June 16, 2025 4:45 PM

Menu

साक्षात्कार विशेष : “कविता सृजन आसान कार्य नहीं, कविता को जीना भी पड़ता है।” – नरेंद्र नीरव

लेख : सुरेश गुप्त ‘ग्वालियरी’, विंध्य नगर बैढ़न/ सोन प्रभात

“कविता सृजन आसान कार्य नहीं, कविता को जीना भी पड़ता है…”
यह पंक्तियाँ न केवल सोनभद्र के प्रसिद्ध कवि एवं पत्रकार नरेंद्र नीरव जी की साहित्यिक दृष्टि को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि कविता केवल भावों का संग्रथन नहीं, बल्कि वह जीवन के अनुभवों से उपजी हुई अभिव्यक्ति है।

दिनांक 15 जून को एक ऐतिहासिक साहित्यिक पहल के रूप में, सोनप्रभात न्यूज के संपादक आशीष कुमार गुप्ता एवं उनके टीम द्वारा (सहयोगी आशीष यादव)  एक विशेष पॉडकास्ट साक्षात्कार सोन प्रभात न्यूज के यूट्यूब चैनल पर प्रकाशित किया गया। यह साक्षात्कार, सोनभद्र के वरिष्ठ पत्रकार, सुप्रसिद्ध कवि, विचारक, लेखक और वनवासी-आदिवासी संस्कृति के सजग प्रहरी आदरणीय नरेंद्र नीरव जी के साथ था।

इस साक्षात्कार ने न केवल एक अनुभवी साहित्यकार की गहराईयों को उजागर किया, बल्कि दर्शकों को जल, जंगल, जमीन और विस्थापन जैसे विषयों पर सोचने के लिए भी विवश कर दिया।

नीरव जी ने जिस प्रकार से विस्थापन और विस्थापितों के दर्द को अपनी रचनाओं में उकेरा है, वह मात्र शब्दों का सौंदर्य नहीं, बल्कि उस पीड़ा का अनुभव है जिसे उन्होंने स्वयं जिया है। उनकी वाणी में कोयलांचल और दक्षिणांचल की पीड़ा स्पष्ट रूप से सुनाई दी। उन्होंने कश्मीर की पीड़ा से जोड़ते हुए सोनभद्र की माटी का यथार्थ परिचय कराया।

इस साक्षात्कार में जब उन्होंने महारानी चुनकुमारी के शौर्य का वर्णन किया, तो वह एक ऐतिहासिक जानकारी भी बन गई। मुझे याद है कि लगभग तीस-पैंतीस वर्ष पूर्व, रेणुकूट में अपने कवि मित्र स्व. विंध्यवासिनी दुबे के आवास पर आयोजित एक कवि गोष्ठी में मैंने पहली बार नीरव जी को सुना था — एक फक्कड़ अंदाज़, ग्रामीण पहनावा और कविता में अपनी माटी का दर्द!

आज एक बार फिर से, सोनभद्र के प्रतिष्ठित युवा पत्रकार/ सोन प्रभात संपादक आशीष गुप्ता जी ने हम जैसे रचनाकारों को उस व्यक्तित्व से परिचित कराया, जिसने BHU जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से शिक्षा प्राप्त कर उच्च जीवन जीने का अवसर होते हुए भी नौकरी का परित्याग कर केवल वनवासी और आदिवासी जीवन के यथार्थ को अपनाया। उन्होंने अपनी कलम को उन असहाय, अनसुनी आवाज़ों का प्रवक्ता बनाया और समाज के सामने एक दर्पण रखा।

इस सजीव साक्षात्कार से मुझे यह सीख मिली कि कविता तभी सार्थक होती है जब उसे जिया गया हो। हम जैसे नवोदित रचनाकार अक्सर कल्पनाओं में जीवन को गढ़ते हैं, परंतु क्या हम कभी किसी किसान की पीड़ा को समझने का प्रयास करते हैं, उस पर लिखने से पहले?

मैं अत्यंत आभारी हूं आदरणीय नरेंद्र नीरव जी का, जिन्होंने अपने विचारों के माध्यम से एक नई दृष्टि दी। साथ ही जनपद के ऊर्जावान, कर्मठ संपादक श्री आशीष कुमार गुप्ता एवं उनकी पूरी टीम को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं, जिन्होंने सोनभद्र के काव्य मनीषियों एवं महान व्यक्तित्वों को मंच प्रदान कर पाठकों से परिचय कराने का अभिनव प्रयास किया। आगे भी आपसे अपेक्षाएं बढ़ जाती है, और आशा है आगामी पॉडकास्ट भी मौलिकताओं को समेटते हुए देखने को मिलेगा।

पॉडकास्ट यहां देखें :

इस अवसर पर मैं माटी और संस्कृति के इस महाकवि के चरणों में अपनी कविता की कुछ पंक्तियाँ समर्पित करता हूँ:

चल रे कलुआ लकड़ी काट!!
धब्बे से लगते हैं जंगल,
उठा कुल्हाड़ी इसको छांट!!
नया नया इक शहर बसेगा,
बढ़ जाएंगे तेरे ठाठ!!
मेरा पानी तेरा कोयला,
करने निकले बंदर बांट!!
कलुआ करता आज गुलामी,
परदेशी सब हो गए लाट!!
कल तक मस्ती थी बस्ती में,
आज महल वहाँ खड़े विराट!!
उजड़े पोखर, कुएं खो गए,
विलुप्त हो गए सुंदर घाट!!
चल रे़ कलुआ लकड़ी काट!!
धब्बे से लगते हैं जंगल,
उठा कुल्हाड़ी उसको छांट!!

– सुरेश गुप्त ‘ग्वालियरी’
विंध्य नगर बैढ़न

Ad- Shivam Medical

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

For More Updates Follow Us On

For More Updates Follow Us On