June 24, 2025 12:07 AM

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संपादकीय : वैवाहिक विश्वासघात पर कठोर दंड : समाज और कानून की अनिवार्य आवश्यकता।

राघवेंद्र नारायण सोनभद्र
  • वैवाहिक विश्वासघात पर कठोर दंड: समाज और कानून की अनिवार्य आवश्यकता – राघवेंद्र नारायण, (विधि विशेषज्ञ)

लेख : राघवेंद्र नारायण / सोनभद्र 

संपादन / आशीष गुप्ता – सोन प्रभात 

विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि एक पवित्र संस्कार है, जो दो आत्माओं को जीवनभर के लिए जोड़ता है। यह एक ऐसा दायित्व है, जिसमें दोनों पक्षों की निष्ठा और समर्पण आवश्यक होते हैं। भारतीय समाज में विवाह को सदैव उच्च नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों से जोड़ा गया है, किंतु वर्तमान समय में इसके पवित्र स्वरूप को विकृत करने की घटनाएँ बढ़ रही हैं। आधुनिकता और स्वार्थपरता के बढ़ते प्रभाव के कारण कुछ लोग विवाह को मात्र एक साधन के रूप में देखने लगे हैं, जिससे समाज में विश्वासघात, छल और शोषण की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं।

सोनभद्र की घटना: एक सामाजिक चेतावनी

हाल ही में उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में घटी एक हृदयविदारक घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया। हालांकि सोनभद्र से अनेकों इस तरह की घटनाएं समय समय पर आती रही है। ताजा मामले में एक व्यक्ति ने कई महिलाओं से छलपूर्वक विवाह किया, उनके साथ संतानोत्पत्ति हुई और बाद में उन्हें समाज में असहाय छोड़ दिया। यह न केवल उन महिलाओं के प्रति एक गंभीर अन्याय है, बल्कि उनके पूरे परिवार को सामाजिक अपमान और मानसिक पीड़ा में धकेलने वाला अपराध भी है। यह घटना दर्शाती है कि समाज में ऐसे अपराधी सक्रिय हैं, जो विवाह जैसी पवित्र संस्था को अपने स्वार्थ की पूर्ति का साधन बना रहे हैं।

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यह अपराध सिर्फ एक व्यक्ति को प्रभावित नहीं करता, बल्कि संपूर्ण समाज पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसी घटनाएँ पारिवारिक व्यवस्था को कमजोर कर रही हैं और महिलाओं के अधिकारों एवं उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को चोट पहुँचा रही हैं। इससे प्रभावित संतानों का भविष्य भी अनिश्चितता में डाल दिया जाता है, जिससे वे मानसिक और सामाजिक रूप से अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करने को विवश हो जाती हैं।

कानूनी प्रावधान और उनकी सीमाएँ

भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत ऐसे मामलों में कई धाराएँ लागू हो सकती हैं, किंतु वर्तमान कानूनी प्रावधान इस तरह के अपराधों को रोकने में पूरी तरह सक्षम नहीं हैं।

  1. धारा 319 (2) – यह स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी का मामला है, जिसमें अभियुक्त ने प्रतिरूपण कर महिलाओं को छलपूर्वक विवाह के लिए बाध्य किया।
  2. धारा 318 (4) – यदि अभियुक्त ने झूठे वादों के आधार पर महिलाओं से धन प्राप्त किए, तो इसे गंभीर अपराध माना जाएगा।
  3. धारा 316 (2) – इस अपराध को आपराधिक विश्वासघात की श्रेणी में रखा जा सकता है, क्योंकि अभियुक्त ने आर्थिक और भावनात्मक शोषण किया।
  4. धारा 351 (2) – महिलाओं को मानसिक एवं सामाजिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जो इस धारा के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है।
  5. धारा 82 और 83 – बहुविवाह और छलपूर्वक विवाह करने के मामलों में यह धाराएँ लागू हो सकती हैं।

किन्तु, इन धाराओं के बावजूद, इस प्रकार के अपराधों को रोकने और अपराधियों को दंडित करने के लिए कठोर प्रावधानों की कमी साफ़ दिखती है। वर्तमान में, ऐसे अपराधों के लिए अधिकतम सजा सीमित है, जबकि यह अपराध केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता है।

