August 2, 2025 3:23 PM

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रिहंद जलाशय में छोड़ा जा रहा कोल माइंस का ज़हरीला पानी: सोनभद्र और सिंगरौली के ‘ऊर्जांचल’ में घुलता ज़हर.

  •  एनजीटी और पर्यावरण नियमों की खुली अवहेलना, सैकड़ों गांवों में फैल रही गंभीर बीमारियां.

सोनभद्र | सोन प्रभात न्यूज़/ Prashant Dubey – 

देश की ऊर्जा राजधानी कहे जाने वाले सिंगरौली-सोनभद्र क्षेत्र में पर्यावरणीय संकट गहराता जा रहा है। यह वही इलाका है, जिसे कभी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने “भारत का स्विट्ज़रलैंड” कहा था। आज वहीं क्षेत्र, कोयला खनन और औद्योगिक प्रदूषण की वजह से बीमारियों की भट्टी में तब्दील हो चुका है।

ताज़ा मामला है मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित बलियानाला का, जहां कोल माइंस की परियोजनाओं से निकला जहरीला और रासायनिक कचरा सीधे रिहंद जलाशय में छोड़ा जा रहा है। यह वही जलाशय है, जिससे सैकड़ों गांवों की जनता पीने का पानी, मछली, और अन्य दैनिक उपयोग के संसाधन प्राप्त करती है।


प्रदूषित पानी से जिंदगी बन रही नर्क

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, कोयला खनन से जुड़े संयंत्रों का प्रदूषित अपशिष्ट बिना किसी ट्रीटमेंट के बलियानाला के जरिए रिहंद जलाशय में गिराया जा रहा है। इससे न सिर्फ जल जीवन चक्र प्रभावित हो रहा है, बल्कि पानी में आर्सेनिक, मरकरी और फ्लोराइड जैसी घातक रसायनों की मात्रा भी खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।

गंभीर बीमारियों की चपेट में पूरा क्षेत्र

  • म्योरपुर ब्लॉक के कुशमहा, खैराही, किरवानी, गोविंदपुर, गंभीरपुर, रासपहरी, डड़ीहरा, बोदराडांड़, रनटोला जैसे दर्जनों गांवों में चर्म रोग, हड्डियों की दुर्बलता, बीपी, शुगर जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है।

  • शक्तिनगर के चिल्काडांड़ पंचायत में तो स्थिति और भी भयावह है, यहां फ्लोराइडयुक्त पानी के कारण कई ग्रामीण स्थायी अपंगता के शिकार हो चुके हैं।

  • कुशमहां ग्राम पंचायत के सैकड़ों परिवार आज भी बिना शुद्ध जल के जीवन यापन करने को मजबूर हैं।


एनजीटी के आदेश हवा में, प्रशासन मौन

कुछ वर्षों पूर्व राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की टीम ने यहां का दौरा कर पानी के नमूने जांच के लिए भेजे थे, जिसमें भारी मात्रा में फ्लोराइड, मरकरी और आर्सेनिक पाए गए। रिपोर्ट आने के बावजूद प्रशासन और संबंधित औद्योगिक इकाइयों ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

“ऊर्जांचल” बना “ज़हर का घर”

देश के कोने-कोने से लोग यहां की औद्योगिक परियोजनाओं में कार्य करने आते हैं, लेकिन प्रदूषण का स्तर यहां लोगों की जान पर बन आया है।
यहां के आदिवासी समुदाय की जीविका रिहंद जलाशय की मछलियों और कुओं के जल पर निर्भर है, जो अब धीमे ज़हर में तब्दील हो चुका है।


सड़कें बनीं मौत का रास्ता

केवल जल प्रदूषण ही नहीं, कोल परिवहन के कारण उड़ी कोयले की धूल और राखड़ से शक्तिनगर-वाराणसी राजमार्ग, जिसे अब “किलर रोड” कहा जाने लगा है, आए दिन दुर्घटनाओं का गवाह बनता जा रहा है। अत्यधिक ट्रैफिक और धूल भरे वातावरण में वाहन चलाना मौत को दावत देना जैसा हो गया है।


पर्यावरण कार्यकर्ताओं की चेतावनी

म्योरपुर क्षेत्र के पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कहा है कि यह इलाका देश के सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। अगर समय रहते ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो आगे चलकर यह क्षेत्र एक ‘मृतप्राय ज़ोन’ बन जाएगा, जहाँ इंसान, पशु, और पर्यावरण तीनों का अस्तित्व खतरे में होगा।


जनता का दर्द, प्रशासन की चुप्पी

स्थानीय समाजसेवियों और जागरूक नागरिकों ने सरकार से मांग की है कि:

  1. प्रदूषित जल को रोकने के लिए जल शोधन संयंत्रों की स्थापना की जाए।

  2. रिहंद जलाशय को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए।

  3. प्रत्येक प्रभावित गांव में शुद्ध पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।

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