संपादकीय / आशीष गुप्ता, सोन प्रभात न्यूज़
जैसे-जैसे प्रधानी चुनाव का समय नजदीक आता है, गांव-गांव में हलचल बढ़ने लगती है। यह केवल वोट देने का अवसर नहीं है, बल्कि गांव की सामाजिक और आर्थिक दिशा तय करने का क्षण है। इस बार भी सोनभद्र के विभिन्न गांवों में चुनाव का रंग साफ दिखाई दे रहा है। कहीं लोग अफवाहें फैला रहे हैं, तो कहीं कुछ निष्ठावान और सजग लोग अपने गांव के हित में सच्ची ज्योति जलाने का जज्बा दिखा रहे हैं।

गांव का नेतृत्व केवल पद, शक्ति या संसाधनों से नहीं मापा जा सकता। इसे मापा जाता है कर्म, निष्ठा और सेवा की गहराई से। जिन पुराने नेताओं ने वर्षों तक बिना थके और निस्वार्थ भाव से काम किया है, उनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनके द्वारा किए गए कार्य ही उनके चरित्र, नेतृत्व क्षमता और गांव के प्रति समर्पण का प्रमाण हैं।
अभी तक चुनावी सीट फाइनल नहीं हुई है, लेकिन हर गांव में लोग अपनी ताकत और प्रभाव दिखाने में व्यस्त हैं। कई बार देखा गया है कि उम्मीदवार अपने वर्चस्व और सत्ता के माध्यम से लोगों के बीच भ्रम फैलाने या लाभ बांटने की रणनीति अपनाते हैं। ऐसे समय में यह सोचना और समझना बेहद जरूरी है कि सच्चा प्रतिनिधि कौन हो सकता है और हमें किसे चुनना चाहिए।
कार्य और कर्म का मूल्यांकन
सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो एक प्रधान केवल पदाधिकारी नहीं होता, बल्कि वह गांव के विकास और सामाजिक न्याय का संरक्षक होता है। इसलिए उम्मीदवार का मूल्यांकन केवल उम्र, लोकप्रियता या राजनीतिक अनुभव से नहीं किया जाना चाहिए। इसका सबसे बड़ा पैमाना होना चाहिए – उसके कार्य और उसके कर्म।
बिना पद के सक्रिय कार्यकर्ता: कई लोग बिना किसी पद या पदवी के भी वर्षों से अपने गांव की सेवा में सक्रिय हैं। वे सामाजिक कार्यों में भाग लेते हैं, जरूरतमंदों की मदद करते हैं, बच्चों की शिक्षा में योगदान देते हैं, और आपदा या मुश्किल समय में गांव के हित में कदम उठाते हैं। ऐसे लोगों का मूल्यांकन करना आवश्यक है, क्योंकि उनका नेतृत्व केवल चुनाव जीतने के लिए नहीं, बल्कि गांव के सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
पुराने प्रतिनिधियों का कार्य: पुराने नेताओं ने अपने कार्यकाल में यदि स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, जल सुविधा, कृषि या अन्य सामाजिक क्षेत्रों में ठोस कदम उठाए हैं, तो उनके योगदान का मूल्यांकन करना भी जरूरी है। यह देखा जाना चाहिए कि क्या उनके प्रयासों का लाभ वास्तविक रूप में जनता को मिला, और क्या उन्होंने अपने वादों और जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाया।
युवाओं और नए नेताओं की भागीदारी
समय के साथ युवा नेतृत्व का महत्व बढ़ा है। युवा नए दृष्टिकोण, नई योजनाएं और नवीन ऊर्जा लेकर आते हैं। हालांकि, केवल युवा होना ही पर्याप्त नहीं है। यह देखना आवश्यक है कि क्या युवा नेता ने अपने अनुभव और सक्रिय भागीदारी से गांव के विकास में योगदान किया है।
युवाओं को अवसर देना चाहिए, लेकिन उनका मूल्यांकन उनके कर्म और योगदान के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि केवल उम्र या आकर्षण के आधार पर।

चुनाव सिर्फ वोट नहीं, बल्कि सोच का अवसर है
सोनप्रभात पाठकों के लिए यह संदेश विशेष महत्व रखता है: चुनाव केवल वोट डालने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह आपकी सोच, आपकी प्राथमिकताओं और आपके समाज के भविष्य की दिशा तय करने का अवसर है।
- क्या प्रत्याशी निस्वार्थ भाव से काम करने वाला है?
- क्या उसने बिना किसी पद के रहते हुए भी गांव के सार्वजनिक हित में योगदान दिया है?
- क्या उसने अपने कार्यकाल में किए गए कार्यों के माध्यम से जनता का विश्वास जीत पाया है?
- क्या वह आपके आशाओं और जरूरतों पर खरा उतरा है?
इन सवालों के जवाब खोजकर ही सही प्रतिनिधि का चयन किया जा सकता है।
नीतिगत दृष्टिकोण और ग्रामीण जिम्मेदारी
गांव का प्रधान चुनते समय समाज को यह समझना चाहिए कि यह केवल व्यक्तिगत पसंद का मामला नहीं है। यह समाज के हित, विकास और न्याय का मामला है। एक जिम्मेदार प्रधान स्वास्थ्य, शिक्षा, जल, सड़क, कृषि, और सामाजिक समरसता जैसे क्षेत्रों में स्थायी सुधार लाने में सक्षम होना चाहिए।
पुराने प्रतिनिधि का क्या?
यदि किसी पुराने प्रतिनिधि ने अपने कार्यकाल में प्रभावी और ईमानदार योगदान किया है, तो उसे पुनः अवसर देना चाहिए। लेकिन उसके साथ कुछ शर्तें और अपेक्षाएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए:
- विकास कार्यों की नियमित निगरानी
- ग्रामीणों के साथ पारदर्शी संवाद
- धन और संसाधनों का जवाबदेह और पारदर्शी उपयोग
- समाज के कमजोर वर्गों के लिए विशेष योजनाओं का पालन
इसी प्रकार, निस्वार्थ कार्यकर्ताओं और युवाओं को भी सक्रिय भागीदारी के आधार पर मौका देना चाहिए।
समाज की जागरूकता
अंततः, चुनाव का असली मापदंड केवल वोटिंग प्रक्रिया या व्यक्तिगत प्राथमिकता नहीं है। यह कर्म, निष्ठा और समाज के प्रति समर्पण है। जो व्यक्ति अपने कार्यों, सेवा और निस्वार्थ भावना के माध्यम से जनता का विश्वास जीतता है, वही सच्चा प्रतिनिधि बन सकता है।
सोनभद्र के ग्रामीणों के लिए यह समय केवल चुनाव का नहीं, बल्कि सोचने, मूल्यांकन करने और जिम्मेदारी निभाने का भी समय है। सही व्यक्ति को चुनना केवल आपके वोट का नहीं, बल्कि आपके गांव के कल्याण और भविष्य का भी निर्णय है।
अंतिम बात
गांव का प्रधान चुनते समय पद, उम्र या लोकप्रियता से परे जाएं। कर्म, निष्ठा और निस्वार्थ सेवा को प्राथमिकता दें। यही वह मूल मूल्य है जो आपके गांव के उज्जवल भविष्य की दिशा तय करेगा। कई पहलू और हो सकते हैं लेकिन अक्सर शिक्षा के अभाव में ग्रामीण त्वरित खुशी के बदले 5 साल के लिए गलत चुनाव कर लेते है। बदलाव की मशाल जल तो रही है, मगर अभी भी बहुत वक्त लगने की उम्मीद है ग्रामीण अंचलों में लोगों को अशिक्षा से बाहर लाने में।
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