राघवेंद्र नारायण सोनभद्र
फाइल फोटो : राघवेंद्र नारायण

कठोर दंड की अनिवार्यता

ऐसे अपराधियों को कठोरतम दंड दिया जाना चाहिए, ताकि यह समाज के लिए एक उदाहरण बन सके। वर्तमान कानूनी प्रावधानों में संशोधन कर इस तरह के अपराधों के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास जैसी सजा को जोड़ा जाना चाहिए। जब तक अपराधियों को कठोरतम दंड नहीं मिलेगा, तब तक समाज में इस तरह की घटनाएँ दोहराई जाती रहेंगी।

विवाह पंजीकरण अनिवार्य किया जाए

इस समस्या के समाधान हेतु सर्वोच्च न्यायालय के सीमा बनाम अश्विनी कुमार मामले में दिए गए निर्देशों के अनुसार विवाह पंजीकरण को अनिवार्य किया जाना चाहिए।

  • डिजिटल विवाह पंजीकरण प्रणाली लागू की जाए, जिससे प्रत्येक व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति की पुष्टि ऑनलाइन की जा सके।
  • राष्ट्रीय विवाह डेटाबेस तैयार किया जाए, जिससे विवाह से संबंधित सभी दस्तावेज सुरक्षित रूप से दर्ज किए जाएँ।
  • विवाह से पहले वर-वधू की पृष्ठभूमि की जांच अनिवार्य की जाए, ताकि कोई व्यक्ति अपने पिछले विवाह को छिपाकर पुनः विवाह न कर सके।

यदि विवाह पंजीकरण को कठोरता से लागू किया जाए, तो विवाह के नाम पर धोखाधड़ी की घटनाओं में भारी कमी लाई जा सकती है।

समाज और सरकार की जिम्मेदारी

कानून के साथ-साथ समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी।

  1. परिवारों की सतर्कता – माता-पिता को विवाह से पहले वर-वधू की पृष्ठभूमि की जांच करनी चाहिए।
  2. महिलाओं में जागरूकता – महिलाओं को अपने अधिकारों और कानूनी उपायों की जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे अपने जीवनसाथी के चयन में सतर्क रहें।
  3. सामुदायिक जागरूकता अभियान – समाज में इस विषय पर खुली चर्चा होनी चाहिए और लोगों को इसके दुष्परिणामों से अवगत कराया जाना चाहिए।
  4. मीडिया और सामाजिक संगठनों की भूमिका – इस तरह के अपराधों को उजागर करने और पीड़ितों को न्याय दिलाने में मीडिया और सामाजिक संगठनों की अहम भूमिका होनी चाहिए।

न्यायिक प्रक्रिया को तेज किया जाए

इस तरह के मामलों में न्याय मिलने में वर्षों लग जाते हैं, जिससे पीड़ितों को और अधिक मानसिक पीड़ा सहनी पड़ती है। सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था करे, ताकि अपराधियों को शीघ्र दंडित किया जा सके और पीड़ितों को न्याय मिल सके।

नैतिक शिक्षा और मूल्यों की पुनर्स्थापना

केवल कानून बनाना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि समाज में नैतिक मूल्यों को पुनर्जीवित करना भी आवश्यक है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली में नैतिक शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए, जिससे लोग अपने दांपत्य जीवन को एक जिम्मेदारी के रूप में देखें, न कि एक साधन के रूप में।

अपना विचार

विवाह एक पवित्र बंधन है, जिसकी रक्षा करना हमारा नैतिक और कानूनी दायित्व है। सोनभद्र जैसी घटनाएँ हमें यह सोचने पर विवश करती हैं कि यदि हमने अभी कठोर कदम नहीं उठाए, तो भविष्य में यह समस्या और गंभीर हो सकती है। हमें एक ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता है, जहाँ विवाह के नाम पर धोखाधड़ी करने वालों को कठोरतम दंड मिले, विवाह पंजीकरण को अनिवार्य किया जाए और समाज में महिलाओं को जागरूक किया जाए। जब तक समाज और कानून मिलकर इस दिशा में कार्य नहीं करेंगे, तब तक विवाह की पवित्रता को बचाना कठिन होगा। यह समय है कि हम इस विषय पर गंभीरता से सोचें और ठोस कदम उठाएँ, जिससे एक सशक्त और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हो सके।

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