सोनभद्र / सोन प्रभात – लोक सभा चुनाव विशेष
लोकसभा चुनाव अंतिम सातवें चरण में पहुंच चुका है, लोकसभा चुनाव के सातवें चरण का मतदान कल 1 जून को है। इससे पहले आखिरी चरण का चुनाव प्रचार 48 घंटे पहले यानी गुरुवार शाम 5 बजे थम गया। इस चरण में 7 राज्यों की 57 सीटों पर वोटिंग होगी। इसके लिए सभी आवश्यक तैयारियां पूरी की गई हैं। इस चरण में पीएम मोदी की वाराणसी सीट भी शामिल है। इस खबर में हम रॉबर्ट्सगंज लोक सभा चुनाव का विश्लेषण और साथ ही दुद्धी विधानसभा में हो रहे उप चुनाव का विश्लेषण करेंगे, जन चर्चाओं, पुराने आंकड़ों, तथ्यों के मुताबिक यह रिपोर्ट तैयार किया गया है।
रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट के लिए सपा और एनडीए का सीधा मुकाबला
रॉबर्ट्सगंज लोक सभा चुनाव के चुनावी मैदान में न तो कांग्रेस हैं न ही भाजपा, इस बार आईएनडीआईए गठबंधन से सपा ने भाजपा से इसी लोक सभा का सांसद रह चुके छोटेलाल खरवार को रण में उतारा है वहीं एनडीए घटक अपना दल एस ने पूर्व सांसद पकौड़ी लाल कोल की विधायक बहु रिंकी कोल को प्रत्याशी बनाया है। मतलब इस बार सीधी लड़ाई चुनाव चिन्ह साइकिल और कप प्लेट के बीच है। रॉबर्ट्सगंज सीट पर ‘कमल’ न होने से सपा-कांग्रेस गठबंधन को अपनी जीत की राह आसान दिख रही है। लेकिन जिस तरह से अंतिम समयों में लगातार जनसभाएं हुई हैं उससे टक्कर जबरदस्त देखने को मिल सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मिर्जापुर में आना, अमित शाह, राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, मोहन यादव, सपा मुखिया अखिलेश यादव समेत तमाम नेता मंत्री हफ्ते भर के भीतर कर चुके रॉबर्ट्सगंज लोकसभा का दौरा और अपने अपने पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में विशाल जन रैली को संबोधित कर चुके हैं।
क्या कहता है जातीय समीकरण ?
तकरीबन 35 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति की कोल, गोड़, खरवार, चेरो, बैगा, पनिका, अगरिया आदि जातियों के अलावा राबर्ट्सगंज सीट पर वंचित समाज का दबदबा है। कुर्मी-पटेल, निषाद-मल्लाह, अहीर-यादव, कुशवाहा, विश्वकर्मा आदि अन्य पिछड़े वर्ग की जातियों का भी ठीक-ठाक प्रभाव है। छह प्रतिशत के लगभग ब्राह्मण और इसी के आसपास राजपूत और मुस्लिम समाज की आबादी भी मानी जाती है। क्षेत्र के शहरी कस्बाई इलाकों के पढ़े-लिखे नौकरी-पेशा और कारोबारी मोदी-योगी के कामकाज से तो प्रभावित हैं लेकिन पकौड़ी लाल की बहू को ही टिकट दिए जाने से नाराज हैं। ज्यादातर यही कह रहे कि भाजपा खुद यहां से मैदान में उतरती तो ‘कमल’ के खिलने में कोई दिक्कत ही नहीं थी।
पकौड़ी लाल के परिवार में ही टिकट दिए जाने से अबकी सीट फंस भी सकती है। पूर्व में सांसद रहते क्षेत्र के विकास पर ध्यान न देने से लोग छोटेलाल से भी खुश नहीं हैं लेकिन इस बार कांग्रेस के साथ होने, बेरोजगारी, महंगाई के साथ ही क्षेत्र में पानी के संकट को लेकर लोगों की नाराजगी और ‘कमल’ के मैदान में न होने से बहुतों को सपा की स्थिति ठीक दिखाई दे रही है।
लोक सभा चुनाव के पिछले बार के आंकड़े क्या कहते हैं?
2019 में हुए चुनाव परिणाम पर एक बार नजर डाल लेते हैं।
पार्टी- प्रत्याशी – मिले मत(प्रतिशत में)
अपना दल(एस)-पकौड़ी लाल कोल-4,47,914(45.30)
सपा-भाई लाल-3,93,578(39.80)
कांग्रेस-भगवती प्रसाद चौधरी-35,269(03.57)
लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाता –17,75,956
दुद्धी विधानसभा उप चुनाव में भाजपा और सपा का सीधा मुकाबला
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से हारे सपा के विजय सिंह गोंड को लगभग 38 प्रतिशत जबकि भाजपा के राम दुलार गोंड़ को 41 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। राम दुलार को सजा होने से रिक्त सीट के हो रहे चुनाव में भाजपा से श्रवण गोंड को विजय गोड़ ही टक्कर दे रहे हैं। दुद्धी सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रखने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित दूसरे नेता क्षेत्र में सभाएं कर रहे हैं। वैसे मोदी-योगी की योजनाओं से प्रभावित जनता का झुकाव क्षेत्र के विकास के लिए भाजपा की ओर ही दिखाई दे रहा है, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव की जनसभा के बाद यहां की गणित भी भाजपा के लिए कठिन नजर आ रही है। हालांकि यहां उप चुनाव का कारण की बात करें तो 2022 में भाजपा द्वारा गलत प्रत्याशी दिए जाने को लेकर कई जगह लोगों में नाराजगी दिखी साथ ही 27 साल विधायक रहे विजय सिंह गोंड के प्रति झुकाव दिखा। यह विजय सिंह गोंड का अंतिम चुनाव बताया जा रहा है, यहां विधायक का कार्यकाल भी 3 साल से कम बचा है जिसे लेकर विजय सिंह गोंड भी अपनी पूरी कमर कस मैदान में हैं। यह तो साफ है, कि साइकिल और कमल पर ही सबसे ज्यादा मतदान होने हैं। पिछले दो बार के चुनाव पर नजर डाले तो बड़े ही कम अंतर से यहां एनडीए को जीत मिली है, इस बार के उपचुनाव में पूर्णतः कुछ भी साफ कह पाना मुश्किल है, इस तरह की बातें लोगों से सुनने को मिल रही है।
दुद्धी में उप चुनाव से पहले सपा प्रत्याशी से जनता के सवालों के साथ बात चीत का वीडियो यहां देखें:
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इस लोक सभा में पिछली बार नोटा दबाने वालों ने किया था हैरान
राबर्टसगंज लोकसभा सीट पर नोटा दबाने वाले भी कम नहीं हैं। पिछले चुनाव में चौथे नंबर पर नोटा ही था। 21,118 ने नोटा का बटन दबाया था। गौर करने की बात यह है कि उससे पहले वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भी 18,489 ने किसी प्रत्याशी के बजाय नोटा का बटन दबाया था। जानकारों का मानना है कि ईवीएम में ‘कमल’ व ‘हाथ का पंजा’ न होने से नोटा बटन दबाने वालों की संख्या और भी बढ़ सकती है।
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