Sonbhadra News | प्रशांत दुबे | सोनप्रभात न्यूज़
सोनभद्र | सिंगरौली और सोनभद्र, जिन्हें देश की “पावर कैपिटल” और “उर्जांचल” के नाम से जाना जाता है, आज गंभीर पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहे हैं। इस क्षेत्र में संचालित कोल माइंस की परियोजनाओं से निकलने वाला प्रदूषित पानी बलियानाला के माध्यम से सीधे रिहंद जलाशय में छोड़ा जा रहा है, जिससे न केवल पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी हो रही है बल्कि स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
एनजीटी के नियमों की अनदेखी, जलाशय हो रहा जहरीला
बलियानाला, जो कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है, यहाँ पर कोल माइंस से निकलने वाला जहरीला अपशिष्ट बिना किसी ट्रीटमेंट के जल स्रोतों में मिलाया जा रहा है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) एवं पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी से यह समस्या और भी विकराल होती जा रही है। कुछ वर्षों पहले एनजीटी की टीम ने इस क्षेत्र का निरीक्षण किया था और पानी के सैंपल की जांच की थी, जिसमें आर्सेनिक, मरकरी और फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा पाई गई थी।
प्रदूषित पानी से स्वास्थ्य पर गहरा असर
रिहंद जलाशय और स्थानीय जल स्रोतों में विषैले तत्वों की मौजूदगी से क्षेत्र के ग्रामीणों पर गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव पड़ रहा है। म्योरपुर ब्लॉक के गोविंदपुर, गंभीरपुर, कुशमहा, खैराही, किरवानी, रासपहरी, बराईडांड़, डडीहरा, बोदराडांड़, रनटोला सहित सिंगरौली-सोनभद्र के सैकड़ों गांवों में लोग चर्म रोग, अपंगता, हाई बीपी, और मधुमेह जैसी बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं।
विशेषकर ग्राम पंचायत कुशमहा में सैकड़ों परिवार फ्लोराइड और आर्सेनिक युक्त पानी के कारण अपंगता का शिकार हो चुके हैं, जबकि कई अन्य परिवार इसके खतरे के करीब हैं। शक्तिनगर क्षेत्र के ग्राम पंचायत चिल्काडांड़ में भी फ्लोराइड युक्त पानी के सेवन से ग्रामीण अपंग हो रहे हैं।
कोयले की राख और धूल से भी बढ़ रहा खतरा
इस क्षेत्र में संचालित कोयला आधारित परियोजनाओं से निकलने वाली राख और धूल भी एक बड़ा खतरा बनी हुई है। इससे न केवल वायु प्रदूषण बढ़ रहा है बल्कि वाराणसी-शक्तिनगर राजमार्ग (जिसे “किलर रोड” कहा जाता है) पर आए दिन दुर्घटनाएं भी हो रही हैं।
प्रदूषण के मामले में तीसरे स्थान पर पहुंचा क्षेत्र, जल्द समाधान की जरूरत
स्थानीय निवासियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह क्षेत्र देशभर में प्रदूषण के मामले में तीसरे स्थान पर पहुंच चुका है। यदि इस समस्या का शीघ्र समाधान नहीं किया गया तो इसका दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ेगा।
क्या हो सकते हैं समाधान?
- प्रदूषित जल के निस्तारण के लिए कोल माइंस से निकले पानी का उचित ट्रीटमेंट
- एनजीटी और पर्यावरणीय नियमों को सख्ती से लागू करना
- स्थानीय प्रशासन और सरकार की सख्त निगरानी और त्वरित कार्रवाई
- स्थानीय निवासियों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की व्यवस्था
अगर सरकार और प्रशासन जल्द कदम नहीं उठाते हैं, तो इस क्षेत्र के लाखों लोगों को गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना करना पड़ सकता है।
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