या थे जहां दो वक्त का खाना तक लोगो को नसीब नही हो पाता इसलिए यह कहावत रहीं है, दो जून की रोटी नसीब वाले को मिलती है।
Ashish Gupta is an Indian independent journalist. He has been continuously bringing issues of public interest to light with his writing skills and video news reporting. Hailing from Sonbhadra district, he is a famous name in journalism of Sonbhadra district.