February 5, 2025 10:17 AM

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रामचरित मानस:- “ब्रह्म राम ते नाम बड़, बर दायक बरदानि।” – मति अनुरूप – जयन्त प्रसाद 

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चन्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

 

– मति अनुरूप –

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

ब्रह्म राम ते नाम बड़, बर दायक बरदानि।

रामायन सतकोटि महँ,  लिय महेश जियँ जानि।।

गोस्वामी जी ने सभी की वंदना की, पर राम के नाम की वन्दना अलग से नौ दोहाें और उनके बीच की चौपाइयों में रचकर राम नाम की महत्ता असीम है, यह सूचित किया है।  गोस्वामी जी ने मानस की रचना के आरंभ में ही प्रकट किया कि मुझमें रचना की कोई योग्यता नहीं है–

“कवित विवेक एक नहिं मोरे”   और मेरी यह रचना गुणों से हीन है, अपनी काव्य कौशल, काव्य गुण, विद्वत्ता आदि के कारण यह प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकने में समर्थ नहीं है, पर इसमें एक विश्वविदित गुण है–

“एहि महँ रघुपति नाम उदारा”

अर्थात इसमें रघुवंश नायक राम का नाम है, जिसका हमें भरोसा है। नाम के रूप में तो राम किसी का नाम हो सकता है अर्थात राम के नाम से हम किसी को पुकार सकते हैं, पर गोस्वामी जी रघुवंशी राम के नाम की वन्दना करते हैं– यथा–

“बंदउँ नाम राम रघुवर को।”

नौ का अंक सभी अंकों में बड़ा है और वह अपने गुणनफल के अंकों में भी अपनी अचलता बनाए रखता है, जैसे ९ X २ = १८ , गुणनफल का अंक १+ ८= ९.

इस प्रकार जहां भी मानस में अति महत्ता की बात सूचित करना है, वहां गोस्वामी जी ने नौ का आश्रय लिया है– आरंभ की वन्दना में –  ‘ वर्णानाम् अर्थसंघानां ……………………………. रामाख्यमीशं हरिम्। ‘

१- सरस्वती , २- गणेश, ३- पार्वती, ४- शिव, ५- गुरुदेव, ६- बाल्मीकि, ७- हनुमान जी, ८- सीता जी और ९- राम जी इन नौ की वन्दना की।

सुमन्त जी के द्वारा वन गमन से राम को रोक पाने और न लौटा पाने की शोक की पराकाष्ठा को भी नौ उपमाओं से प्रकट की गयी,  यथा–

१- मनहुँ कृपन  धन रासि गवाँई।

२– चलेउ समर जनु सुभट पराई।

३–  जिमि धोखे मदपान करि, सचिव सोंच तेहि भाँति।

४–  रहै करमवस परिहरि नाहू।

५– मारेसि मनहु पिता– महतारी।

६– जमपुर पंथ सोंच जिमि पापी। जनु मारेसि

७– गुर

८– बाँभन,

९– गाई (अयोध्या कांड दो0 नं0१४४ के बाद)

पुनः उत्तरकाण्ड में–  “बिनु हरि भजन न भव तरिय”  के समर्थन में ९ असंभव बातों का उल्लेख किय।, यथा–

१– कमठ पीठ जामहिं बरू बारा।

२– बंध्या सुत बरू काहुहिं मारा।

३– फुलहिं नभ बरू बहु विधि फूला।

४– तृषा जाइ बरू मृगजल पाना।

५–बरू जामहि सस सीस विषाना।

६–अंधकार बरू रविहिं नसावै।

७– हिम ते अनल प्रकट बरू होई।

८– बारि मथें घृत होई बरू।

९–सिकता ते बरू तेल। ( दोहा नं0 १२१ के बाद)

इस प्रकार राम के नाम की वन्दना, नौ दोहों और ३६ चौपाइयों (९x४ = ३६ अर्थात् ३+६ = ९)  करके राम नाम की महत्ता अनंत है, यह सूचित किया है। इस संबंध में तुलसी जी का विचार–

“कहउँ नाम बड़ राम ते, निज विचार अनुसार”  तथा सौ करोड़ रामायण में शिव जी ने भी इसी बात को सिद्ध माना।

अर्थात सर्वमत यही है कि राम से भी बड़ा राम का नाम है, क्यों ? –  मानस में तुलसीदास जी ने विस्तार से इसे समझाया, बताया है, पर संक्षेप में–

सबरी गीध सुसेवकानि, सुगति दीन्ह रघुनाथ।

नाम उधारे अमित खल, बेद विदित गुन गाथ।

अर्थात राम ने तो कुछ गिने-चुने सुसेवकों को ही सुगति दी, पर नाम तो असंख्य खलों का भी उद्धार कर दिया।

(बालकांड दोहा नं0 १८ के बाद दोहा नं0 २७ तक मानस पढ़ें)

राम नाम की महत्ता इस कारण भी सिद्ध है, कि इसकी साधना कर फल प्राप्त करना अत्यंत ही सरल और सुलभ है, यथा–

विवसहु रामनाम नर कहहीं; जनम अनेक रचित अघ दहहीं।

राम–राम कहि जे जमुहाहीं; तिन्हहिं न पाप पुंज समुहाहीं।

अर्थात जैसे तैसे नाम लेना भी मंगलकारी है, यह सिद्ध भी है–

ध्रुव सगलानि जपेउ हरिनाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ।।

अपतु अजामिल गज गनिकाऊँ। भए मुकुत हरिनाम प्रभाऊँ।।

नाम का प्रभाव हर काल हर लोक और हर युग में है–

“चहुँ जुग तीनिकाल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव विसोका।”

राम नाम सभी मनोकामना को पूर्ण करने वाला तथा सांसारिक बंधनों से छुड़ाने वाला है–

नाम कामतरू काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला।।

जो फल ध्यान, यज्ञ और पूजा से प्राप्त होता है वही फल राम नाम स्मरण से सहज ही प्राप्त हो जाता है। इस कलिकाल में तो – “कलयुग केवल नाम अधारा”

अस्तु – “कहौं कहाँ लगि नाम बडाई। राम न सकहिं नाम गुन गाई।।

यह राम नाम सभी नामों से अधिक कल्याणप्रद और पाप नाशक है, क्योंकि नारद जी ने ऐसा ही वर मांगा था।(अरण्यकांड)

जद्‍यपि प्रभु के नाम अनेका। श्रुति कह अधिक एक ते एका।।

राम सकल नामन्ह ते अधिका।होउ नाथ अघ खग गन बधिका।।

अतः हे जीवǃ  यदि भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है, तो मुख रूपी द्वार की जीभ रूपी देहरी पर राम नाम रूपी मणिदीप को रख।

राम नाम मनिदीप धरु, जीह देहरी द्वार।

तुलसी भीतर बाहेरहु,जौ चाहसि उजियार।

जय श्री सीताराम

–जयन्त प्रसाद

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