August 3, 2025 12:14 AM

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Sonbhadra News : 24 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ का पूर्णाहुति व भव्य भंडारे के साथ हुआ समापन

दीक्षा, नामकरण, पुंसवन एवं यज्ञोपवीत जैसे संस्कारों के बीच चार दिवसीय आयोजन सम्पन्न

Sonbhadra News | Sonprabhat | जितेन्द्र कुमार चन्द्रवंशी

दुद्धी, सोनभद्र : चैत्र नवरात्रि के पावन अवसर पर दुद्धी क्षेत्र में चार दिवसीय 24 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ का आयोजन भव्यता के साथ सम्पन्न हुआ। अखिल विश्व गायत्री परिवार के तत्वावधान में संपन्न इस आयोजन में क्षेत्रीय भक्तों सहित दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं ने भाग लिया। यज्ञ का उद्देश्य विश्व शांति, मानव कल्याण एवं समाज में सद्भाव का वातावरण सृजित करना रहा।

वैदिक मंत्रों की गूंज से गुंजायमान हुआ वातावरण

शनिवार को यज्ञ की पूर्णाहुति हुई जिसमें मुख्य यजमान अपनी अर्धांगिनी संग यज्ञ मंडप में बैठे। नारियल, घी, आम की लकड़ियों, औषधियों, सुगंधित जड़ी-बूटियों, रोली, पुष्प एवं कलावा से यज्ञ सामग्री अर्पित की गई। गायत्री महामंत्रमहामृत्युंजय मंत्र के उच्चारण से वातावरण भक्तिमय हो गया। हजारों श्रद्धालुओं ने सुख-समृद्धि, लोककल्याण एवं विश्वशांति की कामना के साथ आहुति दी।

संस्कार एवं आरती से भावविभोर हुए भक्तगण

यज्ञशाला में स्थापित मंगल कलश के जल से अभिषेक कर श्रद्धालुओं पर छिड़काव किया गया। दीक्षा, नामकरण, पुंसवन व यज्ञोपवीत जैसे संस्कार भी संपन्न कराए गए। इसके पश्चात प्रज्ञा पुराण का वाचन एवं मां गायत्री की आरती की गई। क्षमा प्रार्थना के साथ यज्ञ का समापन हुआ।

मुख्य वक्ता व टोली का अभिनंदन

व्यास पीठ पर आसीन मुख्य टोली नायक खेमचंद विशाल, सहायक विकास ब्रह्म भट्ट, गायक देवी प्रसाद तथा वादक शिवम वानप्रस्ती का अभिनंदन किया गया। आभार व्यक्त किया जिला ट्रस्टी शिवशंकर प्रसाद कुशवाहा, तहसील समन्वयक जितेन्द्र कुमार चन्द्रवंशी, व आयोजन समिति अध्यक्ष मोहन सिंह ने।

भव्य भंडारे में जुटे श्रद्धालु

पूर्णाहुति के उपरांत भव्य भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें हज़ारों श्रद्धालुओं ने महाप्रसाद ग्रहण किया। आयोजन में ब्लॉक समन्वयक पन्नालाल कुशवाहा, डॉ. रामनाथ प्रजापति, प्रेमचंद गुप्ता, जगत नारायण यादव, विजय कुमार, राजमणि देवी, बसंत कुमार, अजीत कुमार समेत कई पदाधिकारी उपस्थित रहे। संचालन प्रज्ञा मंडल अध्यक्ष शिवकुमार ने किया।

टोली विदाई पर भावुक हुए श्रद्धालु

यज्ञ टोली की विदाई के समय श्रद्धालु भावुक हो उठे। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बना बल्कि समाज को एकता, शांति और सत्कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी प्रदान कर गया।

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