Sonbhadra News l Sonprabhat Digital Desk
विंढमगंज, सोनभद्र। हारना कछार में आयोजित नौ दिवसीय विष्णु महायज्ञ के अंतर्गत बीती रात वृंदावन से आए कलाकारों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता का भावपूर्ण मंचन किया गया। इस रासलीला के दौरान श्रद्धालुओं ने भक्ति और प्रेम का अद्भुत अनुभव किया। जब श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता का मार्मिक दृश्य प्रस्तुत किया गया, तब उपस्थित श्रद्धालु भावविभोर हो उठे और जयघोष करने लगे।
बाल्यकाल में हुई श्रीकृष्ण और सुदामा की भेंट
रासलीला के दौरान कलाकारों ने दिखाया कि बाल्यकाल में सुदामा शिक्षा ग्रहण करने के लिए उज्जैन नगरी स्थित संदीपनी ऋषि के गुरुकुल जा रहे थे। रास्ते में उनके पैर में कांटा चुभ गया, जिससे वे दर्द से कराह उठे। तभी उसी मार्ग से भगवान श्रीकृष्ण भी गुरुकुल जाने के लिए निकले थे। उन्होंने सुदामा को रोते हुए देखा और बिना किसी संकोच के उनके पैर से कांटा निकाल दिया।
यहीं से दोनों के बीच अटूट मित्रता की शुरुआत हुई। गुरुकुल पहुंचकर दोनों ने साथ में अध्ययन करना प्रारंभ किया। लेकिन एक दिन जब गुरुजी ने सुदामा से पाठ सुनाने को कहा, तो वे घबराहट और भूलने के कारण उत्तर नहीं दे सके। इस पर गुरु ने उन्हें दंडस्वरूप जंगल से लकड़ी लाने का आदेश दिया।
श्रीकृष्ण ने यह देखा कि सुदामा अकेले संकट में पड़ सकते हैं, इसलिए उन्होंने भी अपना पाठ भूलने का नाटक किया, जिससे गुरु ने उन्हें भी सुदामा के साथ लकड़ी लाने भेज दिया।

भूख, चने और मित्रता की परीक्षा
रासलीला में आगे दिखाया गया कि जंगल में लकड़ी इकट्ठी करने के दौरान सुदामा को भूख लग गई। गुरुजी ने उन्हें दो मुट्ठी चने खाने के लिए दिए थे। श्रीकृष्ण ने सुदामा से कहा कि वे आराम करें और वे स्वयं लकड़ी इकट्ठा कर लाते हैं।
इसी दौरान सुदामा से भूख सहन नहीं हुई और उन्होंने दिए गए सभी चने खा लिए। जब श्रीकृष्ण लकड़ी लेकर लौटे और भूख लगने पर सुदामा से चने मांगे, तो सुदामा को गंभीर अपराधबोध हुआ। लेकिन उन्होंने बिना झूठ बोले सच्चाई स्वीकार कर ली कि उन्होंने सारे चने खा लिए हैं।
यह दृश्य दर्शाता है कि सच्ची मित्रता में ईमानदारी और पारदर्शिता का महत्व कितना अधिक होता है। श्रीकृष्ण सुदामा से नाराज नहीं हुए, बल्कि हंसते हुए कहा कि मित्रता में छल-कपट नहीं होना चाहिए।
राजा बने श्रीकृष्ण और निर्धन सुदामा का पुनर्मिलन
गुरुकुल की शिक्षा समाप्त होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण मथुरा के राजा बन गए, जबकि सुदामा अत्यंत निर्धन जीवन व्यतीत करने लगे। समय बीतने के साथ उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई, लेकिन उन्होंने कभी श्रीकृष्ण से सहायता नहीं मांगी।
एक दिन सुदामा की पत्नी ने उन्हें अपने मित्र से मिलने जाने की सलाह दी। उनके पास देने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी के कहने पर थोड़े से कच्चे चावल एक कपड़े में बांध लिए और श्रीकृष्ण के महल की ओर निकल पड़े।
श्रीकृष्ण का अपने मित्र के प्रति प्रेम
रासलीला में दिखाया गया कि जब सुदामा महल के द्वार पर पहुंचे, तो द्वारपालों ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। लेकिन जैसे ही श्रीकृष्ण को पता चला कि उनका प्रिय मित्र सुदामा आए हैं, वे नंगे पांव दौड़ते हुए उनके स्वागत के लिए बाहर आए और उन्हें गले से लगा लिया।
श्रीकृष्ण ने सुदामा को राजसी आसन पर बिठाया और स्वयं उनके पैर धोने लगे। यह देखकर उपस्थित दर्शक भक्ति और भावनाओं से सराबोर हो उठे। जब श्रीकृष्ण ने सुदामा के लाए हुए कच्चे चावल खाने शुरू किए, तब उनके प्रेम और मित्रता की सजीव झलक दिखाई दी।
पहली और दूसरी मुट्ठी चावल खाने के बाद श्रीकृष्ण ने सुदामा को दो लोकों का स्वामी बना दिया। लेकिन जब वे तीसरी मुट्ठी खाने लगे, तब माता रुक्मिणी ने उन्हें रोक दिया और कहा कि यदि तीनों लोक सुदामा को दे दिए, तो स्वयं कहां रहेंगे? इस पर श्रीकृष्ण ने तीसरी मुट्ठी नहीं खाई, लेकिन सुदामा को अपार धन और समृद्धि का आशीर्वाद दे दिया।
श्रद्धालु हुए भाव-विभोर
इस भावुक और हृदयस्पर्शी दृश्य को देखकर सैकड़ों श्रद्धालु जयकारे लगाने लगे। भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता त्याग, प्रेम, और सच्चे संबंधों की प्रेरणा देती है।
रासलीला समाप्त होने के बाद उपस्थित श्रद्धालुओं ने श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता को नमन किया और भगवान श्रीकृष्ण की जय-जयकार से वातावरण गूंज उठा। आयोजकों ने बताया कि इस प्रकार की लीला भक्तों को सच्चे प्रेम और निस्वार्थ मित्रता का महत्व सिखाती है।
समापन और श्रद्धालुओं की आस्था
नौ दिवसीय विष्णु महायज्ञ के अंतर्गत यह रासलीला श्रद्धालुओं के लिए भक्ति और प्रेम का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर गई। कलाकारों द्वारा की गई भावनात्मक प्रस्तुति ने हर दर्शक के हृदय को छू लिया और यह संदेश दिया कि सच्ची मित्रता न केवल सांसारिक जीवन में, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा में भी महत्वपूर्ण होती है।
